बीते कुछ दिनों से बिहार और वहां की शिक्षा चर्चा में है. कारण है 11 साल का बच्चा सोनू कुमार. सोनू ने राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की है और शिक्षा के अधिकार के तहत 'शिक्षा मांगी है'. सोनू अब तक क्यों नहीं ढंग से पढ़ पा रहा है? इसकी एक बड़ी वजह सोनू के पिता की शराब है. तो दूसरा बड़ा कारण बिहार के स्कूलों के टीचर हैं. जैसे हालात हैं, बिहार में शिक्षक शिक्षा तो कम बांट रहे हैं लेकिन उसका मखौल ज्यादा उड़ा रहे हैं. कैसे? इस सवाल के लिए हमें कटिहार चलना होगा और उस स्कूल को देखना होगा जहां एक ही क्लासरूम में, एक ही ब्लैकबोर्ड पर दो अलग भाषाएं हिंदी और उर्दू पढ़ाई जा रही है. असल में इंटरनेट पर कटिहार से आया एक वीडियो जंगल की आग की तरह फैल गया है. जिसमें एक ही समय में एक ही ब्लैकबोर्ड पर दो शिक्षकों द्वारा हिंदी और उर्दू पढ़ाते देखा जा सकता है. अब जब एक ही समय में टीचर बच्चों को दो अलग अलग और एक दूसरे से जुदा भाषाएं पढ़ाएंगे तो विवाद का होना और प्रतिक्रियाओं का आना दोनों ही स्वाभाविक है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ.
जिक्र अगर समाचार एजेंसी एएनआई द्वारा शेयर किये गए इस वीडियो का हो तो इसमें महिला टीचर बच्चों को हिंदी पढ़ा रही है. वहीं जो पुरुष टीचर है उनको स्कूल ने जिम्मा दिया है नन्हें मुन्ने बच्चों को उर्दू सिखाने का. वीडियो में एक टीचर और हैं जिनके हाथ में छड़ी है और जो उस छड़ी से चीखते-चिल्लाते, शोर मचाते शरारत करते बच्चों को अनुशासन सिखा रही हैं.
कह सकते हैं कि बच्चे एक ही समय में हिंदी, उर्दू और...
बीते कुछ दिनों से बिहार और वहां की शिक्षा चर्चा में है. कारण है 11 साल का बच्चा सोनू कुमार. सोनू ने राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की है और शिक्षा के अधिकार के तहत 'शिक्षा मांगी है'. सोनू अब तक क्यों नहीं ढंग से पढ़ पा रहा है? इसकी एक बड़ी वजह सोनू के पिता की शराब है. तो दूसरा बड़ा कारण बिहार के स्कूलों के टीचर हैं. जैसे हालात हैं, बिहार में शिक्षक शिक्षा तो कम बांट रहे हैं लेकिन उसका मखौल ज्यादा उड़ा रहे हैं. कैसे? इस सवाल के लिए हमें कटिहार चलना होगा और उस स्कूल को देखना होगा जहां एक ही क्लासरूम में, एक ही ब्लैकबोर्ड पर दो अलग भाषाएं हिंदी और उर्दू पढ़ाई जा रही है. असल में इंटरनेट पर कटिहार से आया एक वीडियो जंगल की आग की तरह फैल गया है. जिसमें एक ही समय में एक ही ब्लैकबोर्ड पर दो शिक्षकों द्वारा हिंदी और उर्दू पढ़ाते देखा जा सकता है. अब जब एक ही समय में टीचर बच्चों को दो अलग अलग और एक दूसरे से जुदा भाषाएं पढ़ाएंगे तो विवाद का होना और प्रतिक्रियाओं का आना दोनों ही स्वाभाविक है. इस मामले में भी ऐसा ही हुआ.
जिक्र अगर समाचार एजेंसी एएनआई द्वारा शेयर किये गए इस वीडियो का हो तो इसमें महिला टीचर बच्चों को हिंदी पढ़ा रही है. वहीं जो पुरुष टीचर है उनको स्कूल ने जिम्मा दिया है नन्हें मुन्ने बच्चों को उर्दू सिखाने का. वीडियो में एक टीचर और हैं जिनके हाथ में छड़ी है और जो उस छड़ी से चीखते-चिल्लाते, शोर मचाते शरारत करते बच्चों को अनुशासन सिखा रही हैं.
कह सकते हैं कि बच्चे एक ही समय में हिंदी, उर्दू और अनुशासन तीनों ही सीख रहे हैं. सवाल ये है कि क्या बच्चे सीख पाएंगे? सिर्फ जवाब के उद्देश्य से कई बातें की जा सकती हैं. तर्क पर तर्क दिए जा सकते हैं लेकिन ईमानदारी से देखा जाए तो कटिहार का आदर्श मिडिल स्कूल बच्चों से, बच्चों के भविष्य और मां बाप के अलावा खुद स्कूल के शिक्षकों से धोखा कर रहा है.
स्कूल के साधारण से छात्रों को हाइली एडुकेटेड बनाने का ये अनोखा ख्याल कहां से आया? इसपर स्कूल की सहायक शिक्षिका कुमारी प्रियंका ने दिलचस्प तर्क दिए हैं. प्रियंका के अनुसार 'उर्दू प्राइमरी स्कूल को 2017 में शिक्षा विभाग द्वारा हमारे स्कूल में स्थानांतरित कर दिया गया था. शिक्षक एक कक्षा में हिंदी और उर्दू दोनों पढ़ाते हैं.'
प्रियंका ने कहा है कि हमारे स्कूल में पर्याप्त क्लास- रूम नहीं हैं और यहीं कारण है कि हम छात्रों को एक ही कमरे में पढ़ाते हैं. प्रियंका द्वारा कही ये बात और साथ ही मामला जब जिले के जिला शिक्षा अधिकारी के पास पहुंचा तो जैसा उनका आश्वासन था कहा गया कि भविष्य में ऐसा न हो इसके प्रबंध किये जा रहे हैं.
जिला शिक्षा अधिकारी कामेश्वर गुप्ता के अनुसार, उर्दू प्राइमरी स्कूल को एक्स्ट्रा क्लासरूम प्रदान की जाएंगी. ऐसा इसलिए क्योंकि दोनों भाषाओं को एक साथ सीखना छात्र के लिए मुश्किल है. सवाल ये है कि जब जिला शिक्षा अधिकारी इस बात को जानते हैं कि एक साथ दो भाषाएं सीखना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. तो इसकी सुध उन्होंने पहले क्यों नहीं ली? क्यों वो तब जागे जब स्कूल का वीडियो इंटेरेंट पर वायरल हुआ?
मामले के मद्देनजर यूजर्स क्या कह रहे हैं? उनकी किसी तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं? वो बाद की बात है लेकिन जिस चीज पर चर्चा होनी चाहिए वो है शिक्षा के प्रति स्कूल और टीचर्स दोनों का रवैया. जिन्होंने शिक्षा को मजाक बना के रख दिया है.
सवाल ये है कि क्या स्कूल के प्रबंधन को कभी इस बात का ख्याल नहीं आया कि स्कूल में पढ़ने वाले रोबोट नहीं इंसान है. क्योंकि मामले में रोबोट का जिक्र हो ही चूका है तो आगे कोई और बात करने से पहले ये बता देना जरूरी हो जाता है कि यदि रोबोट भी होता तो वो भी एक ही काम करता. ध्यान रहे रोबोटिक्स में मल्टीटास्किंग को लेकर जो भी मामले सामने आए हैं परिणाम कोई बहुत ज्यादा अच्छे नहीं हैं.
बहरहाल, लेख की शुरुआत में ही अपने बिहार के इंटरनेट सेंसेशन 11 साल के सोनू कुमार का जिक्र किया है. तो भले ही सोनू को लेकर तमाम बातें हो लेकिन बिहार जैसे राज्य में सभी को शिक्षा मिलनी चाहिए और सबसे जरूरी ये कि शिक्षा, उसका स्वरुप उसका तरीका तीनों ही सही हों. चाहे कटिहार का आदर्श मिडिल स्कूल हो या फिर बिहार या कहीं और का कोई स्कूल वहां पढ़ाने वाले शिक्षकों को इस बात को समझना होगा कि अब दौर इंटरनेट का है. वीडियो वायरल होने और ट्विटर/ फेसबुक का है तो ऐसी धांधली अब और बर्दाश्त नहीं की जाएगी.
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