योगी आदित्यनाथ की आयोध्या वाली दीपावली कहीं 2019 का पूर्वाभ्यास तो नहीं !
अयोध्या में संपन्न हुए कार्यक्रम के बाद आलोचनाओं का दौर शुरू हो गया है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या विकास का ढिंढोरा पीटने वाले नरेंद्र मोदी के लिए हिंदुत्व हमेशा की तरह ट्रंपकार्ड साबित होगा?
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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद, नवरात्र के अलावा विजयदशमी का पर्व भी गोरखपुर में मनाया था लेकिन दिवाली मनाने वो गोरखपुर से अयोध्या पहुंचे. राम नगरी के नाम से मशहूर अयोध्या में यह पहला मौका है जब दीपावली मनाने के लिए पूरा सरकारी महकमा इस ऐतिहासिक शहर में जुटा. हालांकि राज्य सरकार का कहना है कि अयोध्या को पर्यटन के मानचित्र पर लाने के लिए ये सारी कवायद की गयी है लेकिन अयोध्या में इतनी दिलचस्पी को लेकर राजनीतिक गलियारों में इसके सियासी मायने भी निकाले जाने लगे हैं. सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या विकास का ढिंढोरा पीटने वाले नरेंद्र मोदी के लिए हिंदुत्व ट्रंपकार्ड साबित होगा?
अयोध्या में पहली बार दीपावली मनाने के लिए पूरा सरकारी महकमा जुटा था राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार अयोध्या में दीपावली, 2019 लोकसभा चुनावों के लिए अभी से ही तैयारी की शुरुआत है. ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे विकास को मुख्य मुद्दा बनाने के साथ-साथ भाजपा अपना परम्परागत हिंदुत्व कार्ड खेलना चाहती है क्योंकि जब-जब भाजपा ने हिंदुत्व का कार्ड खेला है तब-तब उसे राजनीतिक रूप से फायदा ही हुआ है. और घोर हिंदुत्व का मुखौटा बन चुके योगी आदित्यनाथ को अभी से ही भाजपा ने इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.
चाहे वो केरल का मामला हो या फिर गुजरात का विधानसभा चुनाव. गुजरात में योगी आदित्यनाथ को चुनावी प्रचार में उतारकर भाजपा राज्य के हिन्दू वोटरों का ध्रुवीकरण करने के प्रयास में भी है. जहां योगी आदित्यनाथ एक ओर मोदी सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों का गुणगान करते हैं तो वहीं दूसरी ओर भाजपा को राष्ट्रीय पहचान देने वाले 'राम' नाम का सहारा भी लेते नजर आ रहे हैं.
आलोचकों कि मानें तो कई मुद्दों पर भाजपा विफल हुई है आर्थिक मोर्चे पर भाजपा विफल हाल के दिनों में विपक्षी नेताओं के साथ साथ भाजपा के अंदर से भी मोदी सरकार को आर्थिक मोर्चे पर विफल होने का आरोप लगता रहा है. चाहे नोटबंदी का मामला हो या फिर GSTका. मोदी सरकार को आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा है. और शायद भाजपा को यह अहसास है कि इसका खामियाजा उसे 2019 में होनेवाले लोकसभा चुनावों में भुगतना पड़ सकता है. और शायद यही कारण है कि वो वापस अपने हिंदुत्व के एजेंडे पर वापस आ रही है. इसे हिंदुत्व का पुनरुत्थान भी कहा जा सकता है.
कहा जा सकता है कि हिंदुत्व का एजेंडा विकास को पीछे कर रहा है हिंदुत्व हमेशा से ही भाजपा की चुनावी रणनीति रहा है
जब से भाजपा का गठन हुआ है तब से उसकी राजनीति 'हिंदुत्व' के इर्द गिर्द ही रही है. 90 के दशक में भाजपा राम मंदिर के मुद्दे को आधार बनाकर सत्ता में आयी और तब से उसी के इर्द गिर्द घूमती रही है. इस बार भी लगता है कि अयोध्या में भव्य आयोजन के माध्यम से बीजेपी यह संदेश देना चाहती है कि अयोध्या में राम मंदिर का मामला भले ही सुप्रीम कोर्ट में हो लेकिन ये उसके एजेंडे में है और पार्टी इसे भूली नहीं है. भाजपा का विकास पुरुष कहे जाने वाले नरेंद्र मोदी का विकास का एजेंडा इस बार पीछे पड़ता नजर आ रहा है.
आलोचक मान रहे हैं कि भाजपा ने योगी आदित्यनाथ को मोहरा बनाकर परम्परागत हिंदुत्व कार्ड खेला हैभाजपा का हिंदुत्व एजेंडा और चुनावी परिणाम
भाजपा ने 1991 के लोकसभा चुनावों में, अपने घोषणा पत्र में राम मंदिर बनाने का जिक्र किया था उसके बाद उसे 120 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. 2014 लोकसभा चुनावों के घोषणा पत्र में अयोध्या में राम मंदिर बनाने को शामिल किया गया था उसके बाद अकेले उत्तर प्रदेश में भाजपा को 71 सीटों पर कामयाबी मिली थी. वहीं इसी साल उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी राम मंदिर का मामला जल्द सुलझाने का वादा किया गया था जिसका नतीजा 403 में से 312 सीटों पर विजयी पाना था.
बहरहाल, इतने बड़े भव्य आयोजन के पीछे राजनीतिक मक़सद तो ज़रूर छिपा है. भाजपा ने जो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मोहरा बनाकर परम्परागत हिंदुत्व कार्ड खेला है उससे सियासत पर व्यापक असर पड़ना तय है. हाँ, ये बात और है कि 2014 लोकसभा के प्रदर्शन को, जो कि विकास के मुद्दे पर लड़ा गया था, को बरकरार रख पाएगा कि नहीं ये तो समय ही बताएगा.
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