मेट्रो (Metro) में दो सीटों पर अकेले फैलकर बैठने वाली महिला को कृपया सशक्तिकरण से जोड़कर औरत जाति को बदनाम मत कीजिए. महिला सशक्तिकरण का मतलब पुरुषों को नीचा दिखाना या सताना नहीं है. इस तस्वीर को देखकर आपके मन में क्या ख्याल आता है उसका कैप्शन जरूर दीजिए, मगर हर चीज में नारीवाद को घुसाकर महिलाओं को नीचा दिखाने का फैशन मत चलाइए. यह हम भी जानते हैं कि ना दुनिया का हर पुरुष अपराधी है औऱ ना ही हर और औरत पापिन है. तो इस तस्वीर को इस महिला तक ही सीमीत रखते हैं और आगे की बात करते हैं.
असल में सोशल मीडिया पर एक तस्वीर खूब वायरल की जा रही है. तस्वीर में दिख रहा है कि एक लड़की मेट्रो में दो सीटों पर पैर पसारकर अकेले बैठी है. जबकि उसके बगल में एक लड़का खड़ा है. लड़के को शायद बैठने के लिए सीट नहीं मिली है. हालांकि इस बीच दोनों अपना-अपना मोबाइल चला रहे हैं. यह बात साफ नहीं है कि यह तस्वीर कब औऱ कहां की है?
दोनों में सीट को लेकर कोई बात हुई है या नहीं हुई है...मगर इसी बात को लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी हुई है. लोग इसी बहाने महिलाओं को भला-बुरा कह रहे हैं.
कई लोगों ने अपना एक्सपीरियंस शेयर किया है. कुछ का कहना है कि ऐसा मेरे साथ भी हो चुका है. एक यूजर ने लिखा है कि ऐसा बस में भी होता है. जब महिलाएं अपनी आरक्षित सीट पर ना बैठकर अपने साथी के बगल में बैठने के लिए यात्रियों को सीट से उठा देती हैं.
एक यूजर ने लिखा है कि हो सकता है कि महिला ने लड़के को अगले स्टेशन पर उतरना हो. दूसरे ने लिखा है कि महिला कोरोना प्रोटोकॉल का लाभ ले रही है.
असल में जिस सीट पर लड़की बैठी है वह महिलाओं के लिए नहीं बल्कि वरिष्ठ...
मेट्रो (Metro) में दो सीटों पर अकेले फैलकर बैठने वाली महिला को कृपया सशक्तिकरण से जोड़कर औरत जाति को बदनाम मत कीजिए. महिला सशक्तिकरण का मतलब पुरुषों को नीचा दिखाना या सताना नहीं है. इस तस्वीर को देखकर आपके मन में क्या ख्याल आता है उसका कैप्शन जरूर दीजिए, मगर हर चीज में नारीवाद को घुसाकर महिलाओं को नीचा दिखाने का फैशन मत चलाइए. यह हम भी जानते हैं कि ना दुनिया का हर पुरुष अपराधी है औऱ ना ही हर और औरत पापिन है. तो इस तस्वीर को इस महिला तक ही सीमीत रखते हैं और आगे की बात करते हैं.
असल में सोशल मीडिया पर एक तस्वीर खूब वायरल की जा रही है. तस्वीर में दिख रहा है कि एक लड़की मेट्रो में दो सीटों पर पैर पसारकर अकेले बैठी है. जबकि उसके बगल में एक लड़का खड़ा है. लड़के को शायद बैठने के लिए सीट नहीं मिली है. हालांकि इस बीच दोनों अपना-अपना मोबाइल चला रहे हैं. यह बात साफ नहीं है कि यह तस्वीर कब औऱ कहां की है?
दोनों में सीट को लेकर कोई बात हुई है या नहीं हुई है...मगर इसी बात को लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी हुई है. लोग इसी बहाने महिलाओं को भला-बुरा कह रहे हैं.
कई लोगों ने अपना एक्सपीरियंस शेयर किया है. कुछ का कहना है कि ऐसा मेरे साथ भी हो चुका है. एक यूजर ने लिखा है कि ऐसा बस में भी होता है. जब महिलाएं अपनी आरक्षित सीट पर ना बैठकर अपने साथी के बगल में बैठने के लिए यात्रियों को सीट से उठा देती हैं.
एक यूजर ने लिखा है कि हो सकता है कि महिला ने लड़के को अगले स्टेशन पर उतरना हो. दूसरे ने लिखा है कि महिला कोरोना प्रोटोकॉल का लाभ ले रही है.
असल में जिस सीट पर लड़की बैठी है वह महिलाओं के लिए नहीं बल्कि वरिष्ठ नागरिकों और शारीरिक रूप से विकलांगों के लिए है. इसलिए लोग कह रहे हैं कि "अरे ई दीदी को कोई यह बात याद दिलाओ कि यह आपके घर का सोफा नहीं है".
एक यूजर ने लिखा है कि "कुछ महिलाएं हर चीज पर खुद को इतना हकदार महसूस करती हैं कि उन्हें लगता है कि वे मानव जाति के लिए भगवान का कोई उपहार हैं...वे खुद को दूसरों के समान महसूस नहीं करना चाहती हैं. वे खुद को सबसे ऊपर महसूस करना चाहती हैं."
एक ने लिखा है कि "यह महिला सशक्तिकरण से ऊपर की बात है. वे न केवल महिलाओं की सीटों पर कब्जा करती हैं बल्कि पुरुषों से भी उम्मीद करती हैं वे उनके लिए सामान्य सीटें छो. उनके हिसाब से यही सच्ची समानता है!"
एक लड़की ने लिखा है कि "वो सो नहीं रही है, जब लड़के को बैठना था तो वह उससे पूछ सकता था". इस पर एक लड़के ने जवाब दिया है कि "हां मर्द को दर्द नहीं होता है."
वहीं एक दूसरे यूजर ने लिखाहै कि ये गलत है! सशक्तिकरण का अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति को असंवेदनशील होना चाहिए. इनके लिए पलंग की व्यवस्था क्यों नहीं कर देते? वैसे अगर यह तस्वीर सही है तो आप इस मैडम के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
देखिए लोगों ने दो सीट पर अकेले बैठने वाली लड़की के लिए क्या कहा है-
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