X
Login
You agree to our privacy and cookie policy while login to our website.
Login With Facebook
iChowk
Aaj Tak
বাংলা
Aaj Tak Campus
GNTTV
Lallantop
India Today
Business Today
Cosmopolitan
Harper's Bazaar
Reader's Digest
Northeast
Malayalam
Sports Tak
Crime Tak
Astro Tak
Gaming
Brides Today
Ishq FM
सियासत
समाज
संस्कृति
स्पोर्ट्स
सिनेमा
सोशल मीडिया
इकोनॉमी
ह्यूमर
टेक्नोलॉजी
वीडियो
लॉगिन करें
मोबाइल नंबर
(+91)
Submit
or
You agree to our privacy and cookie policy while login to our website.
*
OTP डालें
OTP फिर भेजें
OTP फिर भेजें
Submit
New
अपनी स्टोरी, कविता या कहानी साझा करें...
चर्चा में
महाराष्ट्र
औरंगजेब
ज्ञानवापी मस्जिद
कांग्रेस
राहुल गांधी
योगी आदित्यनाथ
यूपी विधानसभा चुनाव 2022
रूस यूक्रेन विवाद
नरेंद्र मोदी
पंजाब चुनाव
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022
अखिलेश यादव
ओमिक्रॉन वेरिएंट
ममता बनर्जी
कोरोना वायरस
अफगानिस्तान
ऑक्सीजन
पश्चिम बंगाल चुनाव 2021
कोरोना वैक्सीन
किसान आंदोलन
भारत-चीन
अमित शाह
प्रियंका गांधी
टीम इंडिया
विराट कोहली
अरविंद केजरीवाल
अरुण जेटली
सियासत
| 3-मिनट में पढ़ें
अमित पांडेय
'सेक्युलरवाद' के जरिए राजनीतिक पार्टियों का फायदा तो है!
भारतीय सेक्युलरवाद दैवी बनाम सांसारिक न हो कर सर्वधर्मसमभाव का है. यह बहुलता के प्रति सहनशीलता और राज करने के नियमित सिद्धांत के रूप में मान्यता देने का है. पर भारतीय और पश्चिमी सेक्युलरवाद में फर्क करने का मतलब यह नहीं है कि हम राज्य की सेक्युलर पहचान पर ही सवाल उठाना शुरू कर दें.
संस्कृति
| 5-मिनट में पढ़ें
vinaya.singh.77
@vinaya.singh.77
अंबुबाची मेला : आस्था और भक्ति का मनोरम संगम!
अंबुबाची जैसे मेले न सिर्फ लोगों को श्रद्धा से भर देते हैं बल्कि इनसे कुछ दुकानदारों की आजीविका भी चल जाती है. और अपनी लोक संस्कृति को बचाकर रखने के लिए ऐसे स्थानीय पर्व, जो अब ग्लोबल होते जा रहे हैं, बहुत आवश्यक हैं.
समाज
| बड़ा आर्टिकल
Pranay Vikram Singh
जानिए राजनीतिक और सांस्कृतिक स्वाधीनता संघर्ष में गोरक्षपीठ का योगदान
इतिहास साक्षी है कि सनातन आस्था के महान केंद्र श्री गोरक्षपीठ के योगी राष्ट्र-रक्षा हेतु स्वयं सहभागी बन सुप्त समाज के राष्ट्रीय बोध को जागृत करने का युगान्तरकारी कार्य शताब्दियों से कर रहे हैं. मध्ययुगीन पराधीनता से लेकर आधुनिक युग की ब्रितानी गुलामी तक, प्रत्येक स्वाधीनता के स्वर में 'नाथ पंथ' की हुंकार सुनने को मिलती है.
समाज
| 3-मिनट में पढ़ें
Mormukut Goyal
@1203823200460755
भारतीय इतिहास लेखन में अत्याधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता!
समय है इतिहास और पुरातत्व क्षेत्र से जुड़े पाठ्यक्रमों में उच्च कोटि के व्यवहारिक और अत्याधुनिक वैज्ञानिक तत्वों के समावेश से इनमें नयापन लाया जाए ताकि बदलते परिदृश्य में भारतीय इतिहास अध्ययन व शोध बदलते भारत की सोच का प्रतिनिधित्व करे.
सिनेमा
| बड़ा आर्टिकल
तेजस पूनियां
@1602103889882155
नानेरा के जरिये राजस्थानी सिनेमा को नजर का टीका लग चुका है...
फिप्रेसी की इस साल 2023 की लिस्ट में ‘नानेरा’ ने ‘कांतारा’, ‘आरआरआर’ जैसी चर्चित फिल्मों को पीछे छोड़ एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है. नानेरा जिस तरह की फिल्म है माना जा रहा है कि इसके जरिये लोगों को राजस्थानी संस्कृति को और करीब से समझने का मौका मिलेगा.
संस्कृति
| 3-मिनट में पढ़ें
नवेद शिकोह
@naved.shikoh
नवाब मीर जाफर की मौत ने तोड़ा लखनऊ का आईना...
मीर जाफर अब्दुल्ला की मौत से पूरा लखनऊ सूना हो गया है. मीर जाफर अब्दुल्ला सिर्फ एक नाम नहीं था ये एक तहज़ीब थे,तहरीक थे, एक तारीख़ थे. वो लखनऊ के नवाबों की सांस्कृतिक विरासत संजोने वाले नवाबीन दौर के नुमाइंदे ही नहीं थे बहुत कुछ थे. वो शहर-ए-लखनऊ की पहचान थे. इतिहासकार, किस्सागो, रंगकर्मी और फिल्म कलाकार भी थे.
समाज
|
एक अलग नज़रिया
| 3-मिनट में पढ़ें
ज्योति गुप्ता
@jyoti.gupta.01
रश्मिका मंदाना 'कामवाली बाई' के भी पैर छूती हैं और इसे ही बड़प्पन कहते हैं!
आजकल की इंस्टाग्राम पीढ़ी को रश्मिका मंदाना से कुछ सीखने की जरूरत है. उन्हें समझने की जरूरत है कि सिर्फ फॉलोअर्स बढ़ाने से कुछ नहीं होगा, बल्कि संस्कार को साथ लेकर चलने से ही अपने जड़ों से जुड़ा रहा जा सकता है.
संस्कृति
| 6-मिनट में पढ़ें
लोकेन्द्र सिंह राजपूत
@5745259062180641
सांस्कृतिक राष्ट्रत्व में है अलगाव की समस्या का समाधान
हमारी उदारता, संवदेनशीलता, मानवता के साथ ही सहिष्णुता का मूल कारण हमारी सांस्कृतिक विरासत है. वर्तमान चुनौतियों को देखते हुए और गौरवमयी भविष्य के लिए भारत और भारतीयता के हित में आज की राजनीति के केंद्र में सांस्कृतिक राष्ट्रत्व को लाने की आवश्यकता है.
संस्कृति
| 3-मिनट में पढ़ें
अणु शक्ति सिंह
@anushakti19.singh
तुलसी दास और रामचरित मानस से जुड़े वो तथ्य जिन्हें हमें जरूर जानना चाहिए
रामचरित मानस को बदला नहीं जा सकता है. इसके प्रभाव को धीरे-धीरे ख़त्म करने की कोशिश हो सकती है. ऐसा केवल अधिक जागरूकता के ज़रिये ही किया जा सकता है. डंडे चलाने से तथ्य ख़त्म नहीं होते हैं. तथ्यों को पहचानते हुए ही जागरूकता फ़ैलाई जा सकती हैं.