पहले नाना-तनुश्री फिर AIB की टीम, और सबसे ताजे में फिल्म एक्टर आलोक नाथ MeToo के मामले सुर्ख़ियों बटोर रहे हैं. मेन स्ट्रीम मीडिया के बाद, बात अगर सोशल मीडिया की हो तो वहां भी ऐसे तमाम लोग दिख रहे हैं जो लम्बे-लम्बे पोस्ट लिखकर अपने साथ हुए शोषण को दुनिया के सामने ला रहे हैं. क्या पत्रकार, क्या ब्यूरोक्रेट. कॉर्पोरेट से लेकर डॉक्टर्स इंजीनियर्स तक पर यौन शोषण के आरोप लग रहे हैं. उसपर उन्हें तलब करके जवाब मांगा जा रहा है. शोषण कैसा भी हो गलत है. साथ ही तब ये वाकई घिनौना है जब इसके पीछे किसी तरह का कोई मकसद छुपा हो. कहना गलत नहीं है कि जिस तरह एक के बाद एक मामले खुल रहे हैं आम आदमी के सामने डर की स्थिति बनी हुई है. लोग इस बात को लेकर पशोपेश में हैं कब कौन किसके ऊपर इल्जाम लगा दे और ये बात बदनामी का सबब बन जाए.
आगे मैं जो बातें रखने जा रहा हूं, उनमें सिर्फ पुरुषों के आचरण का ही विश्लेषण होगा. ये कहने में मुझे कोई गुरेज नहीं है कि चाहे मैं हूं या कोई और, हममें से कोई दूध का धुला नहीं है. जाने अनजाने हमने ऐसा बहुत कुछ किया है जिस पर यदि विचार किया जाए तो शायद रौंगटे खड़े हो जाएं. दूसरों की बात करने में कोई फायदा नहीं है. बेहतर है इंसान अपने विषय में बात करे. मैं अपने विषय में बात करूंगा. इस हैश टैग से न सिर्फ मैं परेशान हूं, बल्कि काफी हद तक डरा हुआ भी हूं. ऐसा इसलिए क्योंकि मुझे नहीं पता कि कब कौन इस हैशटैग Me Too का सहारा लेकर मेरे ऊपर इल्जाम लगा दे कि मैंने उसे तकलीफ दी है. या किसी भी तरह उसका 'शोषण' करने में मैंने एक अहम भूमिका निभाई.
मैंने इस विषय पर बहुत सोचा कि आखिर वो कौन कौन से संभावित मौके थे जब मैंने किसी का शोषण किया या किसी तरह के शोषण में भागीदार...
पहले नाना-तनुश्री फिर AIB की टीम, और सबसे ताजे में फिल्म एक्टर आलोक नाथ MeToo के मामले सुर्ख़ियों बटोर रहे हैं. मेन स्ट्रीम मीडिया के बाद, बात अगर सोशल मीडिया की हो तो वहां भी ऐसे तमाम लोग दिख रहे हैं जो लम्बे-लम्बे पोस्ट लिखकर अपने साथ हुए शोषण को दुनिया के सामने ला रहे हैं. क्या पत्रकार, क्या ब्यूरोक्रेट. कॉर्पोरेट से लेकर डॉक्टर्स इंजीनियर्स तक पर यौन शोषण के आरोप लग रहे हैं. उसपर उन्हें तलब करके जवाब मांगा जा रहा है. शोषण कैसा भी हो गलत है. साथ ही तब ये वाकई घिनौना है जब इसके पीछे किसी तरह का कोई मकसद छुपा हो. कहना गलत नहीं है कि जिस तरह एक के बाद एक मामले खुल रहे हैं आम आदमी के सामने डर की स्थिति बनी हुई है. लोग इस बात को लेकर पशोपेश में हैं कब कौन किसके ऊपर इल्जाम लगा दे और ये बात बदनामी का सबब बन जाए.
आगे मैं जो बातें रखने जा रहा हूं, उनमें सिर्फ पुरुषों के आचरण का ही विश्लेषण होगा. ये कहने में मुझे कोई गुरेज नहीं है कि चाहे मैं हूं या कोई और, हममें से कोई दूध का धुला नहीं है. जाने अनजाने हमने ऐसा बहुत कुछ किया है जिस पर यदि विचार किया जाए तो शायद रौंगटे खड़े हो जाएं. दूसरों की बात करने में कोई फायदा नहीं है. बेहतर है इंसान अपने विषय में बात करे. मैं अपने विषय में बात करूंगा. इस हैश टैग से न सिर्फ मैं परेशान हूं, बल्कि काफी हद तक डरा हुआ भी हूं. ऐसा इसलिए क्योंकि मुझे नहीं पता कि कब कौन इस हैशटैग Me Too का सहारा लेकर मेरे ऊपर इल्जाम लगा दे कि मैंने उसे तकलीफ दी है. या किसी भी तरह उसका 'शोषण' करने में मैंने एक अहम भूमिका निभाई.
मैंने इस विषय पर बहुत सोचा कि आखिर वो कौन कौन से संभावित मौके थे जब मैंने किसी का शोषण किया या किसी तरह के शोषण में भागीदार रहा. ऐसे कई पॉइंट्स थे जो मेरी नजर में आए और जिनपर विचार करते हुए मुझे महसूस हुआ कि इनकी बदौलत मैं दोषी साबित हो सकता हूं.
पुरानी रिलेशनशिप
आज भले ही मैं विवाहित हूं मगर बहुत लोगों की तरह मेरे भी पास्ट रिलेशनशिप रह चुके हैं. ऐसे में यदि मेरी 5 साल पुरानी कोई पूर्व प्रेमिका इस हैश टैग के जरिये मुझ पर ये इल्जाम लगा दे कि उस समय मैंने उसके साथ जीने मरने की कसमें खाई थीं. चांद सितारे तोड़ के उसके क़दमों में बिछाने की बात की थी. लेकिन ऐसा कुछ किया नहीं. और इन बातों को आधार बनाते हुए इसे आर्थिक, मानसिक, शारीरिक 'शोषण' का नाम दिया जाए, तो ऐसा ही सही.
इनबॉक्स की आशिकी
सोशल मीडिया के इस दौर में भले ही आदमी के पास सब कुछ क्यों न हो मगर एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो महिलाओं को इनबॉक्स में हेलो-हाय, गुड मॉर्निंग-गुड नाईट करता है. इस बातचीत में वाओ, सेक्सी, हॉट, नाइस पिक लिखना रवायत सी है. अतः अगर मैंने भी किसी के साथ ऐसा किया वो और उससे वो आहत हुआ हो तो ऐसे लोगों से मेरा बस इतना निवेदन है कि हर समस्या का समाधान स्क्रीनशॉट्स तो बिल्कुल भी नहीं हैं.
किसी सहयोगी को गले लगाना
कॉरपरेट में नौकरी के चलते कई ऐसे मौके आए जब किसी पार्टी या इवेंट में फीमेल कुलीग को गले गले लगाया है. अब चूंकि बात गुड टच और बैड टच पर आकर सिमट गई है तो मुझे इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि मेरा कौन सा टच, किसे बैड लगा और वो आहत हुआ है. हो सकता है कि कल कोई इसी को बड़ा मुद्दा बनाकर पेश करे और मैं एक ऐसी मुसीबत की गिरफ्त में आ जाऊं.
हंसी मजाक में की हुई बातें
शोषण केवल शारीरिक नहीं होता. किसी को हंसी मजाक में कुछ कह देना भी उसे मानसिक तनाव में डाल सकता है. इसलिए अगर मैंने किसी महिला के साथ हंसी मजाक किया तो अब मैं प्रार्थना ही कर सकता हूं कि वह किसी को Me too की हद तक बुरा न लगा हो.
भद्दे इशारे
इस बात के लिए मुझे अपने विश्वविद्यालय के दिनों में जाना होगा. हो सकता है तब मैं अपने दोस्तों के साथ हूं और हम कोई ऐसी बात कर रहे हों जिसका लेना या देना केवल हमसे हो. मगर पास खड़ी कोई महिला यदि इसे अपने पर ले ले, तो अब उस भूल का कोई जवाब नहीं है. यही वो भद्दा इशारा था, तो था.
अभी फ़िलहाल मुझे इतने ही पॉइंट्स याद आ रहे हैं जो मुझे इस अभियान में दोषी बना सकते हैं. अतः मैं उन तमाम लोगों से माफ़ी चाहूंगा जिनको न चाहते हुए भी मेरी तरफ से तकलीफ हुई और उनको महसूस हुआ कि मैं किसी भी तरह उनके शोषण में शामिल रहा.
हो सकता है कि इसे पढ़कर सवाल आए कि आखिर ये बातें क्यों? तो इसका जवाब बस इतना है कि, Me too अभियान में जितनी भयानक कहानियां सामने आ रही हैं, उससे ये अंदाजा लगाना आसान है कि उनके लिए समाज में कितनी चुनौतियां मौजूद हैं. पुरुष अपने बर्ताव को जायज ठहराने के लिए तमाम तर्क दे रहे हैं, जो काफी हद तक गले नहीं उतरते हैं. लेकिन इस Me too अभियान में कुछ महिलाओं के भी आरोप ऐसे हैं, जो गले नहीं उतर रहे हैं. तो समाज की बेहतरी के लिए सबसे अच्छा ये है कि हर पुरुष अपने भीतर झांके और खुद में हर वो संभव सुधार लाने की कोशिश करे, जिससे महिलाओं को दोबारा Me too अभियान की जरूरत न पड़े.
यूं भी माफ़ी मांगने में कोई बुराई नहीं है. यदि मुझ से गलती हुई है तो मेरे लिए ये जरूरी हो जाता है कि मैं ईमानदारी के साथ उसे स्वीकार करूं और उस पर अपनी तरफ से सफाई दूं. Me too के मामले में माफ करना - न करना, ये महिला का ही क्षेत्राधिकार होना चाहिए.
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