हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर मुक़दमे वापस लेना यूपी में नया नहीं है
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुज़फ्फरनगर दंगों से संबंधित 131 मुकद्दमों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. आलोचना होना जाहिर है मगर हमें ये ध्यान देना होगा कि पूर्व में अखिलेश यादव भी ऐसा ही कुछ कर चुके हैं
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उत्तर प्रदेश को अपराधमुक्त कर सुशासन का दावा करने वाले भाजपा के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का शुमार उन नेताओं में होता है जिनका विवादों से चोली दामन का साथ है. कभी अपने भाषणों से तो कभी अपने द्वारा लिए गए फैसलों के कारण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अक्सर ही आलोचना के शिकार हो जाते हैं. योगी आदित्यनाथ एक बार फिर चर्चा में हैं. इस बार योगी के चर्चा में आने का कारण है उनका 2013 में मुज़फ्फानगर और शामली में हुए दंगों में फंसे हिन्दुओं के मुक़दमे वापस लेना.
खबर है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने साल 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों से संबंधित 131 मुकद्दमों को वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. इन मुकद्दमों में 13 हत्या और 11 हत्या के प्रयास से संबंधित मामले शामिल हैं. 'इंडियन एक्सप्रेस' में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, जो मुक़दमे वापस लिए जा रहे हैं उनमें ज्यादातर मामले संगीन अपराध से जुड़े हैं, जिनमें व्यक्ति को अधिकतम 7 साल के कारावास की सजा हो सकती है. इसके अलावा 16 मामले धर्म के आधार पर वैमनस्यता फैलाने के सिलसिले में दर्ज हैं. वहीं दो मामले भड़काऊ भाषण से सम्बंधित हैं.
मुक़दमे वापस लेने के इस फैसले से योगी आदित्यनाथ की आलोचना होना स्वाभाविक है
योगी सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले के बाद आलोचना का दौर शुरू हो गया है योगी सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले पर त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए सपा प्रवक्ता जूही सिंह ने सवाल उठाए हैं कि बीजेपी सरकार को बताना होगा कि आखिर किस आधार पर मुकदमें वापस लिए जा रहे हैं. तो यहां ये बताना बेहद जरूरी है कि योगी आदित्यनाथ ने भी उसी परंपरा का पालन किया है जो प्रदेश में अखिलेश यादव के समय से चली आ रही है. पूर्व में अखिलेश भी ऐसा ही कुछ कर चुके हैं बस फर्क ये था अखिलेश जिनको बचा रहे थे वो हिन्दू न होकर के मुसलमान थे.
गौरतलब है कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के शासनकाल में 2013 के दौरान उत्तर प्रदेश का मुज़फ्फरनगर दंगों की चपेट में था जिसकी लपटें शामली तक फैल गयी थीं और स्थिति बेहद तनावपूर्ण हो गयी थी. दंगों में 62 लोगों की मृत्यु हुई थी और हजारों लोगों को घर छोड़ना पड़ा था. मामले की गंभीरता और बढ़ती हुई हिंसा को देखते हुए तब तत्कालीन समाजवादी सरकार ने मुज़फ्फरनगर और शामली के थानों में 1,455 लोगों के खिलाफ 503 मामले दर्ज कराए थे.
भाजपा की सरकार बनने के बाद से ही उठी थी मुकदमें वापस लेने की मांग
ये मांग कोई आज की नहीं है. मुक़दमे वापस लेने की मांग तब ही शुरू हुई थी जब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी. प्रदेश में ये मांग तब इसलिए भी उठाई गयी क्योंकि मामलों में नामजद सभी प्रमुख आरोपी हिंदू थे.
खाप नेताओं की पहल पर वापस लिया जा रहा है फैसला
मामले की संवेदनशीलता पर घटना के बाद से ही खाप नेता बहुत गंभीर थे. बताया जा रहा है कि बीजेपी सांसद संजीव बाल्यान और विधायक उमेश मलिक की अगुवाई में खाप पंचायतों के प्रतिनिधिमंडल ने बीते महीने ही सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी. उस मुलाकात में आए हुए प्रतिनिधिमंडल ने सीएम योगी से मुजफ्फरनगर दंगों से संबंधित 179 केस वापस लिए जाने की मांग की थी. मुलाकात के बाद योगी सरकार ने संबंधित जिलों से मुकदमों के संबंध में जानकारी ली, और 131 केस वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
योगी से पहले अखिलेश भी कुछ इस तरफ एक वर्ग को आकर्षित करने का काम कर चुके हैं
पूर्व में अखिलेश भी मुसलमानों के मुक़दमे वपास लेने के प्रयास कर चुके थे.
योगी आदित्यनाथ का प्रो-हिन्दू होना किसी से छुपा नहीं है इसी तरह अखिलेश भी अपने मुस्लिम प्रेम के लिए जाने जाते हैं. बात 2014 की है अखिलेश चाहते थे कि मुज़फ्फानगर दंगों के सम्बन्ध में जो मुक़दमे मुसलमानों पर हुए हैं उनको वापस लिया जाए. अखिलेश यादव ने तब इस सम्बन्ध में पहल भी की थी मगर हुआ ये कि वो आलोचना के शिकार हो गए. तब अखिलेश की इस हरकत का जिसने सबसे ज्यादा विरोध किया था वो कोई और नहीं भाजपा ही थी. आलोचना पर अपना पक्ष रखते हुए तब अखिलेश ने कहा था कि वो मुक़दमे वपास नहीं ले रहे बस मामले की जानकारी चाह रहे हैं.
शुरू हो गयी है योगी सरकार की आलोचना
योगी सरकार के मुकदमा वापस लेने के बाद विपक्ष और योगी के आलोचकों का योगी के इस फैसले को आड़े हाथों लेना स्वाभाविक था. माइक्रो ब्लॉगिंग साइट पर कपिल सिब्बल ने योगी सरकार के इस फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि 'राज्य में हत्यारे सुरक्षित हैं, हिंसा के पीड़ित नहीं. योगी सरकार दंगों से संबंधित 131 केस वापस लेने का फैसला कर यही संदेश देना चाहती है.'
State to protect murderers not victims of violence . That is the message in Yogi's decision to withdraw 131 riot cases . Wither rule of law?
— Kapil Sibal (@KapilSibal) March 22, 2018
सपा से लेकर भाजपा जो कर रही है वो गलत है
चाहे मुस्लिम मतों के लिए सपा का फैसला हो या हिन्दू वोटरों को रिझाने के लिए योगी सरकार का मुक़दमे हटाने का ये ताजा फरमान. दोनों ही दल और उनकी विचारधारा अपनी जगह गलत है. अपने अपने चहेतों को बचाते दोनों ही नेताओं को देखकर इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ दोनों ही कानून को कुछ नहीं समझते हैं और यही चाहते हैं कि न्याय व्यवस्था में इनकी मर्जी चले.
इन सब चीजों के मद्देनजर हमारे लिए ये कहना कहीं से भी गलत न होगा कि अब वो दौर आ गया है जब उत्तर प्रदेश से कोर्ट कचहरी थाना पुलिस हटा देना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि जब बात पक्षपात की हो तब न्याय व्यवस्था और कानून धरा का धरा रह जाता है और जीत सिर्फ और सिर्फ विचारधारा की होती है.
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