उत्तर भारत की अपेक्षा जब भी हम दक्षिण भारत की कल्पना करते हैं तो कुछ बातें अपने आप हमारे सामने आ जाती हैं. प्रायः हमनें लोगों के मुंह से यही सुना है कि दक्षिण भारत के लोग ज्यादा संपन्न, पढ़ें लिखे और वहां के शहर उत्तर भारत के मुकाबले साफ सुथरे तथा वहां की सड़कें बड़ी-बड़ी और चौड़ी होती हैं.
जो लोग किसी दूसरे के मुंह से ऐसी बातें सुन चुके हैं. उन्हें समझदारी का परिचय देते हुए ये सोचना चाहिए कि, हम भारत में हैं और चाहे उत्तर भारत हो या दक्षिण भारत हर जगह स्थिति लगभग एक जैसी है. साथ ही दोनों जगहों पर आम लोग भी एक ही तरीके से परेशान हैं.
जी हां बिल्कुल सही सुना आपने, इस अनूठे अंदाज में अपना विरोध दर्ज करने की कहानी भी खासी दिलचस्प है. शहर में रोड के नाम पर जगह जगह गड्ढे थे. जिस कारण, सामान्य जनजीवन अस्त व्यस्त हो रहा था. इसी के मद्देनजर कुछ आईटी प्रोफेशनल्स ने सड़कों की खस्ताहाली के लिए ऑनलाइन कैम्पेन चलाया. ताकि उनकी बात आईटी मिनिस्टर केटी रामा राव और नगरपालिका प्रशासन विभाग सुन ले और उस पर कार्यवाही करे. मगर इस मामले में भी वही हुआ जो बरसों से होता चला आया है. यानी इस अहम मुद्दे पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई और लोगों को मुंह की खानी...
उत्तर भारत की अपेक्षा जब भी हम दक्षिण भारत की कल्पना करते हैं तो कुछ बातें अपने आप हमारे सामने आ जाती हैं. प्रायः हमनें लोगों के मुंह से यही सुना है कि दक्षिण भारत के लोग ज्यादा संपन्न, पढ़ें लिखे और वहां के शहर उत्तर भारत के मुकाबले साफ सुथरे तथा वहां की सड़कें बड़ी-बड़ी और चौड़ी होती हैं.
जो लोग किसी दूसरे के मुंह से ऐसी बातें सुन चुके हैं. उन्हें समझदारी का परिचय देते हुए ये सोचना चाहिए कि, हम भारत में हैं और चाहे उत्तर भारत हो या दक्षिण भारत हर जगह स्थिति लगभग एक जैसी है. साथ ही दोनों जगहों पर आम लोग भी एक ही तरीके से परेशान हैं.
जी हां बिल्कुल सही सुना आपने, इस अनूठे अंदाज में अपना विरोध दर्ज करने की कहानी भी खासी दिलचस्प है. शहर में रोड के नाम पर जगह जगह गड्ढे थे. जिस कारण, सामान्य जनजीवन अस्त व्यस्त हो रहा था. इसी के मद्देनजर कुछ आईटी प्रोफेशनल्स ने सड़कों की खस्ताहाली के लिए ऑनलाइन कैम्पेन चलाया. ताकि उनकी बात आईटी मिनिस्टर केटी रामा राव और नगरपालिका प्रशासन विभाग सुन ले और उस पर कार्यवाही करे. मगर इस मामले में भी वही हुआ जो बरसों से होता चला आया है. यानी इस अहम मुद्दे पर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई और लोगों को मुंह की खानी पड़ी जिससे वो मन मन के रह गए.
प्रशासन और सरकार द्वारा कार्यवाही न होने से आहत लोगों ने हिम्मत नहीं हारी. इन लोगों ने अब ये फैसला किया है कि वो घोड़ों से ऑफिस जाएंगे ताकि जब कभी भी अधिकारियों का सामना इनसे और इनके घोड़ों से हो. उन्हें इस बात का एहसास हो कि एक नागरिक के लिए उनका मूल कर्त्तव्य क्या है.
इस पूरे मामले से एक बात तो साफ है कि आज भले ही हम धर्म, भाषा, जाति, वर्ण, वर्ग के आधार पर लड़ें और उसके बाद मर जाएं मगर उन मुद्दों पर हमारा बिल्कुल भी ध्यान नहीं है जिनसे जुड़ी चीजें हमारे लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है.
हैदराबाद में मुद्दा सड़कें हैं. दिल्ली में मुद्दा साफ पानी है, बिहार में अच्छी शिक्षा, उत्तर प्रदेश में बिजली, ओडिशा में गरीबी सबसे अहम मुद्दा है. मगर इसके बावजूद आज जिस तरह लोग अपने मूल अधिकारों पर बात न करके, अन्य चीजों पर अपना मत प्रकट करने में लगे हैं उससे एक बात तो साफ है कि विकासशील से विकसित होने के लिए हम चाहे लाख बड़ी-बड़ी बातें कर लें. हकीकत ये है कि अभी हमें पूर्ण रूप से विकसित होने और भारत को एक समृद्ध राष्ट्र बनाने में लम्बा वक्त लगेगा.
अंत में इतना ही कि भले ही हैदराबाद के लोगों का ये प्रयास बहुत छोटा है मगर इससे एक बात साफ है कि हमारे समाज में कम ही लोगों में सही, मगर ऐसी समझ मौजूद है जिसके चलते बदलाव की प्रक्रिया में वो अपना अहम योगदान दे रहे हैं और चाह रहे हैं कि कुछ ऐसा हो जाए जिससे लोग हमको देख के प्रेरणा लें.
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