अक्सर आपने लोगों को कहते सुना होगा कि हमेशा मोबाइल से चिपके रहते हैं. जिसे देखो मोबाइल पर चिपका है. कभी कोई कहता है कि मोबाइल ने समाज को नकारा बना दिया है तो कभी कोई कहता है कि ये बीमारी है. कुछ लोगों ने तो इसमें कैमिकल लोचा भी खोज निकाला है.
क्या आपने कभी सोचा कि वो लोग कौन हैं जिन्हें आपके सोशल होने से मिर्ची लगती है. लेकिन हम उन लोगों पर बाद में बात करेंगे लेकिन पहले बात करते हैं सोशल मीडिया के क्यों जरूरी है और क्यों आपको भी कभी-कभी वाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर से चिपके रहना चाहिए.
सोशल मीडिया के निजी लाभ
1. देखने वाले को आपके हाथ में पकड़ा हुआ मोबाइल दिखता है लेकिन उसे आपके हाथ की स्क्रीन पर क्या है ये पता नहीं होता. उसे नहीं पता होता कि आप स्क्रीन को टच करके कर क्या रहे हैं. फेसबुक से शुरू करें तो याद कीजिए हाल के कुछ सालों में आप अपने ऐसे कई ऐसे दोस्तों से दोबारा जुड़े जिन्हें आप भूल चुके थे. या तो आपने उन्हें खोजा या उन्होंने आपको खोज निकाला. आपको कई ऐसे फोटोग्राफ भी हाथ लगे होंगे जो आपको पता ही नहीं होगा कि कहीं अस्तितव में हैं, लेकिन आपके दोस्तों ने वो पुरानी तस्वीरें आपको मुहैया करा दी होंगी.
2. सोशल मीडिया के ज़रिए आप अपने ऐसे रिश्तेदारों और उनके चेहरों को जानते हैं जिनसे आप कभी मिले नहीं. आपके कई दोस्तों के बच्चे बड़े हो गए हैं और अगर सोशल मीडिया न होता तो शायद आप सामने खड़े उन बच्चों को भी नहीं पहचान पाते.
3. सोशल मीडिया ने आपको अपने कई पुराने मित्रों और रिश्तेदारों से दुबारा रिश्ते जोड़ने का मौका दिया है जो कभी टूट गए थे. आपको लोगों के जन्मदिन याद नहीं रखने पड़ते और तो और महंगे-महंगे ग्रीटिंग्स खरीदने की ज़रूरत...
अक्सर आपने लोगों को कहते सुना होगा कि हमेशा मोबाइल से चिपके रहते हैं. जिसे देखो मोबाइल पर चिपका है. कभी कोई कहता है कि मोबाइल ने समाज को नकारा बना दिया है तो कभी कोई कहता है कि ये बीमारी है. कुछ लोगों ने तो इसमें कैमिकल लोचा भी खोज निकाला है.
क्या आपने कभी सोचा कि वो लोग कौन हैं जिन्हें आपके सोशल होने से मिर्ची लगती है. लेकिन हम उन लोगों पर बाद में बात करेंगे लेकिन पहले बात करते हैं सोशल मीडिया के क्यों जरूरी है और क्यों आपको भी कभी-कभी वाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर से चिपके रहना चाहिए.
सोशल मीडिया के निजी लाभ
1. देखने वाले को आपके हाथ में पकड़ा हुआ मोबाइल दिखता है लेकिन उसे आपके हाथ की स्क्रीन पर क्या है ये पता नहीं होता. उसे नहीं पता होता कि आप स्क्रीन को टच करके कर क्या रहे हैं. फेसबुक से शुरू करें तो याद कीजिए हाल के कुछ सालों में आप अपने ऐसे कई ऐसे दोस्तों से दोबारा जुड़े जिन्हें आप भूल चुके थे. या तो आपने उन्हें खोजा या उन्होंने आपको खोज निकाला. आपको कई ऐसे फोटोग्राफ भी हाथ लगे होंगे जो आपको पता ही नहीं होगा कि कहीं अस्तितव में हैं, लेकिन आपके दोस्तों ने वो पुरानी तस्वीरें आपको मुहैया करा दी होंगी.
2. सोशल मीडिया के ज़रिए आप अपने ऐसे रिश्तेदारों और उनके चेहरों को जानते हैं जिनसे आप कभी मिले नहीं. आपके कई दोस्तों के बच्चे बड़े हो गए हैं और अगर सोशल मीडिया न होता तो शायद आप सामने खड़े उन बच्चों को भी नहीं पहचान पाते.
3. सोशल मीडिया ने आपको अपने कई पुराने मित्रों और रिश्तेदारों से दुबारा रिश्ते जोड़ने का मौका दिया है जो कभी टूट गए थे. आपको लोगों के जन्मदिन याद नहीं रखने पड़ते और तो और महंगे-महंगे ग्रीटिंग्स खरीदने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती.
4. दुनिया की वो बेहतरीन जगहें जहां जाने के बारे में आपने कभी सोचा भी नहीं होगा शायद आप जानते भी नहीं होंगे कि ऐसी जगहें धरती पर कहीं हैं भी, लेकिन उन सबको आप यूट्यूब पर कई-कई एंगल से देखते हैं. दुनिया की चुनिंदा शॉर्ट फिल्म आपकी पहुंच में हैं. वो फिल्में आप देख पाते हैं जो कभी किसी थियेटर में आने ही वाली नहीं थीं, यहां तक कि वो भारत में कभी रिलीज ही नहीं हुईं.
5. आप दुनिया के नामी फोटोग्राफर की तस्वीरें मुफ्त में पा सकते हैं और उन्हें ग्रीटिंग्स में तब्दील करके दोस्तों को भेज सकते हैं.
6. बोरियत और बोझ से भरी ज़िंदगी में सोशल मीडिया का ही योगदान है कि आप दिन में कम से कम दस बार (एक सर्वे के मुताबिक) मुस्कुराते हैं. पत्रिकाओं में छपने वाले बोर से चुटकुलों के मुकाबले सोशल मीडिया के चुटकुले बेहद रोचक और हंसाने वाले होते हैं.
7. क्या खाएं. क्या न खाएं. क्या खाने से मोटे होंगे. क्या खाने से पतले होंगे. कौन सी कसरत करें, कौन सी न करें. किस बीमारी के क्या लक्षण हैं. जैसी सैकड़ों जानकारियां हैं जो आपको सोशल मीडिया से ही मिलती हैं. शायद इनमें से कई ऐसी चीज़ें हैं जो आप कभी नहीं जान पाते.
सोशल मीडिया के सामाजिक फायदे
1. आप की सोसायटी में पानी नहीं आ रहा चार दिन से परेशान हैं. आप झट से अपने ग्रुप में डालते हैं पता लग जाता है कि समस्या निजी है या सोसायटी की. तुरंत सोसायटी के पदाधिकारी उसका संज्ञान लेते हैं.
2. बच्चा स्कूल न जाए तो भी आप जान जाते हैं कि आज क्लास में क्या पढ़ाया गया. उनका क्लास वर्क क्लास के ग्रुप में दूसरे बच्चे डाल देते हैं. पहले बच्चे कॉपी मांगकर लाते थे. जो बच्चा कॉपी दिया करता था वो उस दिन अपना काम नहीं कर पाता था. होमवर्क भी आप घर बैठे जान जाते हैं. कल स्कूल खुला है या बंद सीधे एक मैसेज से आपके पता लग जाता है.
3. दफ्तर में आज कौन कौन है, कौन कौन नहीं, छुट्टी लेने से काम तो प्रभावित नहीं होगा जैसी जानकारियां आपको तुरंत वाट्सएप से मिल जाती हैं. आप समझ लेते हैं कि छुट्टी संभव है या नहीं. आपके बॉस को भी इससे सुविधा होती है.
सोशल मीडिया के राजनीतिक फायदे
1. आप जान जाते हैं कि किस विषय पर किस किस तरह के विचार चल रहे हैं. सरकार जो नयी नीति लाई है उसका प्रभाव कैसा पड़ रहा है, यहां तक कि आप अपने नेता के भाषण और उसके ट्वीट के जरिए जान सकते हैं कि वो क्या कहना चाहता है. विरोधियों के विचार भी आपके सामने होते हैं. लोकतंत्र में ये सबसे बड़ी नियामत है.
2. कई तरह की झूठी जानकारियां पिछले 70 साल में फैलाई जाती रहीं. लोगों ने गांधी, नेहरू और नेताजी बोस को लेकर कई झूठ व्यक्तिगत जमावड़ों में फैलाए. कुछ संस्थाएं नियमित रूप से इकट्ठा होकर इस बारे में लोगों के दिमाग तैयार करती रही हैं. सोशल मीडिया सामने आने के कारण वो विचार सबके सामने आए. लोगों को पता चला कि कैसा झूठ या सच समाज में फैल रहा था. उनका खंडन करते तर्क भी आए. लेकिन हमें पता चल गया कि क्या सच है क्या झूठ. हालांकि कुछ तत्व सोशल मीडिया पर भी झूठ की परंपरा को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं लेकिन यहां वो ज्यादा दिन नहीं टिक पाता.
3. राजनैतिक दलों के लिए सोशल मीडिया एक सस्ता और अच्छा प्रचार माध्यम है. वो थोड़े से ही पैसों में ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं. इससे चुनाव का खर्च कम होगा और कुछ ऐसे लोग भी सामने आ सकेंगे जो अब तक आर्थिक कारणों से प्रक्रिया में हिस्सा नहीं ले पाते थे इससे लोकतंत्र मजबूत होगा.
सोशल मीडिया के दुश्मन
आदतन पीछे देखने वाले लोग-
कुछ लोग पीछे ही देखते रहते हैं. उनकी ज़िंदगी पीछे रहती है जो बीत गया वही बेहतर है और जो आज है वो बकवास है. वो पुराने फैशन को भद्र और आज के फैशन को अभद्र बताते नहीं थकते. अतिरेक के मारे ये लोग विज्ञान को भी कोसते रहते हैं और आज के अविष्कारों को भी. इनमें दो तरह के लोग होते हैं. एक वो जो पुरातनजीवी होते हैं, जिन्हें महाभारत काल में इंटरनेट दिखता है और रामायण काल में विमान. ये वो लोग हैं जो रहन सहन, खान पान, हर चीज़ में आपको पीछे घसीट कर ले जाने के चक्कर में रहते हैं. उनकी नजर में आज जो भी है वो ठीक नहीं है.
निजी कारण से विरोधी-
पार्टनर: इन विरोधियों में आपके लाइफ पार्टनर आपके दफ्तर के लोग या फिर वो लोग हैं जो आपका ध्यान पूरी तरह अपनी ओर चाहते हैं. आपकी पत्नी या पति को लगता है कि आप उन्हें छोड़कर कहीं और ध्यान न दें. लेकिन ये विरोध सिर्फ मोबाइल या सोशल मीडिया का नहीं है. जब ये दोनों नहीं थे तो आपके पार्टनर दोस्तों के साथ समय बिताने पर ऐसे ही चिढ़ा करते थे. आपने अक्सर पत्नियों को कहते हुए सुना होगा कि तुम फलां से ही शादी क्यों नहीं कर लेते. हालांकि पति कभी ऐसी हिम्मत नहीं कर पाते.
सहकर्मी या क्लाइंट: इन्हें लगता है कि आप उनके लिए ही बने हो, आपके सामने काउंटर पर खड़ा शख्स चाहता है कि आप सिर्फ उसे वक्त दें. उसके साथ ही खड़े दूसरे ग्राहक से बात करना भी उसे नागवार लगता है. ऑफिस में सहयोगी भी चाहते हैं कि आप काम करते रहें ताकि उन्हें आपके हिस्से का काम न करना पड़े. लेकिन दोनों ही मामलों में दिक्कत सोशल मीडिया की कैसे हुई.
बहरहाल फेसबुक, वाट्सएप और दूसरे सोशल माध्यम बेहद उम्दा तरीके हैं, ये वरदान हैं जिन्होंने हमारी ज़िंदगी को बेहतर बनाया है. अपना जीवन व्यवस्थित रखने के लिए आपको भी लाइफ को बेहतर तरीके से प्लान करना होगा. अब आपके पास काम ज्यादा है. इसलिए टाइम मैनेजमेंट करिए. काम को शेड्यूल करिए. पुराने जमाने में आप हर वक्त चिट्ठियां नहीं पढ़ते थे. हर वक्त पुस्तकें भी नही पढ़ते थे. सोशल मीडिया का एक समय तय कर दें. अगर आप पहले हर समय चिट्ठियां नहीं पढ़ते थे तो मेल भी तय समय पर खोलिए. वाट्सएप चेक करने के लिए भी समय तय करिए. आखिर आप अपने पार्टनर और दफ्तर के सहयोगी को भी तो नाराज नहीं कर सकते लेकिन यकीन मानिए सोशल मीडिया बिन सब सून है.
ये भी पढ़ें-
एक नई बीमारी जो बच्चों के दिगाम पर तेज़ी से हमला कर रही है!
एक फॉलोअर की कीमत कोई जाने न जाने, अमिताभ जरूर जानते हैं !
फेसबुक, अमेजन, गूगल हमारी बातों को सुन रहे हैं?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.