यूं तो भारतीय समाज अच्छी स्त्री के मानक को तय करने में कभी पीछे नहीं रहा. समय के साथ बहुत सी अंकुशों की बेड़ियां टूटी. किन्तु समय समय पर स्त्री द्वेषी सोच सामने आती रही. ये स्त्री द्वेषी अनपढ़, गंवार, अपराधी नहीं. बल्कि वो लोग हैं जिनकी छवि पढ़े लिखे शिक्षित संवेदनशील और विचारवान होने की है. किसी खास समस्या को पूरे समाज की समस्या न बता कर मात्र लड़कियों पर बिल फाड़ कर उम्र और अनुभव को शर्मिंदा करते शक्तिमान. जी जी शक्तिमान यानि की मुकेश खन्ना जी. मुकेश जी का एक यूट्यूब चैनल है. जहां वो ज्ञान की बातें करते हैं. बिलकुल गांव की चौपाल की तरह. ऐसे बुज़ुर्ग जिनकी बात घर में कोई नहीं सुनता. वो हैरान परेशान और कुछ चिढ कर, मतलब और कुछ बेमतलब की बात ज्ञान में लपेट लपेट कर छोड़ते रहते हैं. मसला ये है की अमूमन हर बुज़ुर्ग की तरह मुकेश जी भी सोशल मीडिया से खफा है. खास तौर पर लड़के लड़कियों से.
तो किस्सा ये है कि मुकेश जी ने मुद्दा उठाया फेक या अनजान लड़कियों की तरफ से आने वाले 'Hi' 'विल यू टॉक टू मी? वाले मेसेज से. ठीक समझे ये 'वो वाले' मेसेज हैं जिनके पीछे के चेहरे का अता पता नहीं होता. क्या पता राहुल नाम से कोई अधेड़ सुरेंदर हो और एंजेल प्रिया के पीछे... खैर देखा जाये तो इस सात मिनट की वीडियो में रह रह कर उनका गुस्सा गुबार चिढ सब बाहर आ रहा था.
इस वीडियो में उन्होंने अपने लाल पीलों राजदुलारे आंखों के तारे भोले भाले पुरुष और लड़को को ज्ञान दिया, फुल मसाला मूवी के इश्टाइल में! यूट्यूब वीडियो के लिंक का शीर्षक था 'क्या आपको भी ऐसी लड़कियां लुभाती हैं?' बाय गॉड सोचिये कौन भला लड़का नहीं देखेगा 'ऐसे वाली' वीडियो!
मार्केटिंग का सबसे टेस्टेड तरीका अपनाया और कह डाला कि,...
यूं तो भारतीय समाज अच्छी स्त्री के मानक को तय करने में कभी पीछे नहीं रहा. समय के साथ बहुत सी अंकुशों की बेड़ियां टूटी. किन्तु समय समय पर स्त्री द्वेषी सोच सामने आती रही. ये स्त्री द्वेषी अनपढ़, गंवार, अपराधी नहीं. बल्कि वो लोग हैं जिनकी छवि पढ़े लिखे शिक्षित संवेदनशील और विचारवान होने की है. किसी खास समस्या को पूरे समाज की समस्या न बता कर मात्र लड़कियों पर बिल फाड़ कर उम्र और अनुभव को शर्मिंदा करते शक्तिमान. जी जी शक्तिमान यानि की मुकेश खन्ना जी. मुकेश जी का एक यूट्यूब चैनल है. जहां वो ज्ञान की बातें करते हैं. बिलकुल गांव की चौपाल की तरह. ऐसे बुज़ुर्ग जिनकी बात घर में कोई नहीं सुनता. वो हैरान परेशान और कुछ चिढ कर, मतलब और कुछ बेमतलब की बात ज्ञान में लपेट लपेट कर छोड़ते रहते हैं. मसला ये है की अमूमन हर बुज़ुर्ग की तरह मुकेश जी भी सोशल मीडिया से खफा है. खास तौर पर लड़के लड़कियों से.
तो किस्सा ये है कि मुकेश जी ने मुद्दा उठाया फेक या अनजान लड़कियों की तरफ से आने वाले 'Hi' 'विल यू टॉक टू मी? वाले मेसेज से. ठीक समझे ये 'वो वाले' मेसेज हैं जिनके पीछे के चेहरे का अता पता नहीं होता. क्या पता राहुल नाम से कोई अधेड़ सुरेंदर हो और एंजेल प्रिया के पीछे... खैर देखा जाये तो इस सात मिनट की वीडियो में रह रह कर उनका गुस्सा गुबार चिढ सब बाहर आ रहा था.
इस वीडियो में उन्होंने अपने लाल पीलों राजदुलारे आंखों के तारे भोले भाले पुरुष और लड़को को ज्ञान दिया, फुल मसाला मूवी के इश्टाइल में! यूट्यूब वीडियो के लिंक का शीर्षक था 'क्या आपको भी ऐसी लड़कियां लुभाती हैं?' बाय गॉड सोचिये कौन भला लड़का नहीं देखेगा 'ऐसे वाली' वीडियो!
मार्केटिंग का सबसे टेस्टेड तरीका अपनाया और कह डाला कि, 'कोई भी लड़की अगर किसी लड़के से कहती है कि, वो उसके साथ सेक्स करना चाहती है. तो वो लड़की लड़की नहीं है. बल्कि धंधा कर रही है. क्योंकि किसी भी सभ्य समाज की लड़की निर्लज्ज हो कर ऐसी बातें नहीं करती. और उन्हें यानि की भोले भाले लड़कों को ऐसी लड़कियों से बच कर रहना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा कि सोशल मिडिया पर ऐसी लड़कियां ब्लैकमेल करने का काम करती हैं. तो बालकों बचना सम्भलना!
उफ़ ताऊ ने घणी चिंता सै!
चिंता है- सही है. लेकिन उन्होंने ये बिना जाने कहा की जब तक घर का कुलदीपक इंटरनेट पर ऐसी निर्लज्ज लड़कियों को खंगालेगा नहीं, वो उसकी खिड़की पर दस्तक न देंगी. लेकिन क्या है न कि शक्तिमान की भी उम्र भयी.
सोशल मिडिया पर शोषित केवल पुरुष ?
शोषण के जिस बात का ज़िक्र मुकेश जी ने किया उस तरह के किस्से साइबर सिक्योरिटी के तहत आते रहते हैं. जी हां, लड़कियां मैसेज कर के 'बात मुलाकात' 'मज़े' का न्योता देती हैं और भोले भाले पुरुष फंस जाते है और फिर ब्लैकमेल होते हैं. हां-हां बात मुलाकात और मज़े के नाम पर पुरुष बिचारा तो पंचतंत्र की कहानी सुनने जाता है. अब वहां मोहिनी कला देख कर सुध बुध भूल जाये तो इसका क्या कसूर? है जी बोलो भला.
तो मुकेश जी की ज्ञान वृद्धि के लिए बता दूं कि 99 % लड़कियां जो सोशल मिडिया पर होती हैं. वो 'हाय', 'हाय बेबी' फ्रैंडसिप करोगी', 'उफ़ कितनी सुंदर /हॉट /माल' और न जाने क्या क्या लगती हो सुनती हैं. कैसी कैसी तस्वीरें और मैसेज भेजे जाते हैं इसके बारे में बात तक नहीं होती. क्योंकि हमे तो साद के शोहदों को भी नज़रअंदाज़ करना सिखाया जाता है.
बस मेट्रो भीड़ में दबोचने मसलने वाले हाथो के लिजलिजा पन अमूमन हर स्त्री ने महसूस किया है. और आप इस ज़रूरी मुद्दे को इस बाजार भाषा में ले के आये. मानो उत्तेजित करने वाली सस्ती सड़कछाप पुस्तक हो! तो शक्तिमान ताऊ जी ने ज्ञान दे कर लड़को के ज्ञान चक्षु खोले. लेकिन अपनी बंद अक्ल का प्रमाण दे दिया. तो ताऊ थारी जनरल नॉलेज के वास्ते कुछ डाटा यानि लेखा जोखा है इन भोले भाले लाड़लो का.
निर्लज्ज लड़कियां जिनका ज़िक्र आपने धंधा करने वालों में किया उसमे शामिल तो आपकी उम्र के लोग भी हैं ,क्योंकि भारत देश विश्व में पोर्न देखने की रेस में तीसरे नंबर पर आता है. जी जी निर्लज्ज लड़कियों के साथ निर्लज्ज लड़के जहां निर्लज्जता करते हुए निर्लज्ज लोगो का मनोरंजन करते हैं.
भारत के सभी मोबाईल यूज़र में से 89 % लोग ऐसी निर्लज्ज लड़के लड़कियों को स्क्रिन पर खंगालते हैं! उफ़ बताओ भला! ऐसी वैसी फिल्मे देखने में तीसरे नंबर पर आने के बाद भी 10 में से 9 माता पिता सोचते हैं कि बच्चा पढ़ने के लिए ऑनलाइन है. ये है असल भोलापन तो.
कौन किससे बचे
अब प्यारे मासूम लड़को को बचने की सलाह तो दे दी. लेकिन इन लड़को और अधेड़ों से लड़कियों को कौन बचाएगा? हद्द सेक्सिस्ट हो ताऊ ! सारी चिंता लड़को के वास्ते और लड़कियों के लिए, 'निर्लज्ज का तमगा'? बड़ी नाइंसाफी है. ध्यान दिला दूं कि 2017 से 2020 के बीच में 24 लाख ऑनलाइन चाइल्ड मोलेस्टेशन केस सामने आये जिनमे से 80 % लड़कियां थी वो भी 14 साल की उम्र से छोटी!
अब भी स्वयं भी पुरुष होने घृणा न हो तो आगे पढ़िए. शायद मुकेश जी ये भूल गए की ये वही समाज है जहां हर दिन 85 बलात्कार होते हैं और बलात्कारी छूट जाने के बाद फिर चाकू की नोक पर बलात्कार करता है और वीडियो भी बनाता है. हां और ऐसे 95 % केस में अपराधी जान पहचान का होता है. अनजान नहीं. इस पर आपकी टिप्पणी आयी होती तो शायद उम्र अनुभव की यूं भद्द न पीटती.
इस सलाह में ऐसे अपराधी लड़के को कड़ी सज़ा की बात कही होती तो शायद नई पीढ़ी के लिए चिंता समझ आती. किन्तु अभी तो ये मात्र नारी द्वेष दिखता है.
संस्कार का ठेका
सही बात का गलत विश्लेषण, यही हुआ है. 90 के दशक में काम कर चुके कलाकार होने के नाते जो सम्मान कमाया वो मात्र लड़कियों के नाम पर संस्कार का ठेका खोल कर उड़ा दिया. कोविड में बीते दिनों के सीरियल दिखा कर इन विलुप्त हुए कलाकारों को कोरोना नया जीवन दे गया है. अब सब मोटिवेशन और संस्कार की ढपली ले कर एक एक चैनल ले कर ज्ञान बांटते हैं.
फिलहाल ये बयान इनके दिमाग के दिवालियेपन का प्रमाण देता है. ये समय निष्ठुर है. एक गलती और एफआईआर होने के आसार हैं. समय की ही लीला है कि सही बात को गलत तरीके से बताने वाले इस बयान ने एक झटके में शक्तिमान को स्त्री विरोधी घोषित कर दिया.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.