सपा के घमासान से यूपी में किस पार्टी को होगा फायदा
यूपी के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार में कलह अब सारी सीमाएं लाघते हुए दिख रहा है. अखिलेश यादव ने इसकी शुरुआत करते हुए बड़ा फैसला लिया है. जिससे इस बात के संकेत मिले हैं कि अब पार्टी में टूट होगी.
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यूपी के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार में कलह अब सारी सीमाएं लांघते हुए दिख रहा है. अखिलेश यादव ने इसकी शुरुआत करते हुए बड़ा फैसला लिया है. जिससे इस बात के संकेत मिले हैं कि अब पार्टी में टूट होगी.
दरअसल, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने मंत्रिमंडल से चाचा शिवपाल यादव समेत चार अन्य मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया. अमर सिंह को लेकर नाराज अखिलेश ने इस बैठक में कहा है कि जो भी अमर सिंह के साथ होंगे उन सभी को बाहर किया जाएगा.
ताजा घटनाक्रम में अखिलेश ने जहां शिवपाल सिंह को कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा तो पार्टी प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल ने अपने चचेरे बड़े भाई और राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव को पार्टी से छह साल के लिए निकाल दिया.
इन बड़े फैसलों से पड़ी समाजवादी पार्टी में दरार-
शिवपाल को पंचायत चुनाव की कमान देने के बाद बढ़ा विवाद
पिछले साल दिसंबर 2015 में उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव से पहले मुलायम सिंह यादव ने जिला पंचायत चुनाव संचालन की कमान चाचा शिवपाल यादव को सौंपी. शिवपाल ने कमान संभालते ही सैफई महोत्सव (28 दिसंबर, 2015) की शुरू होने से एक दिन पहले अखिलेश के करीबी नेता आंनद भदौरिया और सुनील यादव 'साजन' को पार्टी से निकाल दिया.
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दोनों नेताओं को पार्टी से बाहर करने का आदेश शिवपाल के हस्ताक्षर से जारी हुआ था जबकि उस समय पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव थे. चाचा की कार्रवाई के नाराज अखिलेश लखनऊ में होते हुए भी सैफई महोत्सव में नहीं पहुंचे थे. उन्होंने दोनों नेताओं को वापस पार्टी में लेने की जिद पकड़ ली थी और तीन दिनों के अंदर ही सुनील और आनंद की पार्टी में वापसी करवा ली थी
अखिलेश की मर्जी के बिना मुख्तार की पार्टी का विलय
21 जून, 2016 को शिवापल सिंह यादव ने कौमी एकता दल के अध्यक्ष और मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सपा में विलय का ऐलान किया था. उस समय अखिलेश यादव लखनऊ में नहीं थे. विलय से नाराज सीएम अखिलेश ने एक कड़ा फैसला लेते हुए कौमी एकता दल के विलय को रद्द करने का फैसला लिया था.
उस समय अखिलेश उत्तर प्रदेश समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष भी थे. उन्होंने इस विलय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री बलराम यादव को बर्खास्त कर दिया था. हालांकि मुलायम सिंह के दबाव में चार दिनों बाद ही अपने कैबिनेट विस्तार में अखिलेश को बलराम यादव को फिर से मंत्री बनाना पड़ा था
फाइल फोटो: अखिलेश यादव और मुलायम सिंह |
शिवपाल के करीबी दीपक सिंघल को मुख्य सचिव के पद से हटाया
12 सितंबर, 2016 को अखिलेश यादव ने खनन मंत्री गायत्री प्रजापति और पंचायती राज मंत्री राजकिशोर सिंह को कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. इसके एक दिन बाद ही यानि 13 सितंबर को एक अहम फैसले में उन्होंने मुख्य सचिव दीपक सिंघल की छुट्टी कर दी थी. इसके बाद अखिलेश ने 26 सितंबर को कैबिनेट विस्तार किया. पिछली बार की तरह अखिलेश को फिर से कैबिनेट में गायत्री प्रजापति को वापस लेना पड़ा था.
यूपी प्रदेश अध्यक्ष से अखिलेश की छुट्टी
13 सितंबर, 2016 को दीपक सिंघल को हटाए जाने के कुछ देर बाद ही मुलायम ने अपने छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव को अखिलेश की जगह उत्तर प्रदेश की कमान सौंप दी थी और चुनाव से जुड़े फैसले लेने का अधिकार दिया था. इस बात से नाराज अखिलेश ने शिवपाल से महत्वपूर्ण विभाग जैसे लोक निर्माण (पीडब्ल्यूडी), राजस्व और सिंचाई छीन लिए थे. हालांकि हर बार की तरह अखिलेश को अपने निर्णय को वापस पलटना पड़ा पड़ा था
कुछ दिनों बाद अखिलेश को राजस्व और सिंचाई वापस दे दिया लेकिन पीडब्ल्यूडी को अखिलेश ने अपने पास ही रखा था. प्रदेश अध्यक्ष बनते ही शिवपाल ने अखिलेश के करीबी तीन एमएलसी और चार युवा संगठनों के अध्यक्षों को पार्टी से निकाल दिया था. इसमें आनंद भदौरिया और सुनील यादव 'साजन' पर शिवपाल ने दूसरी बार गाज गिराई थी.
कौमी एकता दल का सपा में विलय
प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने के बाद शिवपाल ने 6 अक्टूबर, 2016 को सपा में कौमी एकता दल का विलय करा दिया. शिवपाल ने विलय की घोषणा करते हुए कहा कि पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह के आदेश पर कौमी एकता दल का विलय समाजवादी पार्टी में हुआ है. उन्होंने कहा कि इस विलय से पार्टी को मजबूती मिलेगी. इस विलय के बाद ही अखिलेश और शिवपाल के बीच दरारें बढ़ने लगी थी.
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विपक्ष की नजर इनके वोट बैंक पर
अगर वाकई में समाजवादी पार्टी में टूट होती है तो इससे जहां सपा को सीधा नुकसान होगा वहीं भाजपा और बहुजन समाज पार्टी को इससे बड़े फायदे की उम्मीद है. जो तबका अभी तक समाजवादी पार्टी को पसंद करता था, उन्हें ही अपना वोट देता था बिखराव के बाद ये वर्ग आखिर तय कैसे करेगा कि उसे किसे वोट देना है? ऐसे में कहीं ना कहीं वो दूसरे दल में भविष्य तलाशेंगे.
मुस्लिम वोट किसके साथ?
उत्तर प्रदेश के चुनावी समर में मुसलमानों का वोट 18 फीसदी के करीब है. ये वोट बैंक कोई भी नतीजा पलटने की ताकत रखता है. अभी यूपी में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी मुसलमानों की सबसे बड़ी हमदर्द के तौर पर सामने आती रहीं हैं. अगर सपा का झगड़ा नहीं सुलझा तो उनका ये वोटबैंक कहीं न कही मायावती की पार्टी बीएसपी के पास जाने की उम्मीद है.
इस झगड़े का फायदा बीजेपी भी लेने की फिराक में हैं उसकी योजना यादव वोटरों को साधने की है. बीजेपी ने रणनीति के तहत एक बार फिर से मुख्यमंत्री का चेहरा सामने नहीं रखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सहारे में यूपी में जोर आजमाईश करने की योजना में है. इसके लिए पार्टी ने प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी की कई रैलियां रखी हैं.साथ ही मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर खास कार्यक्रम चलाने की योजना बना रही है.
वहीं कांग्रेस पार्टी भी सपा में फूट का फायदा उठाने से नहीं हिचकना चाहेगी. कम से कम इसके रणनीतिकार प्रशांत किशोर इस माहौल को जरूर साधना चाहेंगे.
फिलहाल समाजवादी पार्टी में जारी कलह कहाँ तक जायेगा कुछ कहना जल्दबाजी होगा और इस पूरे घमासान का फायदा आखिर कौन सी पार्टी 2017 में उठा पाएगी ये तो समय ही बता पायेगा!
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