अक्सर विदेशी लोग कुछ मामलों में हमेशा ही गलती करते आए हैं. चाहे कनेडा के प्रधानमंत्री का जस्टिन ट्रूडो का शेरवानी पहनना हो या फिर कोल्डप्ले के वीडियो में बियोन्से का भारतीय लुक. संस्कृति की समझ के मामले में अक्सर ही उनकी आलोचना की जाती है. इस बार निशाने पर पाकिस्तान है.
पाकिस्तान का एक फैशन ब्रांड है 'सना सफीनाज़', जिसने हाल ही में 2018 स्प्रिंग समर कलैक्शन लॉन्च किया और इसके प्रमोशन कैंपेन के लिए उन्होंने अपनी मॉडल को केन्या के मसाई आदिवासियों के साथ दिखाया.
तस्वीरें अटपटी थीं क्योंकि काला-गोरा और अमीर-गरीब का फर्क साफ तौर पर दिखाई दे रहा था. और ऐसी अटपटी तस्वीरें जब इंटरनेट पर हों तो फिर लोग उन्हें ऐसे ही नहीं छोड़ते. रंगभेद और दासता दिखाती इन तस्वीरों को आड़े हाथों लिया जा रहा है. सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं, दुनिया भर से पाकिस्तान को लानतें भेजी जा रही हैं.
इन तस्वीरों को देखकर ही लगता है जैसे इनमें आदिवासियों को बैकग्राउंड में सिर्फ 'प्रॉप' की तरह ही इस्तेमाल किया गया है, जो रंगभेदी और अपमानजनक दिखाई दे रहा...
अक्सर विदेशी लोग कुछ मामलों में हमेशा ही गलती करते आए हैं. चाहे कनेडा के प्रधानमंत्री का जस्टिन ट्रूडो का शेरवानी पहनना हो या फिर कोल्डप्ले के वीडियो में बियोन्से का भारतीय लुक. संस्कृति की समझ के मामले में अक्सर ही उनकी आलोचना की जाती है. इस बार निशाने पर पाकिस्तान है.
पाकिस्तान का एक फैशन ब्रांड है 'सना सफीनाज़', जिसने हाल ही में 2018 स्प्रिंग समर कलैक्शन लॉन्च किया और इसके प्रमोशन कैंपेन के लिए उन्होंने अपनी मॉडल को केन्या के मसाई आदिवासियों के साथ दिखाया.
तस्वीरें अटपटी थीं क्योंकि काला-गोरा और अमीर-गरीब का फर्क साफ तौर पर दिखाई दे रहा था. और ऐसी अटपटी तस्वीरें जब इंटरनेट पर हों तो फिर लोग उन्हें ऐसे ही नहीं छोड़ते. रंगभेद और दासता दिखाती इन तस्वीरों को आड़े हाथों लिया जा रहा है. सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं, दुनिया भर से पाकिस्तान को लानतें भेजी जा रही हैं.
इन तस्वीरों को देखकर ही लगता है जैसे इनमें आदिवासियों को बैकग्राउंड में सिर्फ 'प्रॉप' की तरह ही इस्तेमाल किया गया है, जो रंगभेदी और अपमानजनक दिखाई दे रहा है.
एक तस्वीर में मसाई आदिवासी मॉडल के लिए छाता पकड़े हुए दिखाई दे रहा है, तो एक में मॉडल के चारों तरफ आदिवासी खड़े दिखाई दे रहे हैं. इस तरह की तस्वीरों की भरमार थी.
ये तस्वीरें तमाम कैटलॉग्स और सोशल मीडिया पर फैली हुई हैं जिनमें अफ्रीका की संस्कृति को कमतर, गंवार, अविकसित तौर पर दर्शाया जा रहा है और मॉडल को साथ दिखाकर एक क्लास का अंतर साफ तौर पर दर्शाया गया है, जो बेहद असंवेदनशील है.
लेकिन ये सुधरने वालों में से नहीं
2012 में भी सना सफीनाज़ ने इसी तरह का कैंपेन किया था जिसमें एक रेलवे स्टोशन पर कुलियों को मॉडल के बेहद महंगे सामान को ढोते दिखाया गया था. तब भी गरीबी और विलासिता का यही कंट्रास्ट दिखाया गया था.
हम इन्हें ही दोष क्यों दें, फैशन इंडस्ट्री में ये अकेले ही इतने असंवेदनशील नहीं हैं. 'वूज इंडिया' भी ये गलती कर चुका है 2008 में वूज ने भी गांव के एक व्यक्ति जिसके पैरों में चप्पल भी नहीं थी, के हाथों में ब्लू बैरी का छाता थमाकर और एक गरीब बच्चे के गले में ब्रांडेड बिब बांधकर काफी आलोचनाएं झेली थीं.
भारत हो या पाकिस्तान, जहां अमीरी और गरीबी का भेद ज़ड़ों में है, यहां इस तरह के कैंपेन इस फर्क को इस तरह दिखाकर न सिर्फ गरीबी का मजाक उड़ा रहे हैं, बल्कि इस फर्क को और गहरा कर रहे हैं. वो चाहे फिर कितनी ही सफाई देते फिरें लेकिन इस तरह की ओछी हरकत कर कोई भी ब्रांड भला किस तरह खुद को क्लासी या अव्वल दर्जे का कह सकता है. फैशन की दुनिया के नामी सितारों को अपनी चमक के आगे दुनिया ऐसी ही क्यों दिखती है. जरूरत है इस पेशे से जुड़े लोग थोड़ा सा संवेदनशील बनें.
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