फेसबुक से सरकारें बन रही हैं, फेसबुक के कारण सरकारें गिर रही हैं. ये शायद सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक की जटिलता ही है कि अब ऐसे हालात बन गए हैं, जिनमें फेसबुक पर कुछ लिखने के कारण लोगों को इस्तीफे के लिए बाध्य किया जा रहा है. फेसबुक के कारण ही लोग नैतिकता को आधार बनाकर इस्तीफा दे रहे हैं. भारत में बैठकर इन बातों को समझना जरा मुश्किल है. बात जो समझनी हो तो हमें सुदूर नॉर्वे का रुख करना पड़ेगा. नॉर्वे की कानून मंत्री को फेसबुक पर अपने मन की बात लिखना न सिर्फ महंगा पड़ा बल्कि आलोचना के फलस्वरूप उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा तक देना पड़ गया.
जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. खबर है कि नॉर्वे की न्याय मंत्री सिलवी लिस्टहाउग फेसबुक पर अपने लिखने के कारण हुई ट्रोलिंग से इतना आहत हुईं कि उन्होंने सरकार को अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया. बात बस इतनी थी कि सिलवी लिस्टहाउग ने अपनी सरकार के विपक्ष को ध्यान में रखते हुए बस इतना लिखा कि "नॉर्वे की सेंटर-लेफ्ट लेबर पार्टी नागरिकों के मुकाबले आतंकियों को बचा रही है और उन्हें संरक्षण दे रही है" इस पोस्ट पर सिलवी ने सोमालिया के आतंकी संगठन शबाब के दो आतंकियों के फोटो भी लगाए थे.
ज्ञात हो कि सिलवी और इनकी पार्टी ने एक ऐसे बिल का समर्थन किया था जिसमें यदि नॉर्वे के किसी नागरिक के लिए ये संदेह उत्पन्न हुआ कि वो आतंकवाद का समर्थन कर रहा है या आतंकवादी बन रहा है तो बिना किसी कोर्ट हियरिंग के उसकी नागरिकता रद्द कर दी जाएगी. विपक्ष ने इस बात को नहीं माना और इसी बात से नाराज सिलवी ने ये महत्वपूर्ण मुद्दा अपने फेसबुक पर उठाया था.
सिलवी द्वारा फेसबुक पर मुद्दा लाने के बाद जहां एक तरफ इन्हें अपने समर्थकों से...
फेसबुक से सरकारें बन रही हैं, फेसबुक के कारण सरकारें गिर रही हैं. ये शायद सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक की जटिलता ही है कि अब ऐसे हालात बन गए हैं, जिनमें फेसबुक पर कुछ लिखने के कारण लोगों को इस्तीफे के लिए बाध्य किया जा रहा है. फेसबुक के कारण ही लोग नैतिकता को आधार बनाकर इस्तीफा दे रहे हैं. भारत में बैठकर इन बातों को समझना जरा मुश्किल है. बात जो समझनी हो तो हमें सुदूर नॉर्वे का रुख करना पड़ेगा. नॉर्वे की कानून मंत्री को फेसबुक पर अपने मन की बात लिखना न सिर्फ महंगा पड़ा बल्कि आलोचना के फलस्वरूप उन्हें अपने पद से इस्तीफ़ा तक देना पड़ गया.
जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. खबर है कि नॉर्वे की न्याय मंत्री सिलवी लिस्टहाउग फेसबुक पर अपने लिखने के कारण हुई ट्रोलिंग से इतना आहत हुईं कि उन्होंने सरकार को अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया. बात बस इतनी थी कि सिलवी लिस्टहाउग ने अपनी सरकार के विपक्ष को ध्यान में रखते हुए बस इतना लिखा कि "नॉर्वे की सेंटर-लेफ्ट लेबर पार्टी नागरिकों के मुकाबले आतंकियों को बचा रही है और उन्हें संरक्षण दे रही है" इस पोस्ट पर सिलवी ने सोमालिया के आतंकी संगठन शबाब के दो आतंकियों के फोटो भी लगाए थे.
ज्ञात हो कि सिलवी और इनकी पार्टी ने एक ऐसे बिल का समर्थन किया था जिसमें यदि नॉर्वे के किसी नागरिक के लिए ये संदेह उत्पन्न हुआ कि वो आतंकवाद का समर्थन कर रहा है या आतंकवादी बन रहा है तो बिना किसी कोर्ट हियरिंग के उसकी नागरिकता रद्द कर दी जाएगी. विपक्ष ने इस बात को नहीं माना और इसी बात से नाराज सिलवी ने ये महत्वपूर्ण मुद्दा अपने फेसबुक पर उठाया था.
सिलवी द्वारा फेसबुक पर मुद्दा लाने के बाद जहां एक तरफ इन्हें अपने समर्थकों से समर्थन मिला तो वहीं दूसरी ओर इनके आलोचकों ने इनकी खूब आलोचना की और इसी आलोचना से आहत होकर सिलवी ने अपने पद से इस्तीफ़ा देने का सोचा. गौरतलब है कि आज नॉर्वे भी कई अन्य देशों की तरह आतंकवाद की गिरफ्त में है और यहां भी युवाओं की एक बड़ी संख्या का रुझान आतंकवाद की तरफ देखा जा सकता है. आए दिन देश में ऐसा कुछ न कुछ हो रहा है जिसके जिम्मेदार जेहादी आतंकी संगठन हैं.
बात अगर सिलवी के पोस्ट की हो तो उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट को 2011 में हुए एक नरसंहार से जोड़ा था और उसके लिए जेहादी मानसिकता के लोगों को दोषी करार दिया था. मामला विवादित होने के बाद पहले तो सिलवी ने इससे पीछे हटने से मना कर दिया था मगर दबाव के बाद उन्होंने माफ़ी मांग ली थी.
2013 से सक्रिय राजनीति में कदम रखने वाली सिलवी लिस्टहाउग नॉर्वे में एक तेज तर्रार नेता के रूप में जानी जाती हैं. पूर्व में सिलवी ने कई ऐसे फैसले लिए हैं जिसके चलते जहां उन्हें आम जनता से अपर जनसमर्थन मिला तो वहीं दसरी तरफ उन्हें भारी विरोध का भी सामना करना पड़ा. कट्टरपंथ और इस्लामी आतंकवाद की प्रबल अलोचक सिलवी ने इस्तीफ़ा तो दे दिया है मगर अभी इनके इस्तीफे से विरोध के स्वर धीमे नहीं पड़े हैं. आपको बताते चलें कि सिलवी के इस फेसबुक पोस्ट का खामियाजा अभी भी नॉर्वे के प्रधानमंत्री एर्ना सोलबर्ग को उठाना पड़ रहा है.
बहरहाल, मामले के मद्देनजर नॉर्वे में घमासान जारी है और इस मामले को देखते हुए भारत के नेताओं को भी सिलवी से सबक लेने की जरूरत है. ऐसा इसलिए क्योंकि अक्सर ही हम भारतीय नेताओं के मुंह से या फिर उनके सोशल मीडिया पेज पर ऐसा कुछ न कुछ देख लेते हैं जो एक वर्ग को तो अच्छा लगता है मगर जिसको देखकर, सुनकर या पढ़कर दूसरा वर्ग आहत होता है.
अंत में हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि सिलवी का ये इस्तीफ़ा उन नेताओं और उन भारतीय लोगों के लिए, जिनके वेरीफाइड अकाउंट हैं सबक है. जिन्हें बात बेबात बोलने की आदत है और जिस आदत के चलते उन्हें अपने आलोचकों से भारी आलोचना का सामना करना पड़ता है
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