मृत्यु शाश्वत सत्य है. हर किसी को आनी है. सब इस बात को जानते हैं. लेकिन बावजूद इसके, जब कोई अपना साथ छोड़ देता है, तो जो तकलीफ होती है उसका वर्णन अगर करें तो शायद भाव और शब्द दोनों ही कम पड़ जाएं. जाने वाला चला गया होता है. बस जो शेष रहता है, वो रहती हैं यादें. किसी के जाने के बाद यादें या स्मृतियां कैसे किसी व्यक्ति के साथ ठहर जाती हैं यह इंटरनेट पर वायरल होती जाकिर हुसैन की तस्वीर को देखकर समझा जा सकता है. जो संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा को अंतिम विदाई देते वक्त कैद कर ली गई. हिंदू-मुस्लिम की नफरत भरी बहस के बीच जरा उसी चश्मे से देखने की कोशिश करें, क्या कहीं ऐसा लग रहा है कि जो अग्नि को समर्पित किया गया है वो हिंदू है और जो उसे विदाई करने आया है वो मुस्लिम? दोनों धर्म से परे निकल गए हैं. बल्कि बहुत पहले ही निकल गए थे. संगीत के दोनों महारथियों से यही सीखा जा सकता है कि लोगों के बीच ऐसी स्मृतियां छोड़ें कि जब दुनिया को छोड़ने का वक्त आए तो लोग धर्म-जाति-समुदाय का चोला छोड़कर विदाई दें.
चाहे वो पंडित शिवकुमार शर्मा की अर्थी को कंधा देते जाकिर हुसैन की तस्वीर हो या फिर वो फोटो जिसमें जाकिर को शमशान में एक स्तंभ का सहारा लेकर खड़े हुए देखा जा सकता है. दोनों ही तस्वीरें सिर्फ तस्वीरें नहीं हैं इनपर बहुत कुछ लिखा जा सकता है. बहुत कुछ रचा जा सकता है. जिस तरह जाहिर पंडित जी की चिता जलते हुए देख रहे हैं साफ़ पता चलता है कि दोनों का रिश्ता क्या और कैसा था.
आज भले ही हिंदू मुस्लिम की राजनीति अपने चरम पर हो. भले ही आज नफरत के चलते लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हों मगर जिस तरह आज पूरा इंटरनेट जाकिर हुसैन और...
मृत्यु शाश्वत सत्य है. हर किसी को आनी है. सब इस बात को जानते हैं. लेकिन बावजूद इसके, जब कोई अपना साथ छोड़ देता है, तो जो तकलीफ होती है उसका वर्णन अगर करें तो शायद भाव और शब्द दोनों ही कम पड़ जाएं. जाने वाला चला गया होता है. बस जो शेष रहता है, वो रहती हैं यादें. किसी के जाने के बाद यादें या स्मृतियां कैसे किसी व्यक्ति के साथ ठहर जाती हैं यह इंटरनेट पर वायरल होती जाकिर हुसैन की तस्वीर को देखकर समझा जा सकता है. जो संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा को अंतिम विदाई देते वक्त कैद कर ली गई. हिंदू-मुस्लिम की नफरत भरी बहस के बीच जरा उसी चश्मे से देखने की कोशिश करें, क्या कहीं ऐसा लग रहा है कि जो अग्नि को समर्पित किया गया है वो हिंदू है और जो उसे विदाई करने आया है वो मुस्लिम? दोनों धर्म से परे निकल गए हैं. बल्कि बहुत पहले ही निकल गए थे. संगीत के दोनों महारथियों से यही सीखा जा सकता है कि लोगों के बीच ऐसी स्मृतियां छोड़ें कि जब दुनिया को छोड़ने का वक्त आए तो लोग धर्म-जाति-समुदाय का चोला छोड़कर विदाई दें.
चाहे वो पंडित शिवकुमार शर्मा की अर्थी को कंधा देते जाकिर हुसैन की तस्वीर हो या फिर वो फोटो जिसमें जाकिर को शमशान में एक स्तंभ का सहारा लेकर खड़े हुए देखा जा सकता है. दोनों ही तस्वीरें सिर्फ तस्वीरें नहीं हैं इनपर बहुत कुछ लिखा जा सकता है. बहुत कुछ रचा जा सकता है. जिस तरह जाहिर पंडित जी की चिता जलते हुए देख रहे हैं साफ़ पता चलता है कि दोनों का रिश्ता क्या और कैसा था.
आज भले ही हिंदू मुस्लिम की राजनीति अपने चरम पर हो. भले ही आज नफरत के चलते लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हों मगर जिस तरह आज पूरा इंटरनेट जाकिर हुसैन और पंडित शिव कुमार शर्मा की दोस्ती की कसमें खा रहा है महसूस यही होता है कि आज नहीं तो कल नफरत के, एक दूसरे को नीचा दिखाने के काले बदल छटेंगे और अवश्य ही बदलाव का सूरज निकलेगा.
इन तस्वीरों पर कहने सुनने और बताने को तमाम बातें हो सकती हैं लेकिन उससे पहले अनुराग अनंत नाम के लेखक की वो कविता जो इन तस्वीरों जितनी ही प्रासंगिक है. फेसबुक पर तस्वीर शेयर करते हुए अनुराग ने विदाई का जो दृश्य लिखा है वो आत्मा को झंकझोर कर रख देने वाला है और अपने में ये सामर्थ्य रखता है कि चाहे व्यक्ति कितना भी पत्थर दिल क्यों न हो उसकी आंखें नम हो जाएं.
फेसबुक पर वायरल अपनी कविता में अनुराग ने लिखा है कि
यार को जाते हुए तब तक देखा
जब तक शेष रही उसकी छाया
जीवन में वह मोड़ जिसे सब मृत्यु कहते हैं
वहीं पर बिछड़े थे हम
मैं शमशान तक गया था उसके साथ
वहां अग्नि के रथ पर बैठ कर अनंत की यात्रा पर निकलना था उसे
मैं खड़ा खड़ा निहारता रहा उसे
आख़री बंधन से मुक्त होते हुए
हर तरह की छाया से छूटते हुए
निहारता रहा उसकी चिता में
न जाने देखते हुए क्या देख रहा था
बस इस तरह देख रहा था
जैसे किसी को आख़री बार देखा जाता है.
वाक़ई बहुत सही बात लिखी है अनुराग ने जाकिर हुसैन पंडित शिवकुमार शर्मा को ठीक वैसे ही देख रहे थे जैसे कोई किसी को आखिरी बार देखता है. जिस अंदाज में जाकिर खड़े थे या ये कहें कि जिस तरह जाकिर की निगाहें पंडित जी की चिता पर टिकी थीं, सवाल ये है कि क्या कुछ चल रहा होगा उनके दिमाग में. क्या जाकिर को वो पल यद् आए होंगे जब किसी परफॉरमेंस के पहले दोनों ने किसी जोक पर हंसी ठिठोली की होगी?
क्या वो ख्याल जाकिर के मन में आया होगा जब एक बार किसी प्रोग्राम में हुए टेक्नीकल फॉल्ट के चलते दोनों में से एक के सुर और ताल बिगड़े और फ़ौरन ही दूसरे ने संभाल लिया होगा. जैसा कि ज्ञात है पंडित जी ने और मशहूर तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन ने कई मौकों पर मंच साझा किया है तो उनका रिश्ता सिर्फ प्रोफेशनल रिश्ता नहीं होगा और इस बात की तस्दीख भी इंटरनेट पर वायरल हालिया तस्वीरों ने कर दी है.
बहरहाल बात अर्थी को कन्धा देते और चिता की आग को एकटक देखते उस्ताद जाकिर हुसैन की हुई है तो हम बस ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि भारत की धर्मनिरपेक्ष आत्मा की स्थायी छवि को संजोने वाली यह तस्वीर इस बात की पुष्टि कर देती है कि कोई भी सांप्रदायिक विभाजन कभी भी पंडित जी और जाकिर हुसैन की मुहब्बत को छिपा नहीं पाएगा.
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