दशहरा 'फैशन': राम में कमी ढूंढना, रावण को महान बताना
पिछले कुछ सालों में एक बहस चली है जिसमें रावण को लगभग महान और पीड़ित बताया जाता है और राम को स्त्री विरोधी. इस विषय पर बहस होती रही है और दोनों पक्ष अपने-अपने तर्क देते हैं.
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आजकल एक तबका आपको ये बताने में लगा है कि, राम इसलिए ख़राब थे क्योंकि उन्होंने पत्नी को छोड़ दिया. लेकिन रावण इसलिए महान था क्योंकि, वो एक स्त्री का अपहरण कर लाया पर छुआ नहीं. ये दरअसल फैशन है कि अगर दिखना है तो कुछ ऐसा कहते रहो जो अलग लगे. बिलकुल वैसे ही जैसे गांधी जयंती हो तो बताओ कि गोडसे महान थे. ये सब एक महान व्यक्तित्व के पूरे अस्तित्व को उसकी एक गलती की वजह से नकारना चाहते हैं और इस चक्कर में एक अपराधी के गुण ढूंढ-ढूंढ कर महिमामंडित करते हैं. ये वाकई सच है कि एक धोबी की बात पर पत्नी को छोड़ देना गलत था. राम जो 14 साल के बाद अपने घर पर वापस आये और राजपाट संभालना शुरू किया. वो अचानक इस सामाजिक आलोचना का सही जवाब नहीं ढूंढ पाए और एक गलत निर्णय ले लिया. लेकिन क्या इसके साथ ये अनदेखा हो सकता है कि यज्ञ में जब पत्नी को बिठाना था तो उसी पत्नी की मूर्ति को रखकर ये सन्देश दिया कि उनके मन में पत्नी के लिए कोई शक नहीं लेकिन जनता के विचार का उनके निजी जीवन पर प्रभाव पड़ गया.
आज लोगों का रावण का महिमामंडन करना अपने आप में मूर्खता की पराकाष्ठा है
राम ने दूसरी शादी भी नहीं की. ये उस युग की बात है जब राजा 4-4 शादियां करते थे. राम के द्वारा मित्रता निभाने से लेकर, राज-पाट को सकुशल निभाने की वजह से एक आदर्श राज्य की अवधारणा को रामराज्य कहा जाता है. लेकिन एक गलती की सजा वो आज भी भोग रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ रावण. जिसकी बहन एक शादी-शुदा व्यक्ति पर डोरे डालना चाहती है. उससे शादी करना चाहती है. और न करने की स्थिति में उसका नुकसान भी करने की कोशिश करती है. वो एक पीड़िता है.
लक्ष्मण बेचारे के पास #MeToo भी नहीं था तो उन्होंने वो किया जो उस समय अपनी सुरक्षा में ठीक लगा. अब लोगों को रावण जैसा भाई चाहिए क्योंकि वो बहन के सम्मान के लिए लड़ा. सोचिये कैसे? अपमान किया लक्ष्मण ने, लेकिन रावण लक्षमण से नहीं लड़ा बल्कि छल (स्वर्णमृग) के जरिये उसे कुटिया से हटाया और फिर सीता को उठा ले गया. उठा ले जाना यानि अपहरण करना. अब मेरी समझ में ये नहीं आ रहा कि बहन के आत्मसम्मान की लड़ाई सीता के अपहरण से कैसे पूरी हो रही थी.
लेकिन मामला यहीं नहीं ठहरता. आगे किस्सा ये है कि देखिये रावण कितना महान है कि एक निरपराध स्त्री को उठा तो लाया (एक बीवी के रहते हुए) लेकिन उसे हाथ नहीं लगाया. वो विद्वान था ये तो आपने सुना ही होगा अब तक. मतलब कि एक व्यक्ति जो पढ़ा लिखा है वो अपहरण करे, पत्नी के रहते उस अपहृता पर शादी का दबाव डाले तो वो ठीक है. लेकिन जो पत्निव्रता था और समाज के दबाव में एक गलत निर्णय कर गया वो ही दोषी है.
खुदा न खास्ता किसी दिन कोई पी.एच.डी/डॉक्टर या कोई इंजिनियर इनमें से किसी की बहन बेटी को जबरन उठा ले जाये तब भी क्या ये उस विद्वान अपहरणकर्ता के लिए ये कविता लिखेंगे कि मां मुझे उस इंजिनियर / डॉक्टर जैसा भाई चाहिए. जो लोग आज रावण के पैरोकार इन तर्कों से हैं. इन्हें पहचान लीजिये क्योंकि इन्हीं की पुश्तें कुछ सौ सालों बाद बता रही होंगी कि ओसामा बिन लादेन विद्वान था.सिविल इंजिनियर था, और उसने इकोनॉमिक्स और पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में भी डिग्री ले रखी थी. उसने लोगों को मारा तो लेकिन देखिये मिसाइल होते हुए भी हवाई जहाज से टावर उड़ाया.
रावण एक अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति था और किसी नियम को नहीं मानता था. उसके सैकड़ों उदाहरण हैं लेकिन चूंकि आज बात इन दो मुद्दों पर थी तो इतना ही. एक बार फिर कहता हूं कि राम द्वारा पत्नी को छोड़ना गलत था मगर उसकी वजह से रावण महान नहीं हो सकता. वैसे ही जैसे गांधी कि किन्हीं एक-दो मानवीय भूल के कारण गोडसे को महान नहीं कह सकते.
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