नॉर्थ ईस्ट कहने को तो हमारे देश का हिस्सा है, लेकिन यहां के लोग अपने ही देश में भेदभाव का शिकार हैं. इस इलाके के लोग अपने रंग-रूप, खान पान और भाषा की वजह से हमेशा नस्लीय भेदभाव का शिकार होते हैं. यहां का कोई बाशिंदा अगर किसी और शहर में आ जाए तो, आश्चर्य नहीं कि लोग उसका जीना मुश्किल कर देते हैं. इन्हें आम भाषा में चाइनीज़, चिंकी या मोमो जैसे नामों से बुलाया जाता है. और तरह-तरह के अजीबोगरीब सवाल भी पूछे जाते हैं, जैसे- तुम लोगों को चाइनीज़ खाना पसंद होगा न? वहां के लोग कुत्ता भी खा लेते हैं न?
शिलॉन्ग के रहने वाले स्टैंडअप कॉमेडियन अभिनीत मिश्रा एक वीडियो लेकर आए हैं जिसके जरिए उन्होंने कोशिश की है कि वो नॉर्थ ईस्ट के लोगों के प्रति गलत धारणाओं को दूर कर सकें. अपने मजाकिया और व्यंगात्मक लहजे में उन्होंने बहुत सी बातें सामने रखी हैं जो शायद लोगों के दिमाग के जाले जरूर साफ कर देंगी.
देखिए वीडियो-
अभिनीत ने तो इस भेदभाव को अपने मजाकिया अंदाज में बयां कर दिया लेकिन हर उत्तर पूर्वी अभिनीत जैसा नहीं होता, अपने साथ हो रहे व्यवहार को लेकर उनका दिल हमेशा दुखता है, जिसे वो बयां भी नहीं कर पाते. कोई माने या न माने, लेकिन ये सच है कि नॉर्थ ईस्ट के लोग अपने ही देश में अकेला महसूस करते हैं. उन्हें चिढ़ाने और परेशान करने वालों को तो पूर्वोत्तर में आने वाले राज्यों के नाम तक नहीं पता होते. और वो इन लोगों के बारे में कई भ्रांतियां पाले होते हैं. कुछ तो वीडियों में अभिनीत ने बताई हैं, विस्तार से हम बताते हैं-
- नॉर्थ ईस्ट के लोग पाश्चात्य बनते हैं और भारतीय संस्कृति से नफरत करते हैं-
अंग्रेजों के जमाने में उनके चर्चों ने ब्रह्मपुत्र...
नॉर्थ ईस्ट कहने को तो हमारे देश का हिस्सा है, लेकिन यहां के लोग अपने ही देश में भेदभाव का शिकार हैं. इस इलाके के लोग अपने रंग-रूप, खान पान और भाषा की वजह से हमेशा नस्लीय भेदभाव का शिकार होते हैं. यहां का कोई बाशिंदा अगर किसी और शहर में आ जाए तो, आश्चर्य नहीं कि लोग उसका जीना मुश्किल कर देते हैं. इन्हें आम भाषा में चाइनीज़, चिंकी या मोमो जैसे नामों से बुलाया जाता है. और तरह-तरह के अजीबोगरीब सवाल भी पूछे जाते हैं, जैसे- तुम लोगों को चाइनीज़ खाना पसंद होगा न? वहां के लोग कुत्ता भी खा लेते हैं न?
शिलॉन्ग के रहने वाले स्टैंडअप कॉमेडियन अभिनीत मिश्रा एक वीडियो लेकर आए हैं जिसके जरिए उन्होंने कोशिश की है कि वो नॉर्थ ईस्ट के लोगों के प्रति गलत धारणाओं को दूर कर सकें. अपने मजाकिया और व्यंगात्मक लहजे में उन्होंने बहुत सी बातें सामने रखी हैं जो शायद लोगों के दिमाग के जाले जरूर साफ कर देंगी.
देखिए वीडियो-
अभिनीत ने तो इस भेदभाव को अपने मजाकिया अंदाज में बयां कर दिया लेकिन हर उत्तर पूर्वी अभिनीत जैसा नहीं होता, अपने साथ हो रहे व्यवहार को लेकर उनका दिल हमेशा दुखता है, जिसे वो बयां भी नहीं कर पाते. कोई माने या न माने, लेकिन ये सच है कि नॉर्थ ईस्ट के लोग अपने ही देश में अकेला महसूस करते हैं. उन्हें चिढ़ाने और परेशान करने वालों को तो पूर्वोत्तर में आने वाले राज्यों के नाम तक नहीं पता होते. और वो इन लोगों के बारे में कई भ्रांतियां पाले होते हैं. कुछ तो वीडियों में अभिनीत ने बताई हैं, विस्तार से हम बताते हैं-
- नॉर्थ ईस्ट के लोग पाश्चात्य बनते हैं और भारतीय संस्कृति से नफरत करते हैं-
अंग्रेजों के जमाने में उनके चर्चों ने ब्रह्मपुत्र घाटी को छोड़कर नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम और उत्तर पूर्व के कुछ अन्य राज्यों पर जबरदस्त प्रभाव डाला था. पहले इन राज्यों की जनजातियां अलग थीं और अपने पुराने रीति-रिवाजों को मानती थीं लेकिन अंग्रेजों के संपर्क में आने के बाद, उन्होंने खुद को ईसाई धर्म में परिवर्तित कर लिया और तब से, उनकी जीवनशैली में पश्चिमीकरण आ गया. वो पाश्चात्य होने का ढोंग नहीं करते बल्कि वो तो पश्चिमी मूल्यों के साथ बड़े होते है.
- पूर्वोत्तर की लड़कियां बेशर्म होती हैं और पुरुषों को उत्तेजित करने वाले कपड़े पहनती हैं-
यहां की संस्कृति अलग है. और इनकी संस्कृति पर पश्चिम का प्रभाव है. यहां लड़कियों को अपने मन का पहनने की आजादी होती है. वो फैशन को ज्यादा तवज्जो देती हैं और जब वो बाहर संवतंत्र होकर कुछ पहनती हैं और हंसती हैं तो लोग उन्हें गलत समझते हैं.
- उन्हें केवल मस्ती करना पसंद होता है और वो कम पढ़े-लिखे होते हैं, इसलिए सिर्फ चौकीदारी करते हैं या मोमोज़ बेचते हैं-
ये सिर्फ लोगों का भ्रम है कि पूर्वोत्तर के लोग कम पढ़े लिखे होते हैं और सिर्फ मस्ती करते हैं. हो सकता है कि यहां के लोगों की जनसंख्या बाकी राज्यों की तुलना में कम हो लेकिन हकीकत ये है कि यहां के लोग भी भारत के अच्छे इंस्टीट्यूट्स में पढ़ते हैं और बाकियों की तरह ही डॉक्टर, इंजीनियर और अन्य अच्छे प्रोफेशनल्स हैं. रही बात मोमोज बेचने की, तो ये कुछ लोगों का मन पसंद काम हो सकता है.
- वो कुत्ते से लेकर हर अजीब चीज खाते हैं-
कुत्ते या गाय का मीट हर कोई नहीं खाता. नागा और मीजो आदीवासी ही कुत्ते का मीट खाते हैं. उनके खाने में कुत्ते के अलावा सांप, बिच्छू जैसे जानवर भी शामिल हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि सारे पूर्वोत्तरी लोग इस तरह की चीजें खाना पसंद करते हैं. कुछ लोगों के खान-पान की वजह से पूरे नॉर्थ ईस्ट को बदनाम करना गलत है.
- हर पूर्वोत्तरी 'चिंकी' होता है-
ऐसा नहीं है कि यहीं के लोगों की शक्लें एक जैसे हैं. बल्कि गौर किया जाए तो नेपाल के आस-पास के इलाकों के लोगों के नैन-नक्श भी ऐसे ही होते हैं. लेकिन पूर्वोत्तर के लोगों को ही 'चिंकी' बुलाया जाता है. और असम तो पूर्वोत्तर में ही है फिर भी वहां के लोगों की शक्ल पूरी दुनिया के लोगों की से मेल खाती है.
- वो जंगलों में रहते हैं-
ये पूर्वोत्तरी लोगों के बारे में एक अजीब धारणा है कि वो आदिवासियों की तरह जंगलों में रहते हैं. जबकि सच्चाई ये है कि वहां भी उसी तरह के घर, कॉलेज, अस्पताल, फैक्ट्री आदी हैं जैसे किसी और शहर में होते हैं.
- इन लोगों को हिंदी बोलना नहीं आता-
दक्षिण भारत की तुलना में नॉर्थ ईस्ट के लोग ज्यादा हिंदी बोल लेते हैं. दक्षिण भारत में जाकर आपको बोलचाल में भले ही परेशानी होगी लेकिन नॉर्थ ईस्ट में बोलचाल में कोई परेशानी नहीं है. असम में तो स्कूलों में तो 8वीं तक हिंदी अनिवार्य विषय है. हो सकता है हिंदी बोलने का लहजा अलग हो लेकिन वो तो किसी भी प्रदेश का अलग अलग ही होता है.
ये तो हुई पूर्वोत्तरी लोगों के बारे में लोगों के मन की भ्रांतियों की, अब बात करते हैं इनके संग हो रहे व्यवहार की. नॉर्थ ईस्ट के लोग अगर देश के किसी और कोने में चले जाएं तो उनके साथ बुरा व्यवहार होता है. यहां के छात्रों को तो लोग कमरा तक किराए पर नहीं देते. इसके अलावा उनके साथ होने वाले अत्याचार के किस्से आए दिन अखबारों में पढ़े जा सकते हैं. कोई माने या न माने, लेकिन ये सच है कि नॉर्थ ईस्ट के लोग अपने ही देश में अकेला महसूस करते हैं.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के ताजा सर्वेक्षण से ये पता चलता है कि-
- 54% उत्तर पूर्वी लोग ये मानते हैं कि जातीय असहिष्णुता के मामले में दिल्ली उनके लिए सबसे ज्यादा असुरक्षित जगह है.
- 67% उत्तर पूर्वी लोगों ने ये माना कि वो जातीय और नस्लीय भेदभाव का शिकार हुए हैं.
जामिया मिलिया इस्लामिया के उत्तर पूर्वी अध्ययन केंद्र, की एक स्टडी कहती है कि -
- मेट्रो शहरों में उत्तर पूर्वी लोगों खासकर महिलाओं के साथ होने वाले नस्लीय भेदभाव की तो कोई सीमा ही नहीं है.
- करीब 32 प्रतिशत महिलाओं का मानना है कि वो दिल्ली में नस्लीय भेदभाव की शिकार हुई हैं.
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