सोशल मीडिया का इस्तेमाल किसी के लिए कितना जरूरी हो सकता है? आजकल कई लोग ऐसे हैं जो सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने और अपने विचार सोशल मीडिया पर शेयर करने के आदी हो गए हैं. चाहें गऊ रक्षा की बात हो या फिर भारत और श्रीलंका के टेस्ट मैच की.
सोशल मीडिया के गुस्साए सिपाहियों में से कई ऐसे होते हैं जो हर मुद्दे पर बोलना अपनी शान समझते हैं और ये कारण भले ही सोशल जिंदगी पर कोई असर न डाले, लेकिन ये प्रोफेश्नल लाइफ पर जरूर असर डाल सकती है.
अगर ऑनलाइन किसी पॉलिटिकल मुद्दे या किसी धार्मिक मुद्दे पर आप बहस करते हैं तो इससे आने वाले समय में नौकरी मिलने में समस्या हो सकती है. हाल ही में हुए एक सर्वे के मुताबिक 17 प्रतिशत कंपनियां ऐसा कैंडिडेट नहीं चुनती हैं जो सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा एक्टिव रहता हो. इतना ही नहीं, अगर कैंडिडेट सोशल मीडिया पर बिलकुल भी एक्टिव नहीं है तो 57 प्रतिशत कंपनियां ऐसे कैंडिडेट को नहीं चुनतीं.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक आज के समय में 92 प्रतिशत कंपनियां सोशल मीडिया का सहारा लेती हैं किसी कैंडिडेट को चुनने के लिए और उसकी सोशल लाइफ का पता लगाकर ये देखा जाता है कि कंपनी के लिए वो इंसान सही है या नहीं. इससे कैंडिडेट की क्वालिटी का भी पता लगाया जाता है और कंपनियों को कम समय लगता है नौकरी देने में.
क्वोरा से लेकर लिंकडिन तक ऐसा कई बार हुआ है कि किसी इंसान को सिर्फ सोशल मीडिया के कारण जॉब मिल गई हो. क्वोरा के यूजर जॉश लिम को जॉब सिर्फ इसलिए मिल गई थी क्योंकि कंपनी के सीईओ को उसका जवाब काफी पसंद आया था.
सोशल मीडिया प्रोफाइल कंपनियां इसलिए भी देखती हैं ताकि ये जान सकें कि कंपनी में कैंडिडेट को रोल के हिसाब से वो काम कर पाएगा या नहीं. जैसे डिजिटल और मार्केटिंग के लिए सोशल मीडिया पर एक्टिव रहना काफी जरूरी है. इससे...
सोशल मीडिया का इस्तेमाल किसी के लिए कितना जरूरी हो सकता है? आजकल कई लोग ऐसे हैं जो सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने और अपने विचार सोशल मीडिया पर शेयर करने के आदी हो गए हैं. चाहें गऊ रक्षा की बात हो या फिर भारत और श्रीलंका के टेस्ट मैच की.
सोशल मीडिया के गुस्साए सिपाहियों में से कई ऐसे होते हैं जो हर मुद्दे पर बोलना अपनी शान समझते हैं और ये कारण भले ही सोशल जिंदगी पर कोई असर न डाले, लेकिन ये प्रोफेश्नल लाइफ पर जरूर असर डाल सकती है.
अगर ऑनलाइन किसी पॉलिटिकल मुद्दे या किसी धार्मिक मुद्दे पर आप बहस करते हैं तो इससे आने वाले समय में नौकरी मिलने में समस्या हो सकती है. हाल ही में हुए एक सर्वे के मुताबिक 17 प्रतिशत कंपनियां ऐसा कैंडिडेट नहीं चुनती हैं जो सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा एक्टिव रहता हो. इतना ही नहीं, अगर कैंडिडेट सोशल मीडिया पर बिलकुल भी एक्टिव नहीं है तो 57 प्रतिशत कंपनियां ऐसे कैंडिडेट को नहीं चुनतीं.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक आज के समय में 92 प्रतिशत कंपनियां सोशल मीडिया का सहारा लेती हैं किसी कैंडिडेट को चुनने के लिए और उसकी सोशल लाइफ का पता लगाकर ये देखा जाता है कि कंपनी के लिए वो इंसान सही है या नहीं. इससे कैंडिडेट की क्वालिटी का भी पता लगाया जाता है और कंपनियों को कम समय लगता है नौकरी देने में.
क्वोरा से लेकर लिंकडिन तक ऐसा कई बार हुआ है कि किसी इंसान को सिर्फ सोशल मीडिया के कारण जॉब मिल गई हो. क्वोरा के यूजर जॉश लिम को जॉब सिर्फ इसलिए मिल गई थी क्योंकि कंपनी के सीईओ को उसका जवाब काफी पसंद आया था.
सोशल मीडिया प्रोफाइल कंपनियां इसलिए भी देखती हैं ताकि ये जान सकें कि कंपनी में कैंडिडेट को रोल के हिसाब से वो काम कर पाएगा या नहीं. जैसे डिजिटल और मार्केटिंग के लिए सोशल मीडिया पर एक्टिव रहना काफी जरूरी है. इससे नौकरी देने वाले को साफ समझ आ जाता है कि इंसान किस तरह का रोल निभा पाएगा.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ सोशल मीडिया प्रोफाइल से ही सब सही से समझ आ जाता है. बहुत अच्छे इंजीनियर कई बार सोशल मीडिया पर एक्टिव नहीं रहते हैं, लेकिन वो टेक इवेंट्स आदि में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. सोशल मीडिया बस किसी भी कैंडिडेट की अहमियत थोड़ी बढ़ जाती है. अगर कोई सोशल मीडिया पर अपने विचार प्रकट कर रहा है तो ये उसकी अपनी सोच है, लेकिन वो इसे कैसे प्रकट कर रहा है ये कंपनी जरूर देखना चाहेगी.
बात तो सही है. जरूरत से ज्यादा ट्रोल करने वाले लोगों को, पूरा दिन सोशल मीडिया पर सिर्फ बकैती करने वाले लोगों को तो आम इंसान भी पसंद नहीं करता तो फिर ये तो कंपनियां हैं. सीधी सी बात ये है कि अब नौकरी पाने या गंवाने का एक अहम कारण सोशल मीडिया भी बन गया है. न जाने कितने ही ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे जहां लोगों ने सिर्फ एक गलत सोशल मीडिया पोस्ट के कारण अपनी नौकरी गंवा दी हो. तो जनाब जो भी करिए सोच समझकर करिए... बस इतना ही कहना है..
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