वो कहावत तो सुनी होगी 'अति सर्वत्र वर्जयेत'. संस्कृत की इस कहावत का सीधा सा मतलब निकाला जा सकता है कि हर मामले में लिमिट होनी चाहिए और लिमिट से आगे अगर जाएंगे तो मामला खराब हो सकता है. यही कहावत इस समय स्मार्टफोन, सोशल मीडिया और कई मनोरंजक एप्स की है. न जाने कितनी ही रिपोर्ट्स आई हैं जिनमें स्मार्टफोन एडिक्शन को खतरनाक बताया गया है. अब यही हाल एप्स का हो गया है. PBG और टिक-टॉक जैसे एप्स लगातार बैन किए जा रहे हैं.
ताज़ा मामला मद्रास हाई कोर्ट का है जहां ये बोला गया है कि इस चीनी वीडियो एप TikTok को बैन कर देना चाहिए क्योंकि ये 'पोर्नोग्राफी' को बढ़ावा दे रहा है. Bytedance Technology द्वारा बनाया गया ये एप कई तरह के स्पेशल इफेक्ट्स के साथ लोगों को वीडियो शेयर करने का मौका देता है और न सिर्फ शहरों में बल्कि ये एप गावों में भी इतना लोकप्रिय हो गया है कि लोग लाखों फॉलोवर्स के साथ हर रोज़ वीडियो शेयर कर रहे हैं.
न सिर्फ जोक बल्कि, फिल्मों के डायलॉग, गाने, फिल्मी सीन, डांस वीडियो आदि बहुत कुछ टीकटॉक पर मौजूद है.
पहले भी उठ चुकी है इसे बैन करने की मांग-
फरवरी में तमिलनाडु के एक मंत्री का कहना था कि ये एप अब अझेल हो गया है. दूसरी ओर, भाजपा के राइट विंग के एक नेता ने उसी समय इस एप को बैन करने की हिदायत दे दी थी. इसी तरह कई बार टिक टॉक को बैन करने की बात सामने आ चुकी है.
आखिर क्यों मद्रास हाईकोर्ट ने लिया ये फैसला-
टिकटॉक एप के खिलाफ पब्लिक इंट्रेस्ट में मद्रास हाईकोर्ट में हियरिंग चल रही है और बुधवार को कोर्ट ने अपना स्टेटमेंट दिया जिसमें कहा गया था कि टिकटॉक एप के कारण बच्चे दरअसल यौन शोषण करने वाले लोगों के ज्यादा संपर्क में आ सकते हैं. TikTok का काफी कंटेंट बच्चों देखने के लिए सही नहीं है और इसी कारण इस एप को खतरनाक कहा गया है. इस एप के जरिए बच्चे अजनबियों से सीधे संपर्क में आ सकते हैं और किसी को नहीं पता कि उनके साथ क्या हो सकता है.
टिकटॉक एप में कंटेंट सेंसरशिप के नियम कड़े नहीं हैं और बच्चों पर इसका गलत असर पड़ सकता है.
टिकटॉक जो भारत में 240 मिलियन से ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है उसे बैन करने की बात कई बार उठी है, लेकिन जिस तरह के तर्क इस बार दिए गए हैं उससे एक बात तो पक्की है कि टिकटॉक पर सेंसरशिप की बातें अब उठने लगेंगी.
पर सबसे जरूरी सवाल ये है कि अक्सर ये एंटरटेनमेंट एप्स इतने खतरनाक बन जाते हैं कि इन्हें बैन करने की जरूरत पड़ जाए. जैसे PokemonGo, PubG, TikTok आदि एप्स के दीवाने बहुत हैं, लेकिन इन सभी एप्स को आखिरकार बैन करने की बात होने की लगती है. पर ऐसा क्यों?
'अति सर्वत्र वर्जयेत' का कॉन्सेप्ट लागू हो जाता है
इन एप्स के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये होती है कि ये एडिक्टिव होते हैं. पोकीमॉन गो और PBG जैसे गेम्स खेलने वाले इतने एडिक्ट हो जाते हैं कि उन्हें आगे-पीछे कुछ नहीं दिखता. ये एकडिक्शन मानसिक और शारीरिक तौर पर नुकसान पहुंचाता है. टिकटॉक की ही बात करें तो न सिर्फ टिकटॉक पर बल्कि फेसबुक, इंस्टाग्राम, वॉट्सएप सभी पर टिकटॉक के वीडियो शेयर करना और दिन रात वीडियो बनाकर Tiktok Superstar बनना लोगों के लिए आम हो गया है. खुद ही सोचिए आपकी फ्रेंडलिस्ट में ऐसे कितने लोग होंगे जो टिकटॉक के वीडियो लगभग हर रोज़ शेयर करते हैं.
इन एंटरटेनमेंट एप्स की सबसे बड़ी खामी ही इनका एडिक्शन होती है.
जब एप्स की वजह से लोगों को दिक्कत होने लगे
एक तरफ एडिक्शन की बात है और एक तरफ लोगों की सुरक्षा की. जिन भी एप्स को बैन करने की बात कही गई है उनके बारे में न जाने कितनी खबरें दिख जाती हैं. पोकीमॉन गो की वजह से कई लोगों के एक्सिडेंट हुए हैं. PBG के कारण एक लड़के ने सुसाइड कर लिया, तो मलेशिया के एक आदमी ने इस खेल के लिए अपनी बीवी और बच्चों को छोड़ दिया. टिकटॉक के लिए लोग गाड़ियों के आगे कूदने लगे.
सोशल मीडिया चैलेंज यानी वायरल चैलेंज इस टिकटॉक एप में भी हैं. अगर बात सिर्फ इस एप की हो रही है तो मैं आपको बता दूं कि इस एप में यकीनन बाकी एप्स के मुकाबले ज्यादा चैलेंज लिए जाते हैं. किसी भी तय वक्त में आप इस एप में 5 से अधिक चैलेंज एक साथ खेल सकते हैं.
इन चैलेंज के कारण टिकटॉक एप थोड़ा खतरनाक बन जाता है क्योंकि लोग किसी भी हद तक जाकर इन्हें पूरा करने की कोशिश करते हैं.
ये एप्स इन्हीं कारणों से खतरनाक हो जाते हैं. एडिक्शन अगर एक लिमिट से आगे बढ़ जाता है तो ये सभी के लिए मुश्किलें खड़ी कर देता है.
जब एप्स की वजह से कानून तोड़ा जाने लगे
इन एप्स के कारण कानून भी तोड़ा जाता है. रोड पर गाड़ियों के आगे कूदने से लेकर, इन एप्स के कारण चोरी करने और गुस्से में आकर किसी से मारा-पीटी करते तक के किस्से सामने आ चुके हैं. टिकटॉक एप किसी चीनी बम की तरह है जो भारतीयों को अपनी ओर खींच रहा है.
कम उम्र के लोगों को ज्यादा खतरा हो सकता है
यहां सिर्फ भारत की ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों की यही राय है. हाल ही में अमेरिका में टिकटॉक को लेकर 5.7 मिलियन डॉलर का फाइन लगाया गया है. कारण? क्योंकि ये अमेरिकी बच्चों की प्राइवेसी पॉलिसी के खिलाफ है. इस एप का असर उन बच्चों पर भी हो रहा है जो 13 साल से कम हैं. यूजर की उम्र के हिसाब से कंटेंट को सेंसर करने की बात पिछले काफी समय से चल रही है, लेकिन अभी तक टिकटॉक इसपर लगाम लगाने में कामियाब नहीं हुआ है.
इन सब कारणों को देखें तो पाएंगे कि टिकटॉक के लिए कंटेंट सेंसरशिप के कड़े नियम लाना बहुत जरूरी है. ऐसे चैलेंज जिनसे लोगों को नुकसान हो, ऐसे वीडियो जो बच्चों के देखने के लिए सही न हों या ऐसे यूजर्स जो गाइडलाइन फॉलो न करते हैं उन्हें हटाना एप की जिम्मेदारी है.
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