वो 7 बातें जो शायद हर महिला पत्रकार सुनती है...
पत्रकारिता आसान नहीं होती और उसपर हमारे देश में अगर कोई महिला पत्रकार है तो उसे इस तरह की बातें अक्सर सुनने को मिलती हैं.
-
Total Shares
जहां मीडिया की बात आती है वहां पर मीडिया से संबंध नहीं रखने वालों के लिए एक स्टीरियोटाइप दुनिया हो जाती है. मेरे परिवार में अकेले मैं ही हूं जो मीडिया से ताल्लुक रखती हूं और मेरे घर वालों को अब इस लाइफ स्टाइल की आदत पड़ गई है. बिना टाइम फ्रेम के, कम पैसे में भी अपने पैशन के लिए काम करना पहले घर वालों को समझ नहीं आता था. घर वाले तो ठीक, लेकिन बाकी लोगों के सवाल हमेशा एक जैसे ही होते हैं. अगर कोई लड़की मीडिया से ताल्लुक रखती है तो यकीनन उसे उस तरह के सवालों का तो सामना करना पड़ता ही होगा...
- मीडिया में हो टीवी पर भी आती हो क्या?
बिना किसी शक के ये सवाल सबसे पहला है. इंडिया टुडे जैसे ग्रुप में हो.. टीवी पर भी आती होगी न. मैंने तो कभी नहीं देखा तुम्हे.. तुम्हारा शो कब आता है... मीडिया में होने का मतलब ये बिलकुल नहीं है कि टीवी पर आती ही होगी. अरे इंसान राइटर, एडिटर, प्रोड्यूसर, कैमरा हैंडलर कुछ भी हो सकता है. लेकिन नहीं लोगों को तो ये सवाल पूछना ही है. उनके हिसाब से अगर टीवी पर नहीं आ रहे तो मतलब उतना कोई खास काम नहीं करते.
- तुम तो बहुत लोगों को जानती होगी
इस सवाल में हमेशा मतलब छुपा होता है. अपना काम निकालने वाला मतलब... बहुत लोगों को जानती हो तो तुम्हारे मीडिया में होने का फायदा उठाया जाए. तुम्हारी पहचान का फायदा उठाया जाए और लोगों को ये बताया जाए कि हां मेरी फलाना रिश्तेदार तो मीडिया में है ये काम तो चुटकियों में हो सकता है... भले ही कोई माने या न माने, लेकिन ये अटल सत्य है.
- तुम लोगों का क्या है तुम्हें तो दिन रात घूमने की छूट है..
मीडिया में होने का मतलब है कि दिन रात मैं सिर्फ बाहर सड़कों पर घूमती फिरती हूं. जी हां, रिपोर्टरों को घूमना पड़ता है और वो दिन रात घूमते हैं, लेकिन मनोरंजन के लिए नहीं घूमते... वो घूमते हैं अपना काम करने के लिए और उसे घूमना भी नहीं मेहनत करना कहेंगे क्योंकि छोटी से छोटी जानकारी भी पता लगा लेते हैं वो लोग. इस काम को अगर कोई तफरी समझता है तो ये उसकी गलती है. अगर लड़की रिपोर्टर है तो यकीनन उसे काफी आजादी मिली है और उसे तो दिन रात सिर्फ घूमना ही होता है.
- संडे के दिन भी काम करती हो
ये सिर्फ लड़िकयों के लिए ही नहीं बल्कि लड़कों के लिए भी लागू होता है. संडे के दिन काम करने की बात सुनकर लोगों को ऐसा लगता है मानो उन्हें नरेंद्र मोदी का कोई नया प्लान पता चल गया हो. अरे जनाब संडे के दिन भी हॉस्पिटल, पुलिस स्टेशन, ट्रेन, बस, न्यूज चैनल, न्यूज पेपर, वेबसाइट सब चलता है. सोचिए अगर संडे के दिन छुट्टी के कारण मार्क जकरबर्ग फेसबुक बंद कर दे तो? या फिर संडे के दिन टीवी पर कोई भी चैनल न दिखे तो? अरे बहुत सारे लोग हैं जो संडे, मंडे, होली, दिवाली काम करते हैं.
- नाइट शिफ्ट भी है.. घर कैसे चलाओगी
घर कौन सा कोई कार है जिसे पूरे समय चार दीवारी के अंदर रहकर ही चलाना पड़ेगा. नाइट शिफ्ट हो या डे.. मैनेज करना मेरी सरदर्दी है.. हजारों लड़कियां नाइट शिफ्ट करती हैं और उनका घर भी आराम से चलता है.
- इतनी मेहनत पर भी इतनी कम सैलरी..
बेशक सैलरी कम है, लेकिन मैं इसमें खुश हूं. इस वाक्य का व्यंग्य भी समझने वाली बात है. कुछ लोग इस तरह से पूछते हैं कि लगता है जैसे ऊपरी कमाई के भरोसे ही जिंदा हूं मैं. ऐसा बिलकुल नहीं है... मेहनत ज्यादा करना हमारा पेशा है और तनख्वाह बहुत ज्यादा न सही, लेकिन काम चलाने लायक तो है.
- बड़ी तेज हो.. मीडिया में जो हो
अगर कोई लड़की मीडिया में है मतलब वो तो तेज तर्रार होगी. एक आंटी तो यहां तक सुना गईं कि उन्हें सीधी साधी बहू चाहिए.. मीडिया वाली लड़कियां तेज बहुत होती हैं. अब ऐसा कहां लिखा है कि किसी भी बोल्ड प्रोफेशन में अगर लड़की है तो वो चंट, चतुर और चालाक ही होगी. वो शांत भी तो हो सकती है. पर ठीक है.. आंटी की गलतफहमी दूर कर अपना समय बर्बाद करने की इच्छा नहीं थी मेरी सो हां में हां मिलाई और उनके बेटे के लिए ऑल द बेस्ट कहा.
महिला पत्रकार होना अपने आप में एक गर्व की बात है और मैं इससे काफी खुश हूं.
ये भी पढ़ें-
क्या होता है जब निरंकुश विधायिका छीन लेती है, मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
गौरी का कत्ल कांग्रेस के कर्नाटक में : दोषी मोदी सरकार कैसे?
आपकी राय