राहुल राज. आपको ये नाम सुना सा लगा क्या? नहीं ना. "भक साला". अरे ये तो वो फेसबुक और ट्विटर वाला पेज है ना! इसका नाम तो राज्यसभा में टीएमसी के सांसद डेरेक ओ'ब्रायन ने भी लिया है. यही रिएक्शन आया ना आपके दिमाग में. तो जी आपको बता दें कि इस पेज के एडमिन हैं राहुल राज. भक साला इनके ही दिमाग की उपज है. तो आखिर राहुल राज है कौन और क्यों संसद में इसका नाम गूंज गया ये जानना नहीं चाहेंगे आप? पहले ये सुन लीजिए कि आखिर सांसद महोदय ने क्या कहा था-
आइए अब आपको राहुल के यहां तक पहुंचने की स्टोरी से रु-ब-रु कराएं,जो फिल्मी ही लगेगी
राहुल राज ने बहुत ही छोटी उम्र में ही प्रसिद्धी का स्वाद चख लिया था. हालांकि उनको ये शोहरत किडनैप होने की वजह से मिली थी! जी हां. सही पढ़ा आपने. पटना में रहने वाले लोगों के लिए किडनैपिंग उतनी ही नार्मल बात है जितनी दिल्ली वालों के लिए रोड रेज की घटनाएं. खैर दस साल की छोटी उम्र में राहुल को किडनैप कर लिया गया था. लेकिन इसके बाद जो कुछ हुआ उसने राहुल को फेमस कर दिया. राहुल अपहरणकर्ताओं के चंगुल से निकल भागे. उनके इस साहस के लिए सरकार ने वीरता पुरस्कार से नवाज़ा.
लेकिन राहुल की ज़िंदगी का टर्निंग प्वाइंट था सैनिक स्कूल में एडमिशन होना. राहुल का एडमिशन छठी क्लास में हुआ था. चार साल यहां पढ़ने के बाद राहुल को ये पता चल गया कि वो आर्मी ज्वाइन करना उनके बस की बात नहीं है. वैसे खुद की काबिलियत को परखने की ये जद्दोजहद IIT-BH जाकर भी खत्म नहीं हुई. यहां थर्ड में आकर इन्होंने पढ़ाई से ब्रेक ले लिया. ब्रेक लेने का ये फैसला अपने आप में साहसिक था. और इन्होंने तो साइंस का स्टूडेंट होने के बाद कला, संगीत, लिखने-पढ़ने जैसे कामों को चुना.
यहीं से भक साला की शुरुआत हुई....
राहुल राज. आपको ये नाम सुना सा लगा क्या? नहीं ना. "भक साला". अरे ये तो वो फेसबुक और ट्विटर वाला पेज है ना! इसका नाम तो राज्यसभा में टीएमसी के सांसद डेरेक ओ'ब्रायन ने भी लिया है. यही रिएक्शन आया ना आपके दिमाग में. तो जी आपको बता दें कि इस पेज के एडमिन हैं राहुल राज. भक साला इनके ही दिमाग की उपज है. तो आखिर राहुल राज है कौन और क्यों संसद में इसका नाम गूंज गया ये जानना नहीं चाहेंगे आप? पहले ये सुन लीजिए कि आखिर सांसद महोदय ने क्या कहा था-
आइए अब आपको राहुल के यहां तक पहुंचने की स्टोरी से रु-ब-रु कराएं,जो फिल्मी ही लगेगी
राहुल राज ने बहुत ही छोटी उम्र में ही प्रसिद्धी का स्वाद चख लिया था. हालांकि उनको ये शोहरत किडनैप होने की वजह से मिली थी! जी हां. सही पढ़ा आपने. पटना में रहने वाले लोगों के लिए किडनैपिंग उतनी ही नार्मल बात है जितनी दिल्ली वालों के लिए रोड रेज की घटनाएं. खैर दस साल की छोटी उम्र में राहुल को किडनैप कर लिया गया था. लेकिन इसके बाद जो कुछ हुआ उसने राहुल को फेमस कर दिया. राहुल अपहरणकर्ताओं के चंगुल से निकल भागे. उनके इस साहस के लिए सरकार ने वीरता पुरस्कार से नवाज़ा.
लेकिन राहुल की ज़िंदगी का टर्निंग प्वाइंट था सैनिक स्कूल में एडमिशन होना. राहुल का एडमिशन छठी क्लास में हुआ था. चार साल यहां पढ़ने के बाद राहुल को ये पता चल गया कि वो आर्मी ज्वाइन करना उनके बस की बात नहीं है. वैसे खुद की काबिलियत को परखने की ये जद्दोजहद IIT-BH जाकर भी खत्म नहीं हुई. यहां थर्ड में आकर इन्होंने पढ़ाई से ब्रेक ले लिया. ब्रेक लेने का ये फैसला अपने आप में साहसिक था. और इन्होंने तो साइंस का स्टूडेंट होने के बाद कला, संगीत, लिखने-पढ़ने जैसे कामों को चुना.
यहीं से भक साला की शुरुआत हुई. 3 अक्टूबर 2010 को भक साला को शुरू किया गया था. इस वक्त तक राहुल के पास कोई बड़ा विजन नहीं था. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भक साला की शुरुआत संता-बंता के जोक्स से हुई थी! इस वक्त तक खुद राहुल ने भी नहीं सोचा था कि एक यही भक साला उनके लिए देश के राजनीतिक मुद्दों पर जागरुकता फैलाने का प्लेटफॉर्म बन जाएगा.
आज भक साला के पेज पर 6 लाख के करीब फाॅलोअर्स हैं. पेज की सफलता के पीछे उन लेखकों का हाथ भी है जिन्होंने बिना किसी लालच के इस पेज पर लगातार लिखा. पेज पर कौन लिखेगा कौन नहीं के लिए भी राहुल का कॉन्सेप्ट एकदम क्लियर है. क्रिएटिव और ऐसे लोग जिनकी लिखने में रुचि हो वो ही उनकी पहली पसंद होते हैं. भक साला ऐसे लोगों और आर्टिस्ट को भी प्रोमोट करती है जिनमें स्पार्क हो.
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