महाकवि रामधारी सिंह दिनकर ने रश्मिरथी में कृष्ण की चेतावनी में लिखा था कि जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है. होने को तो ये सिर्फ एक कविता की पंक्ति हैं लेकिन जब हम इसे विवादास्पद हिंदुत्व नेता यति नरसिंहानंद सरस्वती के संदर्भ में देखें तो मिलता है कि बरसों पहले ये पंक्तियां दिनकर ने यूं ही नहीं लिखी थीं. दिनकर ने तब शायद ये देख लिया हो कि एक दिन वो भी आएगा जब अपनी जहर बुझी जुबान से यति ऐसा बहुत कुछ बोलेंगे जो न केवल देश की अखंडता और एकता को प्रभावित करेगा बल्कि दो समुदायों के बीच की खाई और गहरी हो जाएगी. सिर्फ यति ही क्यों विवेक तो उस मौलाना का भी मरा है जो ये मानता है कि केंद्र और गृह मंत्री अमित शाह मुसलमानों पर जुल्म कर रहे हैं और उसने अमित शाह के लिए भरी सभा में बद्दुआ ही कर डाली.
चाहे वो यति हों या अमित शाह के लिए बद्दुआ करने वाला मौलाना क्योंकि सारी बातें अपने एजेंडे और स्वार्थ के इर्द गिर्द घूमती हैं तो दोनों में कोई ज्यदा बड़ा फर्क नहीं है.
बात की शुरूआत यति से तो बताना बहुत जरूरी है कि अभी बीते दिनों ही यति नरसिंहानंद सरस्वती ने हरिद्वार में बंद कमरे के अंदर धर्म संसद का आयोजन किया था. कहने को तो ये धर्म संसद थी लेकिन यहां हर वो बात हुई जिसकी इजाजत न धर्म देता है. न कानून और न ही संविधान.
हरिद्वार में आयोजित इस तीन दिवसीय धर्मसंसद में जहां अल्पसंख्यकों को मारने की बातें हुईं तो वहीं उनके धार्मिक स्थलों पर हमला करने की भी बात की गई. बाद में...
महाकवि रामधारी सिंह दिनकर ने रश्मिरथी में कृष्ण की चेतावनी में लिखा था कि जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है. होने को तो ये सिर्फ एक कविता की पंक्ति हैं लेकिन जब हम इसे विवादास्पद हिंदुत्व नेता यति नरसिंहानंद सरस्वती के संदर्भ में देखें तो मिलता है कि बरसों पहले ये पंक्तियां दिनकर ने यूं ही नहीं लिखी थीं. दिनकर ने तब शायद ये देख लिया हो कि एक दिन वो भी आएगा जब अपनी जहर बुझी जुबान से यति ऐसा बहुत कुछ बोलेंगे जो न केवल देश की अखंडता और एकता को प्रभावित करेगा बल्कि दो समुदायों के बीच की खाई और गहरी हो जाएगी. सिर्फ यति ही क्यों विवेक तो उस मौलाना का भी मरा है जो ये मानता है कि केंद्र और गृह मंत्री अमित शाह मुसलमानों पर जुल्म कर रहे हैं और उसने अमित शाह के लिए भरी सभा में बद्दुआ ही कर डाली.
चाहे वो यति हों या अमित शाह के लिए बद्दुआ करने वाला मौलाना क्योंकि सारी बातें अपने एजेंडे और स्वार्थ के इर्द गिर्द घूमती हैं तो दोनों में कोई ज्यदा बड़ा फर्क नहीं है.
बात की शुरूआत यति से तो बताना बहुत जरूरी है कि अभी बीते दिनों ही यति नरसिंहानंद सरस्वती ने हरिद्वार में बंद कमरे के अंदर धर्म संसद का आयोजन किया था. कहने को तो ये धर्म संसद थी लेकिन यहां हर वो बात हुई जिसकी इजाजत न धर्म देता है. न कानून और न ही संविधान.
हरिद्वार में आयोजित इस तीन दिवसीय धर्मसंसद में जहां अल्पसंख्यकों को मारने की बातें हुईं तो वहीं उनके धार्मिक स्थलों पर हमला करने की भी बात की गई. बाद में कार्यक्रम के वीडियो यूट्यूब पर डाले गए और हिंदुओं से मुसलमानों के खिलाफ एकजुट होने का अनुरोध किया गया. वीडियो सामने आने के बाद भांति भांति की बातें हो रही हैं और यति को लेकर कहा यही जा रहा है कि उन्हें कानून का कोई खौफ नहीं है.
यकीनन यति ने जो कहा है वो गलत है लेकिन ऐसी बातें क्यों? इसकी एक बड़ी वजह वो नफरत है जो इस देश के मुसलमानों को भाजपा और भाजपा में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से है. क्योंकि आज का दौर ऐसा है जहां मूर्खता के मद्देनजर कोई किसी से कम नहीं है सोशल मीडिया पर एक ऐसा वीडियो भी तैर रहा है जिसमें एक मौलाना केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, प्रधानमंत्री के विषय में भद्दी बात करते हुए उनके लिए बद्दुआएं कर रहा है.
वीडियो कहां का है किस समय का है फिलहाल इसकी कोई जानकारी नहीं है. हां लेकिन वीडियो में जो लहजा अमित शाह को कोसते मौलाना का है मालूम यही चलता है कि वीडियो आंध्र प्रदेश या तेलंगाना का है और शायद तब का है जब नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में मुसलमानों की एक बड़ी आबादी सड़कों पर थी और विरोध प्रदर्शन कर रही थी.
बात सीधी और साफ है चाहे वो यति नरसिंहानंद सरस्वती हों या अमित शाह के लिए बद्दुआएं करता मौलाना ये दोनों ही लोग एक ऐसी फसल बो रहे हैं जिसका परिणाम सिर्फ और सिर्फ नफरत है. जनता इस बात को समझे कि ये वो लोग हैं जो काम की बातों से उनका ध्यान हटा रहे हैं और उन्हें व्यर्थ के मुद्दों में उलझा रहे हैं.
हमें इस बात को जल्द से जल्द समझना होगा वरना जब तक हम समझेंगे हमारे पास संजोने या बचाने को कुछ होगा नहीं. क्योंकि तब तक बड़ी देर हो चुकी होगी.
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