रूस-यूक्रेन युद्ध नौवें दिन भी जारी है. रूस की ओर से यूक्रेन के कई शहरों पर बमबारी और मिसाइलों से लगातार हमले किए जा रहे हैं. युद्ध विभीषिका को देखते हुए भारत सरकार यूक्रेन में फंसे भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए 'ऑपरेशन गंगा' चला रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस और यूक्रेन के अपने समकक्षों से बातचीत के जरिये भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकालने की कोशिश कर रहे है. वायुसेना को भी राहत कार्य में जोड़ दिया है. बीते दिन विदेश मंत्रालय ने यूक्रेन संकट पर परामर्श कमेटी के सदस्यों (कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी शामिल थे) को ऑपरेशन गंगा से जुड़े तमाम पहलुओं के बारे में बताया. कांग्रेस सांसद शशि थरूर से लेकर शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भारत सरकार के प्रयासों की तारीफ की. लेकिन, इसके ठीक उलट राहुल गांधी ने एक वीडियो क्लिप ट्वीट कर लिखा कि 'इवैक्यूएशन एक कर्तव्य है, कोई एहसान नहीं.' दरअसल, इस वीडियो में यूक्रेन से लौटने वाली एक छात्रा ने भारत सरकार के ऑपरेशन गंगा को आड़े हाथों लेते हुए इवैक्यूएशन को लेकर अपना गुस्सा जाहिर किया था.
वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बीते दिन वाराणसी में ऑपरेशन गंगा के तहत भारत वापस लौटे छात्र-छात्राओं से बातचीत की. जिन्होंने सरकार के प्रयासों को बेहतर बताया. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि यूक्रेन से वापस लौटे लोगों के साथ ये बातचीत प्रचार का हिस्सा है. लेकिन, अहम सवाल ये है कि सोशल मीडिया पर तैरते उन वीडियो की सच्चाई क्या है, जिनमें से कुछ में छात्र सरकार की कोशिशों की तारीफ कर रहे हैं. और, कुछ छात्र ऑपरेशन गंगा को लेकर भारत सरकार के प्रयासों पर सवालिया निशान लगा रहे हैं. जबकि, भारत सरकार ने चार मंत्रियों को 'विशेष दूत' के तौर पर यूक्रेन के पड़ोसी देशों में इवैक्यूएशन प्रक्रिया में समन्वय स्थापित करने के लिए भेजा है. रोजाना अच्छी-खासी संख्या में छात्र-छात्राएं वापस भी लौट रहे हैं. और, भारत सरकार की ओर से लगातार कहा जा रहा है कि 'भरोसा रखिए.' लेकिन, सोशल मीडिया पर तैर रहे इन तमाम वीडियो को देखने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि 'भरोसा रखिए'...लेकिन, किस पर?
भारतीय छात्रों का गुस्सा जायज है?
यूक्रेन स्थित भारतीय एंबेसी ने रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले 15 फरवरी को एक एडवाइजरी जारी की थी. लेकिन, ये एडवाइजरी बहुत ही संतुलित थी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो इस एडवाइजरी की भाषा और हाल ही में यूक्रेन के खार्किव शहर को छोड़ने की भाषा में जमीन-आसमान का अंतर था. खार्किव को छोड़ने के लिए जारी की गई एडवाइजरी में साफ कहा गया था कि 'किसी भी हाल में शहर को छोड़ें.' वहीं, 15 फरवरी को जारी की गई एडवाइजरी में कहा गया था कि 'जिन छात्रों का रुकना जरूरी न हो, वो अस्थायी रूप से वापसी कर सकते हैं.' स्पष्ट सी बात है कि युद्ध छिड़ने से पहले छात्रों को शुरुआत में किसी भी तरह की गंभीर स्थिति नजर नहीं आई. और, वे वहां रुके रहे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बीते दिन वाराणसी में ऑपरेशन गंगा के तहत भारत वापस लौटे छात्र-छात्राओं से बातचीत की.
वैसे, भारत में आमतौर पर ऐसे मामलों पर असल समस्या तब शुरू होती है, जब इसमें राजनीति एंट्री ले लेती है. तो, ऐसा ही हुआ. भारत सरकार ने यूक्रेन में फंसे लोगों को निकालने के लिए कोशिशें शुरू कर दी थीं. लेकिन, वहां से जब बड़ी संख्या में भारतीय छात्रों के फंसे होने के वीडियो सामने आने लगे, तो भारत सरकार ने 'ऑपरेशन गंगा' चलाने का फैसला किया. कांग्रेस समेत विपक्षी दलों ने भारत सरकार को इसके लिए आड़े हाथों लिया. खैर, स्पष्ट सी बात है कि जो भारतीय छात्र बुरी स्थितियों में फंसे हो, उनका गुस्सा में होना स्वाभाविक माना जा सकता है. यूक्रेन में जिस तरह से छात्रों को ट्रेन में नहीं चढ़ने दिया जा रहा है. बॉर्डर पर सैनिकों द्वारा उनके साथ बदसलूकी की जा रही है. तो, यूक्रेन में इस तरह के हालातों में छात्रों का गुस्सा निकलेगा ही.
तो, भरोसा किस पर करें?
लेकिन, इन सबके बीच एजेंडाधारी लोग भी सोशल मीडिया एक्टिव हैं. जिनमें से कुछ सरकार के पक्ष की वीडियो वायरल कर रहे हैं. तो, कुछ भारत सरकार को आड़े हाथों लेने वालों की. लोगों के लिए समझना मुश्किल हो रहा है कि आखिर किस पर भरोसा किया जाए? क्योंकि, राहुल गांधी ने जिस छात्रा का वीडियो ट्वीट किया था, वो उत्तराखंड की एक कांग्रेस नेत्री की बेटी हैं. जिसकी तस्दीक उन कांग्रेस नेत्री ने खुद ही की है.
वहीं, कुछ वीडियो ऐसे हैं. जिनमें पहले भारत सरकार और इंडियन एंबेसी को कोस रहे छात्र बाद में उसी की तारीफ करते हुए देखे जा सकते हैं. ऐसे दर्जनों वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं.
इन सबके बीच सोशल मीडिया ऐसे वीडियोज और तस्वीरों से भरा पड़ा. जिनको लोग अलग-अलग दावों के साथ शेयर कर रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सरकार को कठघरे में खड़ा करने के चक्कर में लोगों द्वारा पुरानी तस्वीरों को भी बिना सोचे-समझे शेयर किया जा रहा है. बिना इस बात को समझे कि इससे लोगों के बीच पैनिक फैल सकता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो जंग के हालात में जैसी प्रतिक्रियाओं की उम्मीद की जाती है, भारतीय में वो आसानी से नहीं मिलती है. कारगिल युद्ध और मुंबई हमले के दौरान मीडिया की रिपोर्टिंग इसका जीता-जागता उदाहरण है.
निश्चित तौर से युद्धग्रस्त यूक्रेन में हालात बेकाबू हैं. क्योंकि, यूक्रेन ने रूस से जीतने के लिए अपने नागरिकों को युद्ध में उतार दिया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो यूक्रेन के राष्ट्रपति ने युद्ध को जीतने के लिए सारी हदें पार करने का मन बना लिया है. इसके लिए भारतीय छात्रों के साथ बदसलूकी जैसे घटनाएं भी हो रही हैं. हालांकि, यूक्रेन के पड़ोसी देशों में मौजूद भारत सरकार के मंत्रियों के पहुंचने से इवैक्यूएशन की प्रक्रिया में तेजी आई है. और, माना जा सकता है कि कुछ ही दिनों में इवैक्यूएशन की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी. 1990 के खाड़ी युद्ध के समय वहां मौजूद करीब 1 लाख 70 हजार लोगों को निकालने में तकरीबन 3 महीने लग गए थे. क्योंकि, यूक्रेन के हालात इराक और लीबिया जैसे देशों से अलग हैं, तो भारत सरकार को हर एक नागरिक के इवैक्यूएशन में समय लगना तय है.
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