जम्मू कश्मीर के पुलवामा में हमला हुआ. जैश ए मोहम्मद द्वारा किये गए इस हमले से छुट्टी से लौट रहे करीब 46 निर्दोष जवानों की मौत हुई. घटना देखकर पूरा देश सन्न रह गया. घटना से आहत लोगों ने न सिर्फ पाकिस्तान के द्वारा की गई इस कायराना हरकत की न सिर्फ कड़े शब्दों में निंदा की बल्कि मांग उठी की अब वो वक़्त आ गया है जब पाकिस्तान से बदला लेते हुए उसे मुंह तोड़ जवाब दिया जाए. लोग आक्रोश में थे. वहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जो अपने दिलों में पल रही नफरत के कारण देश और सेना के खिलाफ चले गए और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर है टैग '#HowsTheJaish" पर मौखिक उल्टी करने लगे.
ऐसी तस्वीरें देखने के बाद आखिर कोई कैसे कश्मीरियों को रहम की निगाह से देखे
विवाद चल रहा हो और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का नाम न आए ? असंभव ही बात है. एएमयू से बीएससी मैथ्स करने वाले बाशिम हिलाल ने देशविरोधी ट्वीट कर दिया और एक ऐसा सवाल पूछा जिससे सम्पूर्ण देशवासियों के तन बदन में आग लग गई. मामले ने ट्विटर पर सुर्खियां पकड़ी और अंततः एएमयू ने छात्र को निष्काषित कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी. जैश ए मोहम्मद के आतंकियों या किसी भी आतंकी के समर्थन में आना एएमयू के लिए नया नहीं है.
अभी कुछ दिन पहले ही सेना द्वारा हिज्बुल के एक अन्य आतंकी मन्नान वानी को मार गिराया है. कश्मीर का मन्नान वानी भी एएमयू में रहकर पढ़ाई कर रहा था और रिसर्च स्कॉलर था. आतंकी मन्नान वानी की मौत पर एएमयू के कश्मीरी छात्र इतने 'आहत' हुए कि, वो देश के खिलाफ चले गए. उन्होंने मारे गए आतंकी के लिए नमाज ए जनाजा आयोजन कर दिया.
एएमयू छात्र बाशिम हिलाल का ट्वीट
अपने इस निंदनीय कृत्य से एएमयू के इन कश्मीरी छात्रों ने दुनिया को ये बता दिया कि आतंक की इस लड़ाई में जब पूरा देश आतंकवाद के खिलाफ है. एएमयू में पढ़ रहे ये छात्र खुले तौर पर आतंकवाद का समर्थन दे रहे हैं.
हम ऐसा बिल्कुल भी नहीं कह रहे कि एएमयू के कश्मीरी छात्र देश विरोधी हैं. मगर हां कश्मीरी छात्रों की एक सीमित संख्या, आम कश्मीरी छात्रों के चरित्र को संदेह के घेरे में डाल रही है. पुलवामा हमले में CRPF के 46 निर्दोष जवानों की मौत के बाद जैसे हालात बने. हम सोशल मीडिया पर कई ऐसे पोस्ट देख चुके हैं जिनमें घाटी के युवा इन दर्दनाक मौतों पर जश्न मानते और एक से एक वाहियात बातें करते नजर आ रहे हैं. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहीं इन पोस्ट या फिर ट्वीट्स पर यदि नजर डालें तो मिल रहा है कि इन्हें करने वाले और कोई नहीं बल्कि घाटी के वो युवा हैं जो या तो घाटी या फिर अलग-अलग स्थानों पर रहकर शिक्षा अर्जित कर रहे हैं.
जिस तरह कश्मीरी युवाओं ने पाकिस्तान का समर्थन किया वो तकलीफ देने वाला है
हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है और पुलवामा मामले में भी ऐसा ही हुआ. बीते कुछ दिनों से हम कई ऐसी ख़बरें देख सुन रहे हैं जिनमें कहा जा रहा है कि कश्मीरियों को देश के अलग अलग स्थानों से खदेड़ने के प्रयास हो रहे हैं. कहा जा रहा है कि कश्मीरियों को डराया धमकाया जा रहा है. उन्हें नुकसान पहुंचाया जा रहा है. मगर एक हकीकत ये भी है कि कुछ कश्मीरी छात्र ही देश के अलग-अलग हिस्सों में पढ़ाई कर रहे अपने भाई-बहनों की जिंदगी दूभर बना रहे हैं. देश गमजदा है और वो ये बिल्कुल भी नहीं चाहता कि कोई उसके ग़म का मजाक वैसे उड़ाए जैसे ट्विटर या फेसबुक पर कुछ कश्मीरी छात्रों द्वारा उड़ाया गया.
ध्यान रहे कि आज जो कुछ भी कश्मीर में हो रहा है, उकी जिम्मेदारी से वहां के बाशिंदे बच नहीं सकते. पाकिस्तान यदि नफरत के बीज बो रहा है, तो कश्मीर में रहने वाले कुछ लोग उसमें कंधे से कंधा मिलाकर उसका साथ दे रहे हैं. और आदिल अहमद डार ने तो यह भी साबित कर दिया कि पाकिस्तान के नापाक खेल के लिए वो अपनी जान देने की बेवकूफी भी कर सकते हैं. ताजा हालात में हमारे लिए ये कहना कहीं से भी अतिश्योक्ति नहीं है कि यदि आज कश्मीर के एक बड़े वर्ग को दुनिया संदेह की नजरों से देख रही है तो इसके जिम्मेदार वो खुद हैं. और बाकी भारत में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों के प्रति नजरिया यदि नफरत वाला बन रहा है, तो उसके लिए जिम्मेदार हैं एएमयू जैसे इदारों में बैठे वो स्टूडेंट्स हैं जो देश के खिलाफ हैं और पुलवामा हमले के बाद ट्वीट कर जैश जैसे आतंकी संगठनों से उसका जोश पूछते हैं.
आतंकी की मौत पर गमजदा घाटी का एक आम युवा
कहा जा सकता है कि इन्हीं मुट्ठी भर छात्रों के चलते उन छात्रों को पढ़ाई लिखाई में दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है जो वाकई पढना चाहते हैं और शायद देश के लिए कुछ करना चाहते हैं. भले ही सरकार इनपर चुस्ती दिखाते हुए एक्शन के रही हो. भले ही संस्थान इन्हें इनके ट्वीट और फेसबुक के पोस्ट के चलते नौकरी से हटा रहे हों मगर सवाल जस का तस अपनी जगह पर खड़ा है कि आखिर कब तक? कब तक नफरत इनके दिमाग पर रहेगी और आखिर कब तक ये ऐसे ही देश के खिलाफ जाएंगे.
सेना के जवानों की मौत पर जश्न मानते आम कश्मीरी
बाक़ी जब लिबरल बनने का दौर चल ही रहा हो. गंगा जमुनी तहजीब वाली बात हो रही हों लाजमी है कि लोग डरे सहमे कश्मीरियों के लिए अपने दरवाजे खोल दें. उन्हें उनका पसंदीदा खाना खिलाएं रहने के लिए छत दें. लेकिन बेहद शांति के साथ उन छात्रों से ये जरूर पूछें कि वे भारत के बारे में क्या विचार रखते हैं. जरूरत पड़ने पर दुश्मन की मदद करना भारत की संस्कृति है. लेकिन, कश्मीर में चल रही जेहादी हवा के असर से संक्रमित कश्मीरी छात्र देश की मुख्यधारा से जुड़ना चाहते हैं. यदि हां, तो देश की किसी भी आम शहरी की तरह उनका पूरे देश पर हक है. लेकिन यदि उनके सीने के किसी भी कोने में भारतीय फौज के प्रति कोई जहर है, तो हम बीमारी का इलाज नहीं कर रहे हैं, बल्कि बहस करके उसे हवा ही दे रहे हैं.
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