कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा बस ये कहावत है और Amazon Prime की मोस्ट अवेटेड वेब सीरीज Tandav Controversy है. बवाल इस बात पर है कि क्यों हर बार की तरह हिंदू धर्म को टारगेट करते हुए भगवान राम और भगवान शिव का मजाक बनाया गया. वहीं सीरीज का विरोध करने वालों का एक वर्ग वो भी है जिसके विरोध का आधार प्रधानमंत्री की छवि है. Tandav में पीएम को शराबी और अन्य बुरे कामों में लिप्त दिखाया गया है. बवाल के मद्देनजर कही बातें थीं, जिनकी कल्पना बहुत पहले हो चुकी थी. एफआईआर से लेकर यूपी पुलिस के मुंबई जाने और Tandav के मेकर्स से पूछताछ करने तक तमाम बातें हर नए दिन के साथ चरितार्थ हो रही हैं. फिलहाल मेकर्स ने माफी मांग ली है और कहा है कि वह वह जल्द ही में सीरीज में बदलाव करने जा रहे हैं. यानी 'तांडव' सुधरने को तैयार. वहीं बात आरोप प्रत्यारोप करने को लेकर हो तो जो लोग ऐसा कर रहे हैं उनकी हरकतें बता रही हैं कि उनमें शायद ही कभी सुधार हो. मामला दक्षिणपंथी लेखिका शेफाली वैद्य और प्रियंका गांधी के मद्देनजर उनकी कही एक बात से जुड़ा है जिसने एक नए विवाद को जन्म दे दिया है.
दरअसल हुआ कुछ यूं है कि तांडव विवाद पर दक्षिणपंथी लेखिका शेफाली वैद्य ने एक यूजर के रिप्लाई पर व्यंग्य किया और अपने उस व्यंग्य में उन्होंने प्रियंका गांधी को घसीट लिया. Shefali Vaidya ने ट्विटर पर सवाल उठाया कि क्या मोदी राज में प्रियंका गांधी को जींस पहन कर बार जाने का भी अधिकार नहीं है?
बताते चलें कि विवाद के बाद तांडव के मेकर्स ने माफ़ी मांगी...
कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा बस ये कहावत है और Amazon Prime की मोस्ट अवेटेड वेब सीरीज Tandav Controversy है. बवाल इस बात पर है कि क्यों हर बार की तरह हिंदू धर्म को टारगेट करते हुए भगवान राम और भगवान शिव का मजाक बनाया गया. वहीं सीरीज का विरोध करने वालों का एक वर्ग वो भी है जिसके विरोध का आधार प्रधानमंत्री की छवि है. Tandav में पीएम को शराबी और अन्य बुरे कामों में लिप्त दिखाया गया है. बवाल के मद्देनजर कही बातें थीं, जिनकी कल्पना बहुत पहले हो चुकी थी. एफआईआर से लेकर यूपी पुलिस के मुंबई जाने और Tandav के मेकर्स से पूछताछ करने तक तमाम बातें हर नए दिन के साथ चरितार्थ हो रही हैं. फिलहाल मेकर्स ने माफी मांग ली है और कहा है कि वह वह जल्द ही में सीरीज में बदलाव करने जा रहे हैं. यानी 'तांडव' सुधरने को तैयार. वहीं बात आरोप प्रत्यारोप करने को लेकर हो तो जो लोग ऐसा कर रहे हैं उनकी हरकतें बता रही हैं कि उनमें शायद ही कभी सुधार हो. मामला दक्षिणपंथी लेखिका शेफाली वैद्य और प्रियंका गांधी के मद्देनजर उनकी कही एक बात से जुड़ा है जिसने एक नए विवाद को जन्म दे दिया है.
दरअसल हुआ कुछ यूं है कि तांडव विवाद पर दक्षिणपंथी लेखिका शेफाली वैद्य ने एक यूजर के रिप्लाई पर व्यंग्य किया और अपने उस व्यंग्य में उन्होंने प्रियंका गांधी को घसीट लिया. Shefali Vaidya ने ट्विटर पर सवाल उठाया कि क्या मोदी राज में प्रियंका गांधी को जींस पहन कर बार जाने का भी अधिकार नहीं है?
बताते चलें कि विवाद के बाद तांडव के मेकर्स ने माफ़ी मांगी जिसपर शेफाली वैद्य ने ट्विटर पर लिखा कि, इस बेशर्म माफी को भूल जाइए और यह बताया जाए कि ये हिंदू विरोधी वेब सीरीज बैन होगी या नहीं? शेफाली का ये ट्वीट करना भर था जिसकी जैसी सोच थी उसने वैसी प्रतिक्रिया दी. एक यूजर ने शेफाली को टैग करते हुए लिखा कि आप खुद जींस पहनों और बार जाओ और फिर सनातन का ज्ञान दो.
शेफाली ट्विटर पर अपने क्विक और विटी रिप्लाई के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने यूजर के इस ट्वीट पर फौरन ही पलटवार किया और एक बेवजह के विवाद में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी को घसीट लिया. शेफाली ने प्रियंका गांधी को टैग करते हुए लिखा कि आप उनके बारे में ऐसा मत कहो, क्या मोदी राज में प्रियंका गांधी को जींस पहन कर बार जाने का भी हक़ नहीं? और उसके बाद दादी की पुरानी साड़ी पहन कर मंदिर जाने का ढोंग करे तो क्या हुआ?
अब इस पूरे मामले को देखिए. इसे बार बार पढ़िये और सोचिये कि एक ऐसी बात से जिसका प्रियंका से कोई लेना देना नहीं था यदि उसमें भी उनको घसीटा जा रहा है तो समझ लीजिए हमारा व्यंग्य और सहिष्णुता दोनों ही किस लेवल पर आकर खड़े हो गए हैं.इस मामले पर हम फेमिनिज्म का चोला नहीं ओढ़ेंगे लेकिन जिस तरह शेफाली ने प्रियंका का जिक्र किया वो इसलिए भी अजीब है क्यों कि शेफाली ख़ुद एक महिला हैं. अब सवाल ये है कि यदि एक महिला इस तरह दूसरी महिला का तिरस्कार कर रही है तो उसे किसी भी सूरत में जायज नहीं ठहराया जा सकता.
तांडव विवाद पर जिस तरह से कहीं से ईंट और कहीं से रोड़ा लाकर दक्षिणपंथी लेखिका शेफाली वैद्य ने हवा में जिस तरह कुनबे का निर्माण किया इस देश की असल समस्या वही है. अब इसे कुंठा कहें या कूल और अपने को विटी दिखाने की होड़ लोग ऐसा बहुत कुछ कर जाते हैं जो न केवल भाषा की मर्यादा को तार तार करता है. बल्कि ये भी बताता है कि जब बात पॉलिटिकल आइडियोलॉजी की होती है तो फिर वो व्यक्ति हमारा सगा कभी हो ही नहीं सकता जिसकी राजनीतिक विचारधारा हमसे ठीक उलट है.
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