भगवान कृष्ण की अनेक लीलाओं से उनके भक्त वाकिफ हैं. पर कृष्ण की एक लीला देश के लिबरलों ने गढ़ी है. पिछली तीन-चार वर्षों से कृष्ण की एक पेंटिंग शेयर की जा रही है. बताया जा रहा है कि 17वीं-18वीं सदी में बनी से पेंटिंग में कृष्ण अपने साथियों को ईद का चांद दिखा रहे हैं. पेंटिंग में नंद ने मुगलों वाली पोशाक पहनी हुई है और टोली में कुछ मुसलमान भी नजर आ रहे हैं. कृष्ण की इस लीला को हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल बताने का सिलसिला इस बार नए मोड़ पर पहुंच गया है.
कला और इतिहास के जानकारों ने इस पेंटिंग पर अपनी सफाई पेश की है, जिसके बाद शायद अब ये पेंटिंग गलत जानकारी के साथ शेयर न हो...
पहले वो तथ्य जो इस पेंटिंग के बारे में सोशल मीडिया पर कहे जा रहे हैं:
- ये सन् 1700 से 1800 के बीच बनाई गई पेंटिंग है.
- कृष्ण अपने साथियों को ईद का चांद दिखा रहे हैं. जिसमें मुगलों वाली पोशाक पहने नंद भी शामिल हैं.
- ये भी कहा जा रहा है कि ये पेंटिंग मुगलों ने बनाई थी. या मुसलमानों द्वारा ही बनाई गई है.
मशहूर कला-इतिहासकार बीएन गोस्वामी का स्पष्टीकरण :
साराभाई फाउंडेशन के मशहूर कला-इतिहासकार बीएन गोस्वामी ने इस पेंटिंग के कुछ तथ्यों पर से पर्दा उठाया है. उनके अनुसार ये पेंटिंग भागवत पुराण के एक दृश्य को दिखाती है. इस तरह की अन्य पेंटिंग टिहरी-गढ़वाल कलेक्शन की हैं, जिन्हें नैनसुख पहाड़ी और मानकु के खानदान में बनाया गया था. वे इस बारे में और क्या बताते हैं, आइए जानते हैं :
क्या तर्क दिए गए हैं इस पेंटिंग...
भगवान कृष्ण की अनेक लीलाओं से उनके भक्त वाकिफ हैं. पर कृष्ण की एक लीला देश के लिबरलों ने गढ़ी है. पिछली तीन-चार वर्षों से कृष्ण की एक पेंटिंग शेयर की जा रही है. बताया जा रहा है कि 17वीं-18वीं सदी में बनी से पेंटिंग में कृष्ण अपने साथियों को ईद का चांद दिखा रहे हैं. पेंटिंग में नंद ने मुगलों वाली पोशाक पहनी हुई है और टोली में कुछ मुसलमान भी नजर आ रहे हैं. कृष्ण की इस लीला को हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल बताने का सिलसिला इस बार नए मोड़ पर पहुंच गया है.
कला और इतिहास के जानकारों ने इस पेंटिंग पर अपनी सफाई पेश की है, जिसके बाद शायद अब ये पेंटिंग गलत जानकारी के साथ शेयर न हो...
पहले वो तथ्य जो इस पेंटिंग के बारे में सोशल मीडिया पर कहे जा रहे हैं:
- ये सन् 1700 से 1800 के बीच बनाई गई पेंटिंग है.
- कृष्ण अपने साथियों को ईद का चांद दिखा रहे हैं. जिसमें मुगलों वाली पोशाक पहने नंद भी शामिल हैं.
- ये भी कहा जा रहा है कि ये पेंटिंग मुगलों ने बनाई थी. या मुसलमानों द्वारा ही बनाई गई है.
मशहूर कला-इतिहासकार बीएन गोस्वामी का स्पष्टीकरण :
साराभाई फाउंडेशन के मशहूर कला-इतिहासकार बीएन गोस्वामी ने इस पेंटिंग के कुछ तथ्यों पर से पर्दा उठाया है. उनके अनुसार ये पेंटिंग भागवत पुराण के एक दृश्य को दिखाती है. इस तरह की अन्य पेंटिंग टिहरी-गढ़वाल कलेक्शन की हैं, जिन्हें नैनसुख पहाड़ी और मानकु के खानदान में बनाया गया था. वे इस बारे में और क्या बताते हैं, आइए जानते हैं :
क्या तर्क दिए गए हैं इस पेंटिंग को लेकर...
- गोस्वामी कहते हैं कि उन्होंने भागवत पुराण और टिहरी-गढ़वाल शैली की तमाम पेंटिग का अध्ययन किया है, लेकिन ऐसी पेंटिंग कभी नहीं देखी. (ऐसी पेंटिंग मनाकू की पहली पीढ़ी और नैनसुख ने बनाई थीं.)
- इसे ईद से जोड़कर देखने की बात बिलकुल बेतुकी है, जिसमें कहा गया है कि नंद मुगल दरबारी जैसी पोशाक पहने और उन्हीं के जैसी दाढ़ी बढ़ाए खड़े हैं.
- टिहरी-गढ़वाल शैली में भागवत पुराण को लेकर जो पेंटिंग बनाई गईं, उसमें मुस्लिम किरदार का मौजूद होना भी बेमतलब लगता है.
- हालांकि, पेंटिंग को गौर से देखने पर ये दिखाई देता है कि नंद ने जो जामा पहना है, वह हिंदू स्टाइल वाला है. जिसे बाएं बाजू की तरफ बांधा गया है.
- सबसे अव्वल और झूठी बात तो यह है कि इसे राजस्थानी पेंटिंग बताया जा रहा है. जो कि यह है ही नहीं. इस मामले में प्रो. हरबंस मुखिया जैसे स्कॉलर का नाम घसीटा जाना भी अजीब है.
- कृष्ण और बलराम का चंद्रमा की ओर इशारा करना स्कंद पुराण के 28वें अध्याय का चित्रण हो सकता है. जिसमें जिक्र है कि कृष्ण ने नंद को वरुण से बचाया था. कथा में कृष्ण अपनी मायाओं से गोपालकों के समूह का मुग्ध कर रहे हैं.
- गोस्वामी कहते हैं कि उन्हें इस पेंटिंग के बारे में नहीं पता, लेकिन यदि ये कहीं है तो उसमें भागवत पुराण की उस कथा का जिक्र भी होगा. जैसा कि इस सीरीज की बाकी पेंटिंग के साथ है.
कहां से आई यह पेंटिंग, जिससे बवाल मचा हुआ है :
इस्कॉन से जुड़े दिपांकर गुप्ता की 2015 में आई किताब 'कृष्ण के मुस्लिम भक्त' में इस तरह की पेंटिंग का जिक्र है. जिसे कल्पना बताया गया है. इस किताब के बाजार में आने के बाद से ही सोशल मीडिया में यह पेंटिंग वायरल होने लगी. 'इंडिया टुडे' से बात करते हुए दीपांकर पर भी इस बात पर सहमति जताते हैं कि उन्होंने इस पेंटिंग को मौलिक रूप में नहीं देखा है.
आखिर में एक नजर, इस पेंटिंग को लेकर सोशल मीडिया पर मचे बवाल पर...
अब बात सोशल मीडिया की जिसमें कई नेताओं ने जिनमें शशि थरूर भी शामिल हैं इस पेंटिंग को ईद से जोड़ कर शेयर कर रहे हैं. कोई इसे 16वीं सदी का बताता है, कोई इसे 17वीं सदी का लेकिन बीएन गोस्वामी के मुताबिक ये 18वीं सदी की पेंटिंग है. इसी के साथ, ये बहस भी नई नहीं है कि ये पेंटिंग ईद का चांद दिखाते हुए कृष्ण की है. दरअसल, 2017 में भी इसी तरह की बहस शुरू हुई थी जहां ईद के आस-पास इस पेंटिंग को कई लोगों ने शेयर किया था.
योगेंद्र यादव ने इस पेंटिंग के रचयिता का नाम भी बता दिया. उन्होंने इसका सोर्स नहीं बताया कि ये जानकारी उन्हें कहां से मिली थी.
लेकिन बाद में उन्हें ये पता चल गया कि आखिर पेंटिंग का असल इतिहास क्या है और ट्वीट कर उन्होंने पूरी बात साफ कर दी.
शशि थरूर ने इस पेंटिंग को शेयर किया और उन्होंने भी बिना फैक्ट चेक ये बता दिया कि ये पेंटिंग कृष्ण को ईद का चांद दिखाते हुए बनाई गई है.
'कृष्ण के मुस्लिम भक्त' नाम की किताब के लेखक इस बात को लेकर अभी भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुए और ये कहने लगे कि उन्होंने पहले ही इसे पहाड़ी पेंटिंग बताया है. सबसे पहले उन्होंने कृष्ण की इस तस्वीर को कल्पना बताया और फिर बहस भी की. योगेंद्र यादव ने इस बात को भी अपनी ट्वीट के जरिए उजागर किया.
यकीनन सोशल मीडिया पर एक वैरिफाइड अकाउंट द्वारा की गई ट्वीट हज़ारों लोगों तक पहुंचती है और लोग उसपर यकीन भी करते हैं. यहां एक लेखक दिपांकर देब ने 2015 में किताब लिखी और उसमें ऐसी फेक बात फैलाई कि ईद का चांद दिखाते हुए कृष्ण की ये पेंटिंग है. साल दर साल सोशल मीडिया पर इसी तरह की बातें शेयर होती रहती हैं. सोचने वाली बात ये है कि क्या बिना सवाल किए हम इन बातों को एक बार में मान लेंगे?
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