महेंद्र कपूर साहब का गाया एक गाना है कि 'गमों का दौर भी आए तो मुस्कुरा कर जियो... न मुंह छुपाकर जियो! पिछले डेढ़ महीने में शायद ही कोई घर परिवार हो जिसने कोविड महामारी का दंश न झेला हो. सिस्टम की तरह समाज की सामूहिक चेतना भी दुखों में डूबी प्रकृति की निर्ममता को घबराई सी देख रही थी. आज भले आंकड़ों में स्थिति में गिरावट दिख रहा हो लेकिन लोगबाग का डर और संताप अब भी बना हुआ है. लेकिन जीवन तो एक 'शो' है जिसे 'मस्ट गो ऑन' होना ही है और यही अंतिम सत्य है क्षण भंगुरता और नश्वरता का मानवीय प्रत्युत्तर है. बीते दिनों सोशल मीडिया पर भी महामारी का असर बना हुआ था. ऑक्सीजन की व्यवस्था से लेकर दवाओं की उपलब्धता से संबंधित पोस्ट के द्वारा ट्विटर और फेसबुक पर कई ग्रुप और व्यक्तिगत स्तर पर लोग एक दूसरे की मदद में दिन रात एक किए हुए थे. अब भी ऐसे प्रयास चल ही रहे है.
लेकिन इसी निराशा के क्षण में एकाध दिन से फेसबुक पर एक नया ट्रेंड चल रहा है जिसे हैशटैग पुरानी फोटो की जेसीबी खुदाई का नाम दिया गया है. घबराएं नही इस बार जेसीबी सनी लियोनी नहीं चला रही है. इसमें लोगबाग अपने परिचितों की पुरानी यानि पांच दस वर्ष की फ़ोटो पर कमेंट कर रहे है और एक दूसरे को चिढ़ा रहे है. कल किसी ने सही कहा कि यदि फेसबुक पर होली खेली जाए तो उसका स्वरूप कुछ ऐसा ही होगा.
अच्छा इस प्रक्रिया में वह लोग भी खुश हो रहे है जिनको चिढ़ाया जा रहा है. फ़िलहाल मानवीय जीवन और देश दुनिया में व्याप्त निराशा के गहन अंधकार में ऐसे मौके लोगों को कुछ तो मानसिक राहत दे ही रहे है. अब साहब आप कहेंगे यह कौन बवाल है. तो आप सब की जानकारी के लिए बता दूं कि अब हम माने या न माने लेकिन सोशल मीडिया...
महेंद्र कपूर साहब का गाया एक गाना है कि 'गमों का दौर भी आए तो मुस्कुरा कर जियो... न मुंह छुपाकर जियो! पिछले डेढ़ महीने में शायद ही कोई घर परिवार हो जिसने कोविड महामारी का दंश न झेला हो. सिस्टम की तरह समाज की सामूहिक चेतना भी दुखों में डूबी प्रकृति की निर्ममता को घबराई सी देख रही थी. आज भले आंकड़ों में स्थिति में गिरावट दिख रहा हो लेकिन लोगबाग का डर और संताप अब भी बना हुआ है. लेकिन जीवन तो एक 'शो' है जिसे 'मस्ट गो ऑन' होना ही है और यही अंतिम सत्य है क्षण भंगुरता और नश्वरता का मानवीय प्रत्युत्तर है. बीते दिनों सोशल मीडिया पर भी महामारी का असर बना हुआ था. ऑक्सीजन की व्यवस्था से लेकर दवाओं की उपलब्धता से संबंधित पोस्ट के द्वारा ट्विटर और फेसबुक पर कई ग्रुप और व्यक्तिगत स्तर पर लोग एक दूसरे की मदद में दिन रात एक किए हुए थे. अब भी ऐसे प्रयास चल ही रहे है.
लेकिन इसी निराशा के क्षण में एकाध दिन से फेसबुक पर एक नया ट्रेंड चल रहा है जिसे हैशटैग पुरानी फोटो की जेसीबी खुदाई का नाम दिया गया है. घबराएं नही इस बार जेसीबी सनी लियोनी नहीं चला रही है. इसमें लोगबाग अपने परिचितों की पुरानी यानि पांच दस वर्ष की फ़ोटो पर कमेंट कर रहे है और एक दूसरे को चिढ़ा रहे है. कल किसी ने सही कहा कि यदि फेसबुक पर होली खेली जाए तो उसका स्वरूप कुछ ऐसा ही होगा.
अच्छा इस प्रक्रिया में वह लोग भी खुश हो रहे है जिनको चिढ़ाया जा रहा है. फ़िलहाल मानवीय जीवन और देश दुनिया में व्याप्त निराशा के गहन अंधकार में ऐसे मौके लोगों को कुछ तो मानसिक राहत दे ही रहे है. अब साहब आप कहेंगे यह कौन बवाल है. तो आप सब की जानकारी के लिए बता दूं कि अब हम माने या न माने लेकिन सोशल मीडिया की आभासी दुनिया कम से कम भारतीय परिप्रेक्ष्य में घर घरौटा टाइप की दुनिया को प्रदर्शित करती ही है.
आय दिन यहां होने वाली चर्चा, परिचर्चा,साहित्यिक अथवा राजनीतिक मुद्दों पर आलोचना और हैशटैग आंदोलन के प्रति लोगों का चाव और गंभीर विमर्श इसे वास्तविकता से जोड़ता है. या हम कह सकते है समाज का मूड कैसा है इसका भी आंकलन होता रहता है. इस बात में कोई संदेह नहीं है सोशल मीडिया किसानों का और श्रमिकों का अथवा समग्र भारत का प्रतिनिधित्व करता है लेकिन इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता भारत की आत्मा और बहुलतावाद यहां भी बरकरार है.
ऐसे गाढ़े समय में जो भी जीवन में आशा की रोशनी यहां दिख रही है उसे सलाम करना चाहिए. एक बात और स्पष्ट कर दूं. इस हंसी खुशी के माहौल को बनाने वाले वही लोग है जो रात दिन लोगों की मदद में एक किए थे. कुल मिलाकर यह समूची गतिविधि तनाव को कम करके फिर से जनजीवन को सामान्य करने की कवायद भर है.
पिछले साल जब कोरोना के आमद को रोकने के लिए लॉकडॉउन लगा था तब भी साड़ी चैलेंज और जलेबी चैलेंज के माध्यम से सोशल मीडिया का माहौल रसासिक्त बना हुआ था. लेकिन पिछले साल हमनें आसपास इस विभीषिका को न तो महसूस ही किया था और न झेला ही था. इसमें कोई संदेह नहीं है कई मौकों और माध्यमों में सूचनाओं के आपूर्ति के अनियंत्रित और गैरजिम्मेदाराना व्यवहार ने आमजन के मन भय और आशंका को और प्रगाढ़ ही किया है.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि कोरोना घातक है और फ़िलहाल इससे बचाव ही एकमात्र उपचार है. लेकिन ऐसे माहौल में लोगों के मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल भी रखना चाहिए. मीडिया और मनोचिकित्सक निरंतर इस बात से आगाह कर रहे है कि अस्पताल से घर आए लोग और उनके परिजन अभी एक इस ट्रामा से शारीरिक और मानसिक रूप में उबरने में एक लंबा समय लेंगे.
ऐसे में हम सब की जिम्मेदारी है कि जो शेष हाथ में उसे कसकर पकड़ ले. यानि अपने कष्टों को छुपाकर लोगों को इस बात का एहसास कराते रहे कि "नहीं अब भी बहुत कुछ है जिसे साथ मिलकर जीना है! जीवन के इस शो को अभी चलना है. एक दूसरे से चुहल करना है. लड़ना है झगड़ना है रूठना है मनाना है और हंसी के बहारों को फिर से बुलाना है. पार्कों में नई पीढ़ियों को फिर से खेलना है. यह सब जल्दी होगा. जरूर होगा.
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