Modi ने कोरोना पर केजरीवाल को घेरा और कठघरे में योगी नजर आने लगे!
संसद में नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के भाषण में निशाने पर तो कांग्रेस नेतृत्व नजर आ रहा था, लेकिन दायरे में पूरा विपक्ष आ गया - और अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) तो बस मोहरा थे योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को कठघरे में खड़ा करने के लिए.
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बीजेपी भी गजब है - और मौजूदा नेतृत्व तो न भूतो न भविष्यति टाइप ही लगता है. मोदी-शाह सरप्राइज तो देते ही हैं, झटके भी ऐसे देने लगे हैं कि जो कोई भी निशाने पर है, जब तक असल बात उसे समझ आये वो खुद को संभालने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा कर भी सिर्फ गलतियां ही करता फिरे.
पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) बनारस में बीजेपी की यूपी चुनावी मुहिम की शुरुआत कर योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को कोरोना पर सर्टिफिकेट देते हैं - संकट काल में बहुत बढ़िया काम किया.
फिर अमित शाह लखनऊ जाकर मोदी के नाम पर वोट मांगने लगते हैं और पश्चिम यूपी पहुंच कर कहते हैं - विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री नहीं, भाइओं और बहनों, सिर्फ मोदी के चेहरे पर बीजेपी को वोट दीजिये.
अब से पहले, 2018 के आखिर में जब पांच राज्यों में विधानसभा के लिए चुनाव हो रहे थे, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में जिन्ना की तस्वीर को लेकर बयानबाजी के जरिये बहस बढ़ायी गयी - और देखते ही देखते चुनाव क्षेत्रों बहस का एक और भी टॉपिक मिल गया था.
ठीक वैसे ही अभी, यूपी सहित पांच राज्यों में हो रहे चुनाव के लिए वोटिंग से ऐन पहले कर्नाटक की धरती से बवाल-ए-हिजाब शुरू हो चुका है - मकसद भी वही है, मंजिल भी वही है.
और संसद में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण और उसके बाद योगी-केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की ट्विटर पर नोक-झोंक से थोड़ा सा इतर हट कर और थोड़ा ध्यान से देंखे तो सब कुछ आसानी से समझ आ रहा है - बस कुछ कड़ियों को जोड़ कर देखना है.
केजरीवाल पर निशाना, योगी पर निगाहें!
सब कुछ कोई सीधे या साधारण तरीके से नहीं चल रहा है, बल्कि जैसे शंकर-एहसान-लॉय ने क्रिकेट मैचों के लिए एक थीम सॉन्ग बनाया था - 'दे घुमा के', प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में राहुल गांधी के जोरदार भाषण के जवाब में एक ही शॉट में सिर्फ कांग्रेस नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल को ही नहीं लिया है, बल्कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक भी लपेटे में आ गये हैं.
एक साधे सब सधे: प्रधानमंत्री मोदी के मन में गुस्सा तो राहुल गांधी को लेकर भरा रहा होगा. एक वजह ये भी हो सकती है कि इस बार राहुल गांधी भी मोदी के गले मिल कर उनका गुस्सा शांत कराने का मौका भी नहीं निकाल सके.
यूपी में तो सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट जैसी लड़ाई शुरू हो गयी है - और योगी आदित्यनाथ धीरे धीरे फंसते ही जा रहे हैं.
स्वाभाविक रूप से प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस और गांधी परिवार को जी भर सुनाया. सत्तर साल की बातों से आगे बढ़ कर सौ साल तक पहुंच गये. कहने लगे कि कांग्रेस तो अब सत्ता में आने से रहे. जैसे पद्म अवॉर्ड मिलने के बाद गुलाम नबी आजाद और उनके साथियों की बातें दोहरा रहे हों - कांग्रेस नेतृत्व को तो हारने की आदत ही पड़ चुकी है. बिहार चुनाव के नतीते आने के बाद आजाद की G-23 टीम के कपिल सिब्बल समझा तो कुछ कुछ ऐसे ही रहे थे.
और फिर प्रधानमंत्री मोदी एक बार शुरू हुए तो क्या केजरीवाल और क्या उद्धव ठाकरे, चुन चुन कर सबको सुनाया. सबकी खबर ली - और ऐसी खबर ली कि उसका असर देर तक भी हो और दूर तक भी.
कोरोना की पहली लहर को लेकर मोदी ने कहा कि सभी हेल्थ एक्सपर्ट कह रहे थे कि जो जहां है, वहीं रहे. दरअसल, ये प्रधानमंत्री मोदी के संपूर्ण लॉकडाउन के ठीक बाद की बात है. मुख्यमंत्रियों में नीतीश कुमार के भी ऐसे ही विचार थे.
प्रधानमंत्री मोदी ने याद दिलाया कि तब पूरी दुनिया में यही समझाने की कोशिश होती रही कि इंसान जहां कहीं भी जाएगा, अगर उसे कोरोना हो गया है तो वो सबको बांटेगा.
प्रधानमंत्री ने संसद में कहा - '...तब कांग्रेस के लोगों ने क्या कहा... मुंबई के रेलवे स्टेशन पर खड़े होकर... मुंबई छोड़कर जाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए... मुंबई में श्रमिकों को टिकट दिया गया... मुफ्त में टिकट दिया गया, लोगों को प्रेरित किया गया कि जाओ. महाराष्ट्र में हमारे ऊपर जो बोझ है वो जरा कम हो... तुम उत्तर प्रदेश के हो, तुम बिहार के हो, जाओ वहां कोरोना फैलाओ - आपने बहुत बड़ा पाप किया.'
बिहार का नाम तो यूं ही लेना पड़ा, फोकस तो यूपी, उत्तराखंड और पंजाब पर रहा - और वो तो दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के बगैर मुमकिन भी नहीं था.
प्रधानमंत्री मोदी बोले, 'उस समय दिल्ली में ऐसी सरकार थी... जो है, उस सरकार ने जीप पर माइक बांधकर दिल्ली की झुग्गी झोपड़ी में गाड़ी घुमा कर के लोगों को कहा संकट बड़ा है... भागो, गांव जाओ... घर जाओ.'
फिर समझाते हैं. समझाने के तरीके को समझें तो असर खास तौर पर उन राज्यों पर ही हुआ जहां अभी विधानसभा के लिए चुनाव होने जा रहे हैं. चुनाव का पहला चरण पश्चिम उत्तर प्रदेश से शुरू हो रहा है - 10 फरवरी से. नतीजे 10 मार्च को आएंगे.
प्रधानमंत्री ने कहा, '...और दिल्ली से जाने के लिए बसों ने भी आधे रस्ते छोड़ दिया... श्रमिकों के लिए मुसीबतें पैदा की... ये हुआ कि यूपी में, उत्तराखंड में पंजाब में जिस कोरोना की इतनी गति नहीं थी... इतनी तीव्रता नहीं थी इस पाप के कारण कोरोना ने वहां भी अपनी चपेट में ले लिया.'
पहला मकसद तो केजरीवाल को भड़काना ही रहा: ध्यान देने वाली बात ये है कि मोदी ने दिल्ली में कोरोना काल की बदइंतजामियों को लेकर सभी बातें संसद में कही है - मतलब, ये जुमला तो नहीं ही हो सकता.
क्रिया की प्रतिक्रिया में अरविंद केजरीवाल का कहना है कि मोदी झूठ बोल रहे हैं - और ऐसा वो काफी दिनों बाद कह रहे हैं. काफी दिनों से मोदी के लिए केजरीवाल के मुंह से 'कायर' या 'मनोरोगी' जैसे शब्द नहीं सुनने को मिल रहे थे. केवल दो प्रेस कांफ्रेंस को छोड़ कर केजरीवाल ने जब से विधानसभा चुनावों की घोषणा हुई है, मोदी का नाम लेने से परहेज किया है.
संसद में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण पर ट्विटर पर मुख्यमंत्री केजरीवाल लिखते हैं - 'प्रधानमंत्री जी का ये बयान सरासर झूठ है!'
प्रधानमंत्री जी का ये बयान सरासर झूठ है। देश उम्मीद करता है कि जिन लोगों ने कोरोना काल की पीड़ा को सहा, जिन लोगों ने अपनों को खोया, प्रधानमंत्री जी उनके प्रति संवेदनशील होंगे। लोगों की पीड़ा पर राजनीति करना प्रधानमंत्री जी को शोभा नहीं देता। pic.twitter.com/Dd4NsRNGCY
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) February 7, 2022
17 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी का बर्थडे होता है - और आखिरी बार 2021 में तभी केजरीवाल ने ट्विटर पर मोदी शब्द का इस्तेमाल किया था - और केजरीवाल के स्टैंड में ये खास तरह की तब्दीली मई, 2019 में आम चुनाव के नतीजे आने के बाद से महसूस की जा रही है.
दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान तो अरविंद केजरीवाल हनुमान चालीसा का पाठ करते ही रहे, नतीजे आये तो हनुमान जी को थैंक यू भी बोला था. अब तो दिल्ली में दिवाली से लेकर अयोध्या में तिरंगा यात्रा तक आप के हर कार्यक्रम में मायावती के ब्राह्मण सम्मेलन की तरह ही नारेबाजी भी होने लगी है - जय श्रीराम!
और लपेटे में योगी आ गये: ये तो योगी आदित्यनाथ का क्विक रिएक्शन ही बता रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीर बिलकुल निशाने पर लगी है - केजरीवाल तो निमित्त मात्र हैं.
सुनो योगी,
आप तो रहने ही दो। जिस तरह UP के लोगों की लाशें नदी में बह रहीं थीं और आप करोड़ों रुपए खर्च करके Times मैगज़ीन में अपनी झूठी वाह वाही के विज्ञापन दे रहे थे। आप जैसा निर्दयी और क्रूर शासक मैंने नहीं देखा। https://t.co/qxcs2w60lG
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) February 7, 2022
सीनियर पत्रकार और फिल्म-मेकर विनोद कापड़ी भी बहस में शामिल हैं, लेकिन उनका दायरा दो मुख्यमंत्रियों के बीच ट्विटर संवाद का लहजा ही है - और जो कुछ भी हो रहा है, उसके लिए वो प्रधानमंत्री मोदी को जिम्मेदार मानते हैं.
विनोद कापड़ी ट्विटर पर लिखते हैं, ‘आठ साल में नेताओं का विमर्श इस घिनौने स्तर तक पहुंच गया है कि दो मुख्यमंत्री खुलेआम एक दूसरे के लिए गली-छाप भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं... एक मुख्यमंत्री राज्यपाल को ब्लॉक कर रही हैं... मोदी ने प्रधानमंत्री पद की गरिमा नहीं गिराई होती तो ये सब नहीं देखना पड़ता.’ विनोद कापड़ी का आशय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से है जो पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को ट्विटर पर ब्लॉक कर चुकी हैं - फिर भी विनोद कापड़ी के कुछ सवाल हैं जिनका जवाब वो समझने के लिए लोगों से मांग रहे हैं.
मैं समझना ये चाहता हूँ किमोदी की ऐसी क्या राजनैतिक मजबूरी थी कि अपनी तमाम नाकामियों ( ख़ासतौर पर करोड़ों का पलायन और लाखों की मौत ) को छिपाने के लिए आज दो साल बाद उन्हें संसद में एक के बाद लगातार झूठ बोलने पड़े ? वो भी तक़रीबन दो साल बाद।
कोई इसे डिकोड करके बताए।
— Vinod Kapri (@vinodkapri) February 7, 2022
विनोद कापड़ी की प्रासंगिकता इस मामले में उनकी एक किताब के चलते हो जाती है - '1232KM: कोरोना काल में एक असम्भव सफर'. इस किताब में लॉकडाउन के दौरान ऐसे सात मजदूरों की कहानी है जो गाजियाबाद से बिहार के सहरसा में अपने गांव तक 1232 किलोमीटर का सफर साइकिल से तय किया था.
असर तो चुनाव नतीजे आने के बाद दिखेगा
राजनीति में मौजूदा संदर्भों में कही गयी बातों का दूरगामी असर होता है. असल में ये सब एक खास रणनीति के तहत किया जाता है. कांग्रेस को लेकर आगे के 100 साल की बातों में मैसेज यूपी और पंजाब सहित मौजूदा विधानसभा चुनावों को लेकर है, लेकिन अरविंद केजरीवाल का नाम लेकर जो कुछ कहा है, उसका असर मौजूदा चुनावी माहौल पर तो पड़ेगा ही, नतीजे के आने के बाद उनका साफ असर देखने को मिल सकता है.
1. सर्टिफिकेट तो पुराना हो गया: पहले प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कोरोना काल में योगी आदित्यनाथ ने सबसे अच्छा काम किया. ये तब की बात है जब चुनाव बहुत दूर थे. बनारस की पहली रैली में ही मोदी ने ये बातें कही थी. ऐसा करने से ठीक पहले ही मोदी ने कोरोना कंट्रोल को लेकर बनारस मॉडल की तारीफ की थी - वही बनारस मॉडल जिसे उनके सबसे भरोसेमंद नौकरशाहों में से एक रहे अरविंद शर्मा ने डेवलप किया था.
और जब वर्तमान चुनावी शोर में किसी को बनारस मॉडल ही नहीं याद है तो प्रधानमंत्री मोदी का योगी आदित्यनाथ को दिया गया अच्छे काम का सर्टिफिकेट किसे याद होगा - क्या योगी को UPYOGI बताना भी यूं ही रहा होगा? या यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को टारगेट करने के लिए योगी आदित्यनाथ के कंधे का इस्तेमाल किया गया था?
2. अब विपक्ष योगी को घेरेगा: जरा ध्यान से देखिये. मोदी ने तो केजरीवाल को एक्टिवेट कर दिया. अब केजरीवाल के साथ साथ अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी मिल कर बाकी का काम पूरा कर देंगे.
जब ये होने लगेगा तो क्या मोदी-शाह योगी को अकेले छोड़ कर पीछे हट जाएंगे? नहीं ऐसा तो बिलकुल नहीं होने वाला है. पार्टी की बात जो है. रस्मअदायगी में योगी आदित्यनाथ का मोदी-शाह पहले की तरह ही खुल कर और पूरे जोर शोर और दमखम से बचाव भी करेंगे. राजनीति भी तो इसी को कहते हैं.
3. योगी के पास कोई चारा भी तो नहीं है: असल बात तो ये है कि बीजेपी नेतृत्व को योगी आदित्यनाथ को कदम कदम पर ये एहसास करना है कि वो गलत आदमी से पंगा ले लिये. बहुत बड़ी गलती कर डाली. योगी के पास तो सबसे बड़ा जवाब और उपाय 'ठोक दो' ही होता है - और वो ऐसा हथियार है जिसके इस्तेमाल का एक छोटा सा ही दायरा है.
मुद्दा ये भर नहीं है कि अरविंद शर्मा के मामले में योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात की अवहेलना की, माना तो ये जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ की नजर अब सीधे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जा टिकी है. वो जानते हैं कि यूपी जीत गये उसके बाद दिल्ली की गद्दी पर दावेदारी का रास्ता साफ हो जाएगा.
जाहिर है, मोदी शाह को भी ये अच्छी तरह मालूम है ही - और संघ में भी सह कार्यवाह दत्तात्रेय होसबले फिलहाल उस कुर्सी पर बैठे हुए हैं जिसके पास हर ताले की मास्टर-की होती है. विशेष बात ये भी है कि मोदी और होसबले दोनों ही एक दूसरे को, मतलब, एक दूसरे के काम और काम करने के तरीके को खूब पसंद भी करते हैं.
मोदी-शाह को भी मालूम है कि अगर चुनावों में थोड़े बहुत अंतर से यूपी हाथ से निकल भी गया तो प्लान बी और सी की कौन कहे, 2024 के आम चुनाव से पहले चीजों को कंट्रोल में करने लिए प्लान डी, ई और एफ सारे ही हैं.
मायावती भी तो यूपी में करीब करीब उसी भूमिका में नजर आने लगी हैं जो हरियाणा में दुष्यंत चौटाला पहले से ही निभा रहे हैं - और दोनों की परिस्थितियां और मजबूरियां भी मिलती जुलती ही लगती हैं.
और बाकी अलग से कोई जरूरत पड़ी तो ऑपरेशन लोटस है ना. महाराष्ट्र में चूक गये तो क्या हुआ - कर्नाटक और मध्य प्रदेश में सफलता पूर्वक अंजाम दे ही चुके हैं.
अब जरा आगे बढ़ कर सोचिये. हाल फिलहाल एक बदलाव भी महसूस किया जाने लगा है. यूपी में बीजेपी की तरफ से ही पहले मोदी-मोदी हुआ करता था, लेकिन धीरे धीरे योगी-योगी होने लगा है.
आप चाहें तो बीजेपी के संकल्प पत्र का कवर पेज भी देख सकते हैं और 2017 या उसके पहले के बीजेपी मैनिफेटो के कवर से भी तुलना कर सकते हैं - फिलहाल कवर पर मोदी के साथ साथ योगी की भी तस्वीर मौजूद है. और मोदी-योगी के अलावा किसी की भी नहीं है.
ऐसा लगता है जैसे यूपी की लड़ाई में मोदी बनाम विपक्ष की जगह अब बीजेपी नेतृत्व ने योगी बनाम अखिलेश यादव की खुली छूट दे डाली है. सही भी है, कुछ गड़बड़ हो जाये तो मोदी के नाम पर थोड़े ही होना चाहिये. यूपी कोई पश्चिम बंगाल तो है नहीं. ठीकरा तो योगी आदित्यनाथ के ही सिर फूटेगा. है कि नहीं?
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