नफरत व्यक्तिगत रहे तो बेहतर है. पब्लिक प्लेटफॉर्म पर आती है तो विवाद का विषय बनती है और इसके चलते आदमी खानों में बंट जाता है. एजेंडे का भी कुछ ऐसा ही सीन है. ये भी नफरत जितनी शिद्दत से आदमी को बांटता है. इन बातों को समझने के लिए कहीं दूर क्या ही जाना। विनायक दामोदर सावरकर का ही रुख कर लीजिये। सावरकर को राइट विंग अपना आदर्श मानता है वहीं जो लिबरल हैं उनके पास सावरकर के लिए अपशब्दों की लंबी फेहरिस्त है. ये लिबीर-लिबीर करते हैं. राइट विंग को मौका देते हैं लेकिन चूंकि इनके तर्क बेहद कमज़ोर और पचाने योग्य नहीं होते, ये मुंह की खाते हैं. क्योंकि इनका एकसूत्रीय एजेंडा सावरकर से नफरत है ये उनके जीवन से जुड़ी कोई चीज बर्दाश्त ही नहीं कर सकते। फिल्म तो बिल्कुल नहीं और शायद यही वो कारण है जिसकी भारी कीमत एक्टर रणदीप हुड्डा को चुकानी पड़ी. रणदीप को उनकी अपकमिंग फिल्म स्वतंत्र वीर सावरकर के फर्स्ट के लिए सोशल मीडिया पर बेदर्दी से ट्रोल किया जा रहा है.
अपनी अपकमिंग फिल्म स्वतंत्र वीर सावरकर में रणदीप का स्वैग बस देखते ही बनता है
आइये समझें सावरकर और रणदीप हुड्डा का कनेक्शन
जैसा बॉलीवुड का ट्रेंड है, इन दिनों बॉलीवुड में बायोपिक की भरमार है. मेकर्स इस बात को जानते हैं कि सिनेमा के नाम पर कुछ चले या न चले बायोपिक ठीक ठाक बिजनेस कर लेगी। इसी विचार को ध्यान में रखकर प्रोड्यूसर संदीप सिंह और आनंद पंडित ने विनायक दामोदर सावरकर पर फिल्म बनाने का फैसला किया। फिल्म को महेश मांजरेकर डायरेक्ट कर रहे हैं और एक्टर रणदीप हुड्डा इसमें लीड या ये कहें कि सावरकर के रोल में हैं.क्यों कि 28 मई सावरकर का जन्मदिन है इसलिए फिल्म स्वतंत्र वीर सावरकर’ का फर्स्ट लुक बाहर आया है।
फिल्म में सावरकर की भूमिका रणदीप ने निभाई है और जैसा ये फर्स्ट लुक है. साफ़ है कि इस फिल्म के लिए भी रणदीप ने जी तोड़ मेहनत की है. यदि हम सावरकर की पुरानी तस्वीरों और रणदीप के इस फर्स्ट लुक को देखें तो जैसी डिटेलिंग मेकर्स द्वारा की गयी है, रणदीप को पहचानना मुश्किल है.
ख़बरों की मानें तो फिल्म की स्क्रिप्ट का काम लगभग ख़त्म हो चुका है और इसकी शूटिंग अगस्त 2022 से शुरू की जाएगी. विनायक दामोदर सावरकर की भूमिका निभाने के लिए चुने जाने पर रणदीप बेहद खुश हैं और सरबजीत के बाद ये दूसरी बार है जब किसी रोल के लिए बतौर एक्टर रणदीप ने अपने आप पर खूब मेहनत की है.
जैसा देश का माहौल है चाहे वो डायरेक्टर महेश मांजरेकर हों या फिर रणदीप हुड्डा दोनों ही के लिए ये फिल्म कहीं से भी आसान नहीं है. अब इसे सावरकर के प्रति लिबरल्स और बुद्धिजीवियों की नफरत कहें या एक वर्ग विशेष का अपना खासा एजेंडा फिल्म के बनने से बहुत पहले ही सिर्फ फर्स्ट लुक के कारण ही फिल्म को वो पब्लिसिटी मिल गयी है जिसकी इसे दरकार थी.
सोशल मीडिया पर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. चाहे ट्विटर और फेसबुक हों या फिर इंस्टाग्राम अलग अलग प्लटफॉर्म पर हर वो बात हो रही है जिसका न तो फिल्म से कोई मतलब है और न ही मनोरंजन से.
लोग यही चर्चा कर रहे हैं कि इस फिल्म के जरिये जो संदेश रणदीप दें रहे हैं उससे भले ही आप एक एजेंडे के तहत सावरकर को बुलंदी पर ले जाएं लेकिन इसका जो असर समाज पर पड़ेगा वो कहीं ज्यादा नकारात्मक होगा।
सवाल ये है कि आखिर लिए रणदीप ट्रोल्स के निशाने पर हैं? क्या एक फिल्म के लिए अपना 100 प्रतिशत देना गुनाह है? हम फिर इस बात को दोहराना चाहेंगे कि भले ही इस फिल्म के लिए रणदीप को सोशल मीडिया पर एक वर्ग विशेष द्वारा गलियों से नवाजा जा रहा हो लेकिन हमें इस बात को समझना होगा कि इस फिल्म में सिर्फ अपने लुक से रणदीप ने जान फूंक दी है.
ट्विटर पर लोग सावरकर के उन पत्रों की भी बात कर रहे हैं जिसमें उन्होंने अंग्रेजों से माफ़ी मांगी थी.
बहरहाल अब जबकि फिल्म का फर्स्ट लुक आ गया है और रणदीप इसमें शानदार लग रहे हैं तो हम भी बस ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि तस्वीर शेयर करने वाले रणदीप हुड्डा भूल गए कि अभी 'मौसम' ऐसी तस्वीरों के अनुकूल नहीं है. ट्रोल्स को तो बस बहाना चाहिए होता है इस तस्वीर ने उन्हें व्यर्थ की बहस के लिए बेतुके तर्क करने का बहाना दे दिया है.
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