वैसे तो जिंदगी में गौर करने वाली चीज़ें बहुत सी है. मेरे हिसाब से दिल्ली के metro में सफ़र (suffer) के दौरान गौर करने वाली ऐसी कई चीज़ें हैं जो आपको हँसा सकती है, रुला सकती है, डरा सकती है, गुस्सा दिला सकती है और सोचने पर मजबूर कर सकती है. आखिर ज़िन्दगी तो एक ही है बस जीने के तरीक़े अलग-अलग है.
एक technical glitch और आप राम-भरोसे!
Metro में सबसे पहली चीज़ जो मैं देखकर हैरान होता हूँ वो है इसका बढ़ता इस्तेमाल. हालांकि यह स्वाभाविक है कि दिल्ली जैसे शहर में इसका होना बेहद ज़रूरी हो जाता है. और तो और, बारिश के दिनों में यह एक अच्छा विकल्प बन जाता है पर इसमें भी झोल है- और उस झोल का नाम है technical glitch! ज़रा सी बाऱिश हो जाए फिर बस - आप अपनी मंज़िल तक पहुँचे ना पहुँचे, आपकी साँस ज़रूर परमात्मा के पास पहुँच जाती है! उस पर ग़लत announcement जले पर नमक छिड़कने के बराबर है. वो भी उनके लिए जो कुछ ही दिनों या कुछ ही मिनटों पहले इसकी सेवा ले चुके हों.
दिल्ली मेट्रो |
Metro और झूठा प्रेम-प्रसंग
यूँ तो हर तबके के लोग metro में सफ़र करते हैं पर कुछ लोगों से सब खीझते हैं! मिसाल के तौर पर, college के लड़के और लड़कियाँ, या फिर वो प्रेमी जोड़ा जो बस ज़िंदगी भर प्यार ही करते रहते हैं पर शादी का कोई plan नहीं होता! अरे, करो यार, खूब करो पर metro के दरवाज़े के बीचों बीच खड़े होकर नहीं!Please! नहीं, इससे किसी का कोई नुक्सान नहीं होता बस जिन्हें अपने station पर उतरना होता है वो उतरने के लिए जगह ढूँढता हैं और थक हारकर कोनी या धक्का मारकर निकल जाता है! वैसे मैंने भी कई ज्योतिषों से इसकी वजह पूछी पर बदले में...
वैसे तो जिंदगी में गौर करने वाली चीज़ें बहुत सी है. मेरे हिसाब से दिल्ली के metro में सफ़र (suffer) के दौरान गौर करने वाली ऐसी कई चीज़ें हैं जो आपको हँसा सकती है, रुला सकती है, डरा सकती है, गुस्सा दिला सकती है और सोचने पर मजबूर कर सकती है. आखिर ज़िन्दगी तो एक ही है बस जीने के तरीक़े अलग-अलग है.
एक technical glitch और आप राम-भरोसे!
Metro में सबसे पहली चीज़ जो मैं देखकर हैरान होता हूँ वो है इसका बढ़ता इस्तेमाल. हालांकि यह स्वाभाविक है कि दिल्ली जैसे शहर में इसका होना बेहद ज़रूरी हो जाता है. और तो और, बारिश के दिनों में यह एक अच्छा विकल्प बन जाता है पर इसमें भी झोल है- और उस झोल का नाम है technical glitch! ज़रा सी बाऱिश हो जाए फिर बस - आप अपनी मंज़िल तक पहुँचे ना पहुँचे, आपकी साँस ज़रूर परमात्मा के पास पहुँच जाती है! उस पर ग़लत announcement जले पर नमक छिड़कने के बराबर है. वो भी उनके लिए जो कुछ ही दिनों या कुछ ही मिनटों पहले इसकी सेवा ले चुके हों.
दिल्ली मेट्रो |
Metro और झूठा प्रेम-प्रसंग
यूँ तो हर तबके के लोग metro में सफ़र करते हैं पर कुछ लोगों से सब खीझते हैं! मिसाल के तौर पर, college के लड़के और लड़कियाँ, या फिर वो प्रेमी जोड़ा जो बस ज़िंदगी भर प्यार ही करते रहते हैं पर शादी का कोई plan नहीं होता! अरे, करो यार, खूब करो पर metro के दरवाज़े के बीचों बीच खड़े होकर नहीं!Please! नहीं, इससे किसी का कोई नुक्सान नहीं होता बस जिन्हें अपने station पर उतरना होता है वो उतरने के लिए जगह ढूँढता हैं और थक हारकर कोनी या धक्का मारकर निकल जाता है! वैसे मैंने भी कई ज्योतिषों से इसकी वजह पूछी पर बदले में उन्होंने मेरी दक्षिणा ही लौट दी.
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सत्ता से ज़्यादा seat की भूख
दिल्ली के लोग वैसे भी दुनिया भर में अपनी अकड़ और गुस्से के लिए मशहूर हैं पर हर जगह उसका exhibition कुछ ज़्यादा हो जाता है. Metro भी इससे अछूता नहीं है. मुझे तो अब तक लगता था कि सिर्फ़ general coaches में ही seat हथियाने की होड़ लगी रहती है पर जब मैं अपनी girlfriends (नहीं, वो girlfriends नहीं जो आप सोच रहे हैं) से इस बारे में बात करता हूँ तो वो वक़्त की ज़्यादा सताई लगती हैं. Ladies coach, जिसमे चढ़ना शेर के मुँह में हाथ डालने के बराबर होता है, उसमे और किस्म के characters अपना अलग ही खेल खेल रहे होते हैं. और रही बातgeneral की तो सभी लड़कों और मर्दों को blueline की तुरंत याद आ जाती है. उसमे दो फायदे थे - Staff चलाने का (जिसके लिए असलियत मेंstaff buses minimum किराया 10 रुपये तो लेती ही लेती है) और किसी भी seat पर विराजने का. दरअसल हद तो Rajiv Chowk, Yamuna Bank और Kashmere Gate जैसे स्टेशनों पर होती है जहाँ दरवाज़े खुलते ही जन सैलाब ऐसे उमड़ पड़ता है जैसे यह दुनिया की आख़री ट्रैन हो. खैर, भगवान् बचाए मुझे ऐसे लोगों से.
Metro के Amitav Ghosh और A R Rehman
माना कि हम में से कई लोगों का metro में सफ़र लंबा होता है - अब कितने देर तक ताड़े और ख़ड़े-खड़े लिए क़र्ज़ के बारे में सोचे. ख़ाली ख़ाली सा लगता है, नहीं? ऐसे में कुछ लोगों के पास अच्छी तरक़ीब होती है - अँग्रेज़ी या हिंदी की कोई ऐसी क़िताब लेकर बैठ जाओ या खड़े रहो जिसके बारे में आप जानते नहीं और पन्ने पलटते रहो, किसे पता चल रहा है- टशन का टशन लगेगा, time pass भी हो गया. क्यों? और इससे भी मन न भरे तो कान को ढ़कने जैसा headphone लगा लो और सुनते रहो कुछ भी. ज़्यादा मज़ा चाहिए तो उसी गाने को अपनी बेसुरी आवाज़ में चीख़-चीखकर गा भी लो. आसपास के लोगों की ज़िंदगी और रंगीन हो जायेगी! भई, मेरे लिए एक घंटे का metro सफ़र किसी अनुभव से कम नहीं होता और ऐसा मैं रोज़ महसूस करता हूँ. अब जो मेरी लिखी चीज़ों से इत्तेफाक़ रख़ता है वो इस पर comment करें और जो नहीं वो भी, क्योंकि...
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